विज्ञापन
This Article is From Dec 11, 2023

सैटेलाइट तस्वीरों में मिला सबूत, सीमा वार्ता के बावजूद चीन ने भूटान में बनाई चौकियां, बसाए गांव

इस इलाके की सैटेलाइट तस्वीरों से, इनसे ज़्यादा साफ़ दिखने वाली तस्वीरें पहले कभी सामने नहीं आईं, लगता है कि संभवतः थिम्फू के पास इलाके में चीन की तरफ से पेश किए गए तथ्यों को कबूल करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है.

सैटेलाइट तस्वीरों में मिला सबूत, सीमा वार्ता के बावजूद चीन ने भूटान में बनाई चौकियां, बसाए गांव
जकरलुंग में चीन द्वारा बनाई गई बस्ती में 100 से ज़्यादा रिहायशी इमारतें देखी जा सकती हैं... (हाई रिसॉल्यूशन तस्वीर देखने के लिए यहां क्लिक करें)
नई दिल्ली:

भूटान और चीन के बीच औपचारिक रूप से सीमाएं तय करने के लिए जारी वार्ता के बावजूद चीन द्वारा भूटान के उत्तरी हिस्से की जकरलुंग घाटी में एकतरफ़ा निर्माण गतिविधियां जारी हैं.

इस इलाके की सैटेलाइट तस्वीरों से, इनसे ज़्यादा साफ़ दिखने वाली तस्वीरें पहले कभी सामने नहीं आईं, लगता है कि संभवतः थिम्फू के पास इलाके में चीन की तरफ से पेश किए गए तथ्यों को कबूल करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है. यह इलाका अरुणाचल प्रदेश से सटी भूटान की पूर्वी सीमा से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर है.

यूनिवर्सिटी ऑफ़ लंदन के स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज़ (SOAS) में तिब्बती इतिहास के विशेषज्ञ प्रोफेसर रॉबर्ट बार्नेट का कहना है, "यह मामला है चीन द्वारा चरवाहों की प्रथाओं के आधार पर एक इलाके पर दावा ठोकने का, जो हालिया है, और पहले कभी ऐसा नहीं हुआ, और फिर एकतरफा तरीके से इलाके पर कब्ज़ा जमा लिया, और इसमें गांव, मिलिटरी बैरक और आउटपोस्ट बनानी शुरू कर दीं..."

उन्होंने कहा, "जकरलुंग का जुड़ाव बेयुल खेनपाजोंग से है, जो भूटानियों के लिए अहम सांस्कृतिक और धार्मिक इलाका है... सो, यह मामला ऐसा है, जिसमें चीन ने हाल ही में एक ऐसे इलाके पर संदिग्ध रूप से दावा ठोका है, जिसका कम ताकतवर पड़ोसी के लिए बहुत सांस्कृतिक महत्व है, और वह यह भी जानता है कि पड़ोसी के पास प्रतिक्रिया के रूप में बेहद कम विकल्प हैं..."

Maxar से हासिल रिपोर्ट की तस्वीरों में दिखता है कि चीन ने कैसे दो ही साल में जकरलुंग घाटी में अपनी मौजूदगी बढ़ाई है. पिछले हफ़्ते 7 दिसंबर की तस्वीरों में कम से कम 129 इमारतों की तामीर देखी जा सकती है, जो रिहायशी क्वार्टर लगते हैं, और कुछ ही दूरी पर एक दूसरी बस्ती में कम से कम 62 इमारतें दिखाई दे रही हैं. इसी क्षेत्र की अगस्त, 2021 में क्लिक की गई तस्वीरों में देखा जा सकता है कि इनमें से किसी इमारत का निर्माण नहीं हुआ था.

Before and after images indicate the pace of Chinese construction activity in the Jakarlung Valley of North Bhutan.  In August 2021, residential quarters had not been constructed.  In December, 2023, there are more than 100. (high res: here)

पहले और बाद की तस्वीरों से उत्तरी भूटान की जकरलुंग घाटी में चीन द्वारा की जा रही निर्माण गतिविधियों की गति ज़ाहिर है. अगस्त, 2021 में रिहायशी क्वार्टर नहीं बने थे. दिसंबर, 2023 में 100 से ज़्यादा रिहायशी इमारतें देखी जा सकती हैं... ((हाई रिसॉल्यूशन तस्वीर देखने के लिए यहां क्लिक करें)

भूटान के पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों में चीन की घुसपैठ (और कब्ज़ों) के बारे में विस्तार से लिखते रहे डैमियन साइमन का कहना है, "इस निर्माण गतिविधि का स्तर ही यह बताने के लिए काफ़ी है कि ये गांव सिर्फ़ अलग-थलग पड़ी चौकियां नहीं हैं, बल्कि चीन की इलाकाई महत्वाकांक्षाओं को दर्शाने वाले व्यापक ईकोसिस्टम का अभिन्न हिस्सा हैं, और भूटानी धरती का चीनीकरण करने में योगदान दे रहे हैं..."

 [With inputs from Damien Symon]

इस नक्शे में उन निर्माण गतिविधियों को हाईलाइट किया गया है, जिनका ज़िक्र इस ख़बर में है, तथा भूटान के अन्य इलाकों में विवादित चीनी निर्माण गतिविधियों को भी हाईलाइट किया गया है... (डैमियन साइमन के इनपुट्स के साथ)

ये नई तस्वीरें उस वक्त सामने आई हैं, जब भूटान ने अपने इलाकों में चीन की घुसपैठ को हमेशा के लिए खत्म करने की कोशिशों के तहत चीन के साथ रिश्तों को बेहतर किया है. इसी साल अक्टूबर में भूटान के विदेशमंत्री टांडी दोरजी ने चीन की यात्रा की थी. इससे पहले भूटानी विदेशमंत्री कभी चीन नहीं गए थे. अक्टूबर में ही प्रधानमंत्री लोटे शेरिंग ने समाचारपत्र 'द हिन्दू' से कहा था, "उम्मीद है, जल्द ही सीमा खींच दी जाएगी - इस तरफ भूटान, उस तरफ चीन... फिलहाल हमारे पास वह नहीं है..."

Before and after images of Chinese construction activity in the Jakarlung Valley shows a second enclave having been constructed by December 2023. (high res: here)

जकरलुंग घाटी में चीन की निर्माण गतिविधियों से पहले और बाद की तस्वीरें दिसंबर, 2023 तक दूसरी बस्ती का निर्माण दर्शाती हैं... (हाई रिसॉल्यूशन तस्वीर देखने के लिए यहां क्लिक करें)

अहम पहलू यह भी था कि 'द हिन्दू' को दिए साक्षात्कार में भूटान के PM लोटे शेरिंग ने चीन और भूटान द्वारा ज़मीन के टुकड़ों की अदला-बदली पर सहमत होने की संभावनाओं को खारिज नहीं किया था - दरअसल, इस रिपोर्ट में उल्लिखित जकरलुंग समेत कई इलाकों में ज़मीन की अदला-बदली की जा सकती है, अगर दक्षिण में मौजूद डोकलाम पठार पर चीन अपना दावा छोड़ दे. नवंबर में भूटान के राजा जिग्मे खेसर नांग्येल वांगचुक आधिकारिक यात्रा पर भारत आए. उस वक्त दिए गए संयुक्त बयान में जारी सीमा वार्ता के बारे में विस्तार से कुछ नहीं बताया गया था, लेकिन दोनों पक्षों ने 'द्विपक्षीय सहयोग के समूचे पहलुओं और आपसी हितों से जुड़े क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की...'

वर्ष 2017 में भारत और चीन के बीच भी डोकलाम में लगभग दो माह तक बेहद तनावपूर्ण गतिरोध जारी रहा था, जब भारतीय जवानों ने इलाके में अवैध चीनी सड़क के विस्तार को रोका था. बहरहाल, शेरिंग ने पुष्टि की कि 'यह सुनिश्चित करना भूटान के हित में होगा कि सीमा वार्ता के दौरान हमारे द्वारा लिए गए फ़ैसलों से दोनों पक्ष [भारत और चीन] खुश हैं...'

रॉबर्ट बार्नेट का कहना है कि नतीजा कुछ भी हो, "भारत सीमा विवादों को लेकर की गई संधियों का सम्मान करने की चीन की मंशा सामने आने से चिंतित हो सकता है, जो जकरलुंग की घटना के बाद साफ हो गई... चीन ने विवादित इलाकों में यथास्थिति में बदलाव न करने के लिए 1998 में भूटान के साथ औपचारिक समझौता किया था, लेकिन जकरलुंग पर कब्ज़ा करने और वहां बसावट कर चीन ने समझौते का उल्लंघन किया..."

भूटान के इलाकों के भीतर चीन के विस्तार को लेकर भारत की फौरी चिंता अमू चू नदी घाटी से जुड़ी हैं, जो डोकलाम पठार से कतई सटी हुई है.

डोकलाम में गतिरोध के बाद से चीन ने घाटी के किनारे कम से कम तीन गांवों का निर्माण किया है. दक्षिण में चीन द्वारा किए गए किसी भी विस्तार की वजह से भारत में खतरे की घंटी बज जाएंगी, क्योंकि उसकाअर्थ होगा सिलीगुड़ी कॉरिडोर के करीब चीन की मौजूदगी. सिलीगुड़ी कॉरिडोर वह संकरा गलियारा है, जो भारत के पूर्वोत्तर हिस्सों को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ता है. भारतीय सेना ने कई बार केंद्र सरकार से साफ़ कहा है कि चीन ऐसी लाइन के करीब पहुंच रहा है, जिसे पार करने की इजाज़त कभी नहीं दी जानी चाहिए.

चीन द्वारा इलाकों पर इसी तरह थोड़ा-थोड़ा कर कब्ज़ा किया जाना उसकी क्षेत्रीय विस्तार योजनाओं की मानक रणनीति रही है, जिसे भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल बिपिन रावत ने 'सलामी-स्लाइसिंग' नाम दिया था. इसी रणनीति के तहत चीन ने दक्षिण चीन सागर में उथले तटों को सैन्य चौकियों में बदल डाला और पूर्वी लद्दाख में कई इलाकों में काफ़ी आगे तक बढ़ आए.

जाने-माने तिब्बतविज्ञानी क्लॉड अर्पी का कहना है, "मई, 2020 में पूर्वी लद्दाख में पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) पांच इलाकों में आगे बढ़ आई थी, लेकिन उस मामले में भारत ने कुछ दिन के बाद कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की..."

उन्होंने कहा, "भूटान के मामले में रॉयल भूटान आर्मी के पास प्रतिक्रिया करने और PLA या बॉर्डर डिफ़ेंस फ़ोर्स को पीछे धकेलने या नए गांवों के निर्माण को रोकने की क्षमता नहीं है..."

अतीत में भूटान की सुरक्षा के गारंटर रहे भारत के लिए बड़ी चिंता का विषय है कि जारी वार्ता के फलस्वरूप इलाके में भू-रणनीतिक पुनर्गठन हो सकता है. क्लॉड अर्पी के अनुसार, "भूटान धीरे-धीरे चीन के स्ट्रैटेजिक ऑरबिट की तरफ़ बढ़ रहा है और भारत इसमें ज़्यादा कुछ नहीं कर सकता, सिवाय इसके कि भारत और भूटान के बीच नए सुरक्षा समझौते पर दस्तख़त किए जाएं..."

"यह भारत और भूटान के राजा के लिए मुश्किल हालात हैं..."

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com