वरिष्ठ पत्रकार एन राम (N Ram), पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी (Arun Shourie) और वकील प्रशांत भूषण (Prashant Bhushan) ने अदालत की अवमानना (contempt)के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से वापस लेे लिया है . सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें याचिका वापस लेने की इजाजत दे दी. याचिकाकर्ताओं की ओर से राजीव धवन ने कहा कि ये मामला महत्वपूर्ण है लेकिन अदालत के पास मामले लंबित हैं इसलिए ये उसमें उलझ सकता है. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि अधिनियम असंवैधानिक है और संविधान की मूल संरचना के खिलाफ है. यह संविधान द्वारा प्रदत्त बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और समानता की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है.
याचिका में कहा गया है कि अदालत की अवमानना अधिनियम 1971 के कुछ प्रावधानों को शीर्ष अदालत रद्द कर दे. इसमें तर्क दिया गया है कि लागू उप-धारा असंवैधानिक है क्योंकि यह संविधान के प्रस्तावना मूल्यों और बुनियादी विशेषताओं के साथ असंगत है. यह अनुच्छेद 19 (1) (ए) का उल्लंघन करता है. असंवैधानिक, अस्पष्ट है और मनमाना है. शीर्ष अदालत को अवमानना अधिनियम की धारा 2 (सी) (i) को संविधान के अनुच्छेद 19 और 14 का उल्लंघन करने वाली घोषित करना चाहिए.
दरअसल शीर्ष अदालत ने वकील प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू की हैण् कई पूर्व जजों ने शीर्ष अदालत के कदम का विरोध किया और चाहते है कि अदालत भूषण के खिलाफ अवमानना कार्यवाही छोड़ दे.
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