
- सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न अधिनियम के दायरे से बाहर रखा है
- अदालत ने कहा कि राजनीतिक दलों और सदस्यों के बीच नियोक्ता-कर्मचारी संबंध नहीं होता है
- कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए राजनीतिक दलों को आंतरिक शिकायत समिति बनाने से मुक्त किया
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए साफ किया कि राजनीतिक दलों को कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न अधिनियम, 2013 (POSH Act) के दायरे में शामिल नहीं किया जा सकता. अदालत ने इस संबंध में दायर अपील को खारिज कर दिया और कहा कि राजनीतिक दलों और उनके सदस्यों के बीच नियोक्ता-कर्मचारी संबंध नहीं होता, इसलिए इस कानून को उन पर लागू करना संभव नहीं है.
मामला क्या था
यह मामला केरल हाईकोर्ट के एक आदेश से जुड़ा था. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि राजनीतिक दल POSH Act के तहत आंतरिक शिकायत समिति (ICC) बनाने के लिए बाध्य नहीं हैं, क्योंकि इस अधिनियम का दायरा केवल उन संस्थाओं तक है जहां रोजगार और भुगतान का रिश्ता हो. हाईकोर्ट के इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने किस आधार पर किया खारिज
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने अपील को खारिज करते हुए हाईकोर्ट के निर्णय को बरकरार रखा. अदालत ने कहा कि राजनीतिक दलों की संरचना और उनका कार्यप्रणाली रोजगार से भिन्न है.
सीजेआई गवई ने टिप्पणी किया जब कोई व्यक्ति राजनीतिक दल से जुड़ता है तो यह नौकरी नहीं होती. इसमें न तो रोजगार मिलता है और न ही भुगतान होता है. इसलिए राजनीतिक दल को कार्यस्थल की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट के क्या थे प्रमुख तर्क
- नियोक्ता-कर्मचारी संबंध नहीं: POSH Act का मकसद महिलाओं को कार्यस्थलों पर सुरक्षा प्रदान करना है, जहां रोजगार और भुगतान का रिश्ता होता है. राजनीतिक दल और उनके सदस्य के बीच ऐसा कोई संबंध नहीं है.
- वर्कप्लेस की परिभाषा लागू नहीं: अदालत ने सवाल उठाया कि “राजनीतिक दलों को कार्यस्थल कैसे माना जाए, जब पार्टी और सदस्य के बीच कोई रोजगार संबंध ही नहीं है?”
- ब्लैकमेल का खतरा: सीजेआई गवई ने टिप्पणी की कि अगर इस अधिनियम को राजनीतिक दलों पर लागू किया गया, तो यह “ब्लैकमेल का साधन” बन जाएगा और इससे ऐसे मामलों की बाढ़ आ सकती है. अदालत ने कहा कि यह राजनीतिक प्रक्रिया को भी प्रभावित कर सकता है.
- कानून का उद्देश्य सीमित: POSH Act को 2013 में इसलिए लागू किया गया ताकि महिलाएं नौकरी की जगहों पर सुरक्षित महसूस कर सकें. लेकिन राजनीतिक दल ऐसी संस्था नहीं हैं, जहां रोजगार की परिभाषा लागू होती हो.
अदालत ने क्या कहा?
सुनवाई के दौरान पीठ ने साफ किया कि किसी राजनीतिक दल में शामिल होना रोजगार प्राप्त करना नहीं है. यह केवल सदस्यता का मामला है, जहां न तो नियमित वेतन है और न ही संविदात्मक रोजगार. इस आधार पर अदालत ने कहा कि राजनीतिक दलों को POSH Act के तहत आंतरिक शिकायत समिति बनाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता.
फैसले का क्या होगा असर
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद राजनीतिक दलों को अब POSH Act का पालन करने की बाध्यता नहीं होगी. इसका सीधा असर यह होगा कि अगर किसी महिला सदस्य को पार्टी से जुड़े कार्यकलापों में उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, तो वह POSH Act का सहारा नहीं ले पाएगी. हालांकि, वह भारतीय दंड संहिता (IPC) और अन्य आपराधिक कानूनों के तहत शिकायत दर्ज करा सकती है.
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