जैसलमेर (Jaisalmer) के नहरी क्षेत्र मोहनगढ़ में शनिवार को ट्यूबवेल की खुदाई के दौरान जमीन से पानी और गैस का रिसाव शुरू हो गया था. लगभग 48 घंटों तक चले मशक्कत के बाद जमीन से निकलता पानी अब बंद हो गया है. हालांकि इसके साथ ही तरह-तरह के दावे शुरू हो गए. नहरी क्षेत्र मोहनगढ़ में शनिवार को ट्यूबवेल की खुदाई के दौरान अचानक जमीन धंसने से करीब 22 टन भारी मशीन से लदा ट्रक 850 फुट गहरे गड्ढे में धंस गया. फटी जमीन से अचानक पानी बाहर आने लगा था. पानी के साथ गैस और कीचड़ भी आने लगे थे. कई लोगों ने दावा किया कि यह जल स्त्रोत सरस्वती नदी का है और सरस्वती नदी वापस धरती के सतह पर आ गयी है.
सरस्वती नदी को लेकर जितनी मुंह उतनी बातें
सरस्वती नदी भारत की पौराणिक और ऐतिहासिक नदी है, जिसका उल्लेख वेदों, पुराणों और महाकाव्यों में मिलता रहा है. इसे प्राचीन भारतीय सभ्यता का आधार माना जाता है. हालांकि, आधुनिक समय में यह नदी लुप्त हो चुकी है, और इसे लेकर कई वैज्ञानिक, पुरातात्विक और पौराणिक दावे किए जाते हैं.
सरस्वती नदी कहां से कहां तक बहती थी
सरस्वती को ज्ञान और पवित्रता की नदी माना जाता है. इसका उल्लेख वेदों, खासकर ऋग्वेद में "नदीतमा" (नदियों में श्रेष्ठ) के रूप में किया गया है. यह नदी वैदिक काल के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप की प्रमुख नदियों में से एक थी ऐसा दावा किया जाता रहा है. इस नदी को लेकर दावे किए जाते हैं कि यह हिमालय से निकलती थी, विशेष रूप से हरियाणा में आदिबद्री क्षेत्र से.वैज्ञानिक दावे सरस्वती के ग्लेशियर-आधारित उत्पत्ति की संभावना जताते हैं. ऐसा माना जाता है कि यह नदी हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, और गुजरात के रास्ते बहती थी.
- पौराणिक कथाओं में सरस्वती को "समुद्र में विलीन" होने वाली नदी के रूप में बताया गया है.
- भूगर्भीय और जलविज्ञानी शोध बताते हैं कि यह नदी धीरे-धीरे सूख गई, संभवतः भौगोलिक बदलाव और जलवायु परिवर्तन के कारण.
कैसे विलुप्त हो गयी सरस्वती नदी?
वैज्ञानिक अब तक इस बात को लेकर भी पूरी तरह से सहमत नहीं हुए हैं कि कभी भारत के क्षेत्र में सरस्वती नदी बहती थी. हालांकि इसके अस्तित्व को लेकर तमाम दावे होते रहे हैं. कुछ वैज्ञानिकों का दावा रहा है कि भौगोलिक, जलवायु और मानवजनित कारणों से इस नदी का अस्तित्व समाप्त हो गया.
सरस्वती नदी के विलुप्ति के कुछ अहम कारण ये रहे होंगे
- भौगोलिक और टेक्टोनिक परिवर्तन - सरस्वती नदी का उद्गम हिमालय के ग्लेशियरों से हुआ था. भूगर्भीय हलचलों के कारण हिमालय से बहने वाली अन्य नदियों (जैसे सतलुज और यमुना) ने अपना मार्ग बदल लिया. सरस्वती नदी के सूखने का यह एक अहम कारक हो सकता है.
- जलधाराओं का विचलन- ऐसे दावे होते रहे हैं कि सरस्वती नदी का मुख्य जलस्रोत सतलुज और यमुना थीं. जब इन नदियों ने अपना मार्ग बदल लिया, तो सरस्वती नदी के पास जल प्रवाह के लिए पर्याप्त पानी नहीं बचा. जिस कारण यह समय के साथ समाप्त हो गया.
- जलवायु परिवर्तन- 4000-3000 ईसा पूर्व के दौरान माना जाता है कि भारतीय उपमहाद्वीप में जलवायु शुष्क होने लगी थी. मानसून कमजोर हो गया था जिससे नदी के जलस्तर में गिरावट आई और सरस्वती नदी विलुप्त होने लगी.
- मरुस्थलीकरण- राजस्थान के थार क्षेत्र में तेजी से रेगिस्तान का विस्तार हुआ. पानी के स्रोतों के सूखने और जमीन के नीचे रेत जमा होने के कारण नदी का प्रवाह रुक गया.
सैटेलाइट इमेज में सरस्वती नदी के अस्तित्व का होता रहा है दावा
सैटेलाइट इमेज में सरस्वती नदी को देखने का दावा किया जाता रहा है और इसे लेकर कई अध्ययन किए गए हैं. कुछ वैज्ञानिक और शोधकर्ता सैटेलाइट इमेजरी का उपयोग करके यह दावा करते हैं कि सरस्वती नदी का एक पुराना मार्ग आज भी भूगर्भीय संरचनाओं में मौजूद है. यह मार्ग मुख्यतः हिमालय से निकलकर हरियाणा, राजस्थान और गुजरात होते हुए अरब सागर में गिरने वाली नदी का पुराना मार्ग हो सकता है. सैटेलाइट इमेजों के माध्यम से, कुछ भूवैज्ञानिक और जलविज्ञानी ने पुराने नदी मार्गों की पहचान करने की कोशिश की है. इस इमेजरी में, विशेष रूप से उपग्रहों द्वारा ली गई छवियों में, सरस्वती नदी के प्राचीन प्रवाह के संकेत मिल सकते हैं, जो अब सूख चुके हैं.
Satellite images show the existence of Saraswati river. Thousands of ancient sites lie on its path exactly like the Vedas describe them. Indus Valley was Hindu/Vedic civilization. pic.twitter.com/1KWr83P4fn
— Indian Prehistory (@HINDprehistory) October 24, 2019
जैसलमेर के मोहनगढ़ का क्या है मामला?
मोहनगढ़ उप-तहसील के 27BD के जोरा माइनर पर ट्यूबवेल खोदते समय जमीन से पानी और गैस रिसाव की घटना हुई थी. रविवार ( 29 दिसंबर) को रात 10 बजे के आस पास अपने आप ही पानी निकलना बंद हो गया. पानी निकलने की वजह से 50 टन की ट्यूबवेल खोदने वाली मशीन पूरी तरह से जमीन में समा गई. उसकी हाईट 50 फीट के आसपास है.
जल धारा निकलने के पीछे वैज्ञानिक कारण क्या हैं?
मोहनगढ़ में जलधारा के फूटने को कुछ लोग सरस्वती नदी के पुनर्जीवित होने का प्रतीक मानते हैं हालांकि भूवैज्ञानिक शोध इसकी पुष्टि नहीं करते हैं. उनका मानना है कि यह क्षेत्र रेगिस्तानी है, जहां पानी की कमी होती है, लेकिन भूगर्भ में पानी के स्रोत हो सकते हैं. जब इन जल स्रोतों पर दबाव बढ़ता है, तो कभी-कभी पानी की धारा फूट पड़ती है. यह एक प्रकार का भूगर्भीय रिसाव होता है. हालांकि वैज्ञानिक इस बात से इनकार नहीं कर रहे हैं कि यह किसी प्राचीन धारा के अस्तित्व का भी संकेत हो सकता है.
खेत से अचानक पानी निकलता देख डरे ग्रामीण
खेत से अचानक पानी निकलता देखकर ग्रामीण अचानक डर गए. ट्यूबवेल की बारिंग करने वाली मशीन पूरी तरह से जमीन में धंस गई. प्रेशर के साथ दो दिन तक पानी निकलता रहा. आसपास के लोगों को पास जाने से रोक दिया गया. आशंका यह है कि कभी भी विस्फोट हो सकता है. जमीन धंसने की भी संभावना जताई गयी है.
पुलिस प्रशासन कर रही निगरानी
अतिरिक्त जिला कलेक्टर पवन कुमार ने बताया कि केयर्न एनर्जी कंपनी के विशेषज्ञ अधिकारियों ने निरीक्षण किया है. जल्द ही रिपोर्ट दी जाएगी. इसके बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी. जमीन से पानी निकलने वाले इलाके में प्रशासन और पुलिस निगरानी कर रही है. भू-जल वैज्ञानिक डॉ. नारायणदास इणखिया के अनुसार जमीन से पानी बहुत स्पीड में निकल रहा था. गैस के साथ निकले पानी में चिकनी मिट्टी भी निकली है. इस मिट्टी से फसल को नुकसान हो सकता है.
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