94-वर्षीय विधवा की 1975 में आपातकाल (Emergency) की घोषणा को असंवैधानिक करार दिये जाने की याचिका का परीक्षण करने को सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा. हालांकि, अधिकारियों से मुआवजा के तौर पर 25 करोड़ रुपये दिलाये जाने की मांग पर सुनवाई से कोर्ट ने इनकार किया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 45 साल पहले किए गए गलत कामों के मामलों को अब नहीं खोला जा सकता. याचिकाकर्ता की ओर से हरीश साल्वे ने कहा कि इतिहास कभी खुद को सही नहीं करता बल्कि दोहराता है.
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को 18 दिसंबर तक याचिका में संशोधन करने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ये विचार करेगा कि क्या इमरजेंसी को असंवैधानिक घोषित किया जा सकता है या नहीं. अदालत ने कहा कि इस पर विचार करने की जरूरत है कि क्या ऐसा किया जा सकता है क्योंकि इसको 45 साल बीत चुके हैं.
साल्वे ने कहा कि यह बड़ा मामला है. सुप्रीम कोर्ट को सुनवाई करनी चाहिए. 'एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला (1976)' मामले में पांच सदस्यीय संविधान पीठ के फैसले को पलटने वाले 2017 के 'के एस पुत्तास्वामी (सेवानिवृत्त) बनाम भारत सरकार' मामले में दिये गये फैसले पर भरोसा करते हुए याचिका में कहा गया है कि भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में दफन सबसे काले अध्याय 'आपातकाल' के दौरान अधिकारियों के हाथों अत्याचार की शिकार हुई इस याचिकाकर्ता को अभी तक राहत प्रदान नहीं की जा सकी है.
याचिका में कहा गया है कि, "याचिकाकर्ता, उसके मृतक पति और परिजनों पर हुए अत्याचार के मामले में न्याय हासिल करने और घोर कष्ट में बिताये गये उनके जीवन के लिए क्षतिपूर्ति की मांग को लेकर यह याचिका दायर की गयी है. आपातकाल के पीड़ितों के तौर पर याचिका में इस बात का ब्योरा दिया गया है कि तत्कालीन सरकारी अधिकारियों ने पीड़ितों के कारोबार और घरों को तबाह करने के प्रयास के तहत याचिकाकर्ता और उसके पति को गैर-न्यायोचित एवं निरंकुश हिरासत आदेश जारी करके निशाना बनाया था और इसके परिणामस्वरूप वे लोग देश छोड़ने को मजबूर हुए थे. उसका कारोबार बंद हो गया, अचल सम्पत्ति सहित सभी सम्पत्तियां और बहुमूल्य चीजें जब्त कर ली गयी थी और हथिया ली गयी थी.
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याचिकाकर्ता के पति ने दबाव के आगे घुटने टेक दिये और उनकी मौत हो गयी. उसके बाद से याचिकाकर्ता आपातकाल के दौरान अपने पति के खिलाफ जान-बूझकर शुरू किये गये मुकदमों को अकेले झेल रही है. याचिका में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दिसम्बर 2014 में दिये गये फैसले का हवाला देकर कहा गया है कि उसके पति के फलते-फूलते कारोबार के बंद होने से हुई क्षति और उसकी करोड़ों रुपये की जब्त बहुमूल्य चीजों की क्षतिपूर्ति अभी तक नहीं हो सकी है.
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दिल्ली हाईकोर्ट ने 2014 के अपने फैसले में याचिकाकर्ता के मृत पति के खिलाफ मुकदमों को रद्द कर दिया था. याचिका में यह भी कहा गया है कि हाईकोर्ट ने 28 जुलाई 2020 के आदेश के तहत एक प्रॉपर्टी के बकाया किराये का भुगतान याचिकाकर्ता और अन्य कानूनी वारिसों को किये जाने का आदेश दिया था. हालांकि, याचिका में यह भी दलील दी गयी है कि अन्य बहुमूल्य चल सम्पत्तियों को गायब किया जा चुका है.
याचिकाकर्ता ने अपने वृद्धावस्था का हवाला देकर आपातकाल के दौरान लगे आघात से मुक्ति की इच्छा व्यक्त की है, ताकि उसे संतोष का भाव महसूस हो सके.
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