'तलाक-ए-अहसान' की वैधता को चुनौती वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया और याचिका को पुराने मामले से जोड़ा. जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओक की पीठ ने बेनजीर निसार पटेल द्वारा दायर इस याचिका पर केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने का निर्देश देते हुए इस याचिका को पहले से लंबित याचिका के साथ जोड़ दिया.
तलाक-ए-अहसान के तहत, एक बार तलाक की घोषणा के बाद वैवाहिक जीवन से तीन महीने तक परहेज रखना होता है. इस बीच यदि दोनों अपने वैवाहिक संबंधों को फिर से शुरू नहीं कर पाए तो विवाह भंग हो जाता है. महाराष्ट्र निवासी याचिकाकर्ता बेनजीर के मामले में पति ने गत 16 जुलाई को स्पीड पोस्ट के जरिए तलाक का पत्र भेजा था.
इंजीनियर बेनजीर की शादी 10 जुलाई 2020 को हुई थी. पति का स्पीड पोस्ट मिलने के बाद बेनजीर ने स्थानीय पुलिस में पति के खिलाफ शिकायत करने की कोशिश की. लेकिन पुलिस ने यह कहते हुए मुकदमा दर्ज करने से इनकार कर दिया कि तलाक-ए-अहसान, मुस्लिम पुरुषों द्वारा तलाक लेने का वैध तरीका है.
याचिका में तलाक-ए-अहसान और मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत एकतरफा तलाक के अन्य तरीकों को गैरकानूनी और असंवैधानिक करार देने की मांग की गई है. तलाक-ए-हसन के खिलाफ मुस्लिम महिला की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा.
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा था कि पहली नजर में तलाक-ए-हसन उतना अनुचित नहीं लगता, इसमें महिलाओं के पास भी विकल्प होते हैं. हम नहीं चाहते कि ये किसी और वजह से एजेंडा बने. अदालत ने याचिकाकर्ता महिला से कहा कि वो ये बताए कि वो सहमति से तलाक के लिए तैयार है या नहीं? इस मामले को लेकर हाईकोर्ट गईं या नहीं? क्या ऐसे और मामले भी लंबित हैं?
जानें क्या है तलाक-ए-अहसान?
इस्लाम में तलाक़ के तीन तरीके ज्यादा प्रचलन में थे. एक है तलाक़-ए-अहसान. इस्लाम की व्याख्या करने वालों के मुताबिक- तलाक़-ए-अहसन में शौहर बीवी को तब तलाक दे सकता है जब उसका मासिक धर्म चक्र न चल रहा हो (तूहरा की समयावधि). इसके बाद तकरीबन तीन महीने एकांतवास की अवधि यानी इद्दत के बाद चाहे तो वह तलाक वापस ले सकता है. यदि ऐसा नहीं होता तो इद्दत के बाद तलाक को स्थायी मान लिया जाता है, लेकिन इसके बाद भी यदि यह जोड़ा चाहे तो भविष्य में निकाह यानी शादी कर सकता है इसलिए इस तलाक़ को अहसन यानी सर्वश्रेष्ठ कहा जाता है.
जानें क्या है तलाक-ए-हसन?
दूसरे प्रकार का तलाक़ है तलाक़-ए-हसन. इसकी प्रक्रिया भी तलाक़-ए-अहसन की तरह है, लेकिन इसमें शौहर अपनी बीवी को तीन अलग-अलग बार तलाक कहता है वो भी तब जब बीवी का मासिक धर्म चक्र न चल रहा हो. यहां शौहर को अनुमति होती है कि वह इद्दत की समयावधि खत्म होने के पहले तलाक वापस ले सकता है, यह तलाकशुदा जोड़ा चाहे तो भविष्य में फिर से निकाह यानी शादी कर सकता है.
इस प्रक्रिया में तीसरी बार तलाक़ कहने के तुरंत बाद वह अंतिम मान लिया जाता है. यानी तीसरा तलाक बोलने से पहले तक निकाह पूरी तरह खत्म नहीं होता.
तीसरा तलाक बोलने और तलाक पर मुहर लगने के बाद तलाक़शुदा जोड़ा फिर से शादी तब ही कर सकता है, जब बीवी इद्दत पूरी होने के बाद किसी दूसरे व्यक्ति से निकाह यानी शादी कर ले. इस प्रक्रिया को हलाला कहा जाता है. अगर पुराना जोड़ा फिर शादी करना चाहे तो बीवी नए शौहर से तलाक लेकर फिर इद्दत में एकांतवास करे, फिर वो पिछले शौहर से निकाह कर सकती है.
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