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This Article is From Apr 20, 2023

"समलैंगिक संबंध अब एक बार का रिश्ता नहीं, अब ये रिश्ते हमेशा टिके रहने वाले": CJI

समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने की मांग संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जब समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किया गया, तो आपको यह भी एहसास होता है कि ये एक बार के रिश्ते नहीं हैं, ये स्थायी रिश्ते भी हैं.

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"समलैंगिक संबंध अब एक बार का रिश्ता नहीं, अब ये रिश्ते हमेशा टिके रहने वाले": CJI
"समलैंगिक संबंध सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि भावनात्मक रूप से मिलन भी": CJI चंद्रचूड़
नई दिल्‍ली:

समलिंगी शादी को मान्यता की याचिका पर सुनवाई के दौरान सीजेआई चंद्रचूड़ ने अहम टिप्पणी दी है. उन्‍होंने कहा कि समलैंगिक संबंध एक बार का रिश्ता नहीं, अब ये रिश्ते हमेशा के लिए टिके रहने वाले हैं. ना ये सिर्फ शारीरिक, बल्कि भावनात्मक रूप से मिलन भी है. ऐसे में समान लिंग शादी के लिए 69 साल पुराने स्पेशल मेरिज एक्ट के दायरे का विस्तार करना गलत नहीं. ट्रोल होने की आशंका जताते हुए CJI ने कहा कि विषमलिंगी परिवार में बच्चे को घरेलू हिंसा का सामना करना पड़े तो क्या होगा? 
 

समलैंगिक शादियों को मान्यता देने की याचिका- तीसरे दिन की सुनवाई अहम बिंदु

सीजेआई 
- सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करके न केवल एक ही लिंग के सहमति देने वाले वयस्कों के बीच संबंधों को मान्यता दी, बल्कि इस तथ्य को भी स्वीकार किया कि समलैंगिक संबंध सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि भावनात्मक, स्थिर रिश्ते हैं.
- समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर अदालत भी पहले ही मध्यवर्ती चरण में पहुंच चुकी है, जिसने इस बात पर विचार किया था कि समान लिंग वाले लोग "स्थिर विवाह जैसे रिश्तों" में होंगे. इसलिए समलैंगिक विवाह का विस्तार SMA में करने में कुछ गलत नहीं है. 
- SMA के तहत आवश्यकता के अनुसार, पक्ष को "इच्छित विवाह" का नोटिस देना है, इससे उन लोगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है, जो समाज के सबसे कमजोर वर्ग हैं, जो कि हाशिए के समुदाय या अल्पसंख्यक हैं.
- पीठ अयोध्या मामले की सुनवाई की तरह इस मामले की दैनिक आधार पर सुनवाई करेगी. 
- CJI ने ट्रोल करने पर चिंता जताई, कहा कि जजों को आजकल सोशल मीडिया पर ट्रोल किया जाता है. ट्रोल होने की आशंका जताते हुए CJI ने कहा 
-  विषमलिंगी परिवार में बच्चे को घरेलू हिंसा का सामना करना पड़े तो क्या होगा? अगर कोई पति शराब पीकर घर आए और पैसे को लेकर पत्नी से झगड़ा करे. 

कानून ने वास्तव में समलैंगिक संबंधों को विकसित किया
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, "69 सालों में समाज और कानून विकसित हुए हैं. SMA केवल ढांचा प्रदान करता है. नई अवधारणाओं को इसमें आत्मसात किया जा सकता है. हम मूल व्याख्या से बंधे नहीं हैं. इसका विस्तार किया जा सकता है. हमारे कानून ने वास्तव में समलैंगिक संबंधों को विकसित किया है. समलैंगिकों को शामिल करने के लिए कानून संशोधित किया जा सकता है. हम किसी क़ानून को नहीं पढ़ रहे हैं. संवैधानिक गारंटी के संदर्भ में सिर्फ क़ानून का विस्तार करना है. हम किसी क़ानून की मूल व्याख्या से बंधे नहीं हैं." 

"जब समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किया गया..."
सुनवाई के दौरान CJI ने कहा, "सवाल यह है कि क्या एक पुरुष और एक महिला के बीच संबंध इतना मौलिक है कि हम समान लिंग के बीच संबंध को शामिल नहीं कर सकते? स्पेशल मैरिज एक्ट-1954 का उद्देश्य उन लोगों के विवाह की अनुमति देना था, जो विवाह के धार्मिक शासन से परे पूरी तरह से पर्सनल लॉ पर नहीं हैं. जब समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किया गया, तो आपको यह भी एहसास होता है कि ये एक बार के रिश्ते नहीं हैं, ये स्थायी रिश्ते भी हैं. ये ना सिर्फ शारीरिक तौर पर, बल्कि भावनात्मक रूप से भी ये मिलन स्थिर है." 

स्पेशल मैरिज एक्ट में 30 दिन...
इसके बाद वकील राजू रामचंद्रन ने बहस शुरू की और कहा, "पंजाब के अमृतसर में एक युवती काजल, जिसने दिल्ली हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की वो दलित है, जबकि उसकी हरियाणा निवासी पार्टनर भावना ओबीसी से ताल्लुक रखती है.उनके परिवार भी साधारण हैं.अर्बन एलीट तो उनको कतई नहीं माना जा सकता. ऐसे में केंद्र सरकार की ये अर्बन एलीट यानी शहरी संभ्रांत मानसिकता वाली दलील काल्पनिक और असंवेदनशील है. इन लड़कियों ने दिल्ली हाईकोर्ट में सुरक्षा मुहैया कराने की गुहार लगाते हुए अर्जी दाखिल की थी. उनके लिए समाज और परिवारों से सुरक्षा और संरक्षा का मतलब उनके विवाह को कानूनी मान्यता मिलना ही है. स्पेशल मैरिज एक्ट में 30 दिन के नोटिस के प्रावधान पर CJI चंद्रचूड़ ने कहा, "अगर एक जीवनसाथी या तो हाशिए के समुदाय या अल्पसंख्यक से संबंधित हो, तो इन पर प्रावधान पर असर पड़ेगा. ये बहुत ही वास्तविक संभावना है. इसका उन लोगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, जो हमारे समाज के सबसे कमजोर वर्ग हैं. दरअसल SMA की धारा 5 में प्रावधान है कि शादी करने वालों को जिले के विवाह अधिकारी को में लिखित रूप में नोटिस देने की आवश्यकता होती है, जिसमें शादी के लिए कम से कम एक पक्ष होना चाहिए. ये नोटिस देने की तारीख से 30 दिन की अवधि होती है. दरअसल, राजू रामचंद्रन ने कहा कि नोटिस की आवश्यकता अप्रिय प्रावधान है. इसे सभी के लिए रद्द किया जाना चाहिए.

"हम समाज का ही हिस्सा हैं. हम कोई एलियन नहीं"
राजू रामचंद्रन ने कहा, "हम समाज का ही हिस्सा हैं. हम कोई एलियन नहीं हैं. हमें भी गरिमा और समानता चाहिए. हमारा समाज कानून का पालन करने वाला है. अदालत ये आदेश जारी करे. समाज और परिवार के अलावा समलैंगिक विवाह करने वालों को खाप पंचायतों से भी सुरक्षा चाहिए. ये भी जरूरी है. इसे संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 की रोशनी में ऐसे विशेष विवाह के पहले दिए जाने वाले अनिवार्य नोटिस के सिलसिले में देखा जाना चाहिए. विशेष विवाह अधिनियम की धारा चार में पार्टनर या पक्ष ही लिखा जाना चाहिए बजाय पुरुष और स्त्री यानी वर-वधु के इससे समलैंगिकों की समस्या का हल काफी हद तक हो जाएगा. इस सोच में भी बदलाव की जरूरत है कि पुरुष पार्टनर रोटी कपड़ा मकान का इंतजाम करे और महिला पार्टनर घर गृहस्थी देखे." 

सीजेआई ने कहा कि हमें तो बताया गया है कि शादी की उम्र को लेकर सरकार का कोई विधेयक लंबित है. जस्टिस भट्ट ने कहा कि महिला-महिला के बीच शादी की उम्र 18 और दो पुरुषों के बीच विवाह के लिए 21 साल की उम्र तय करने में भी काफी दिक्कत है. क्योंकि ट्रांस जेंडर्स की उम्र का मसला अनसुलझा ही है. 

रामचंद्रन ने कहा कि अगर कोई गे, लेस्बियन, ट्रांस या किसी अन्य दर्जे की प्राथमिकता वाला हो, तो भी उनके लिए अपनी पसंद के पार्टनर के साथ मिलने का सुख उनकी अपनी खुशी से होने चाहिए, ताकि उनका मानसिक स्वास्थ्य भी सही रहे. इस पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि नवतेज जौहर वाले फैसले में मैंने एक पूरा चैप्टर मानसिक स्वास्थ्य और खुशी  पर लिखा है. विशेष विवाह अधिनियम बनाते हुए कोई संहिता नहीं बनाई गई, क्योंकि अंग्रेज अपने हिसाब से ईसाइयों के विवाह का नियम बना कर गए. फिर ब्रह्म समाज ने भी सेक्युलर लॉ की मांग की. 

समलिंगी शादी को मान्यता देने की याचिका 
- स्पेशल मेरिज एक्ट में 30 दिन के नोटिस के प्रावधान पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा 
-  स्पेशल मैरिज एक्ट जैसे कानून ऐसे समय में बनाए गए थे जब महिलाओं के पास एजेंसी नहीं थी 
-  कानून के तहत सार्वजनिक नोटिस की परिकल्पना की गई थी 
-  शादी के लिए आपत्तियां आमंत्रित करना पितृसत्तात्मक है 
-  निजता पर आक्रमण को सक्षम बनाता है 

दरअसल, विवाह अधिकारियों को आपत्तियां आमंत्रित करने या मनोरंजन करने के लिए विवाह से 30 दिन पहले उक्त सार्वजनिक नोटिस को अपने कार्यालय में एक प्रमुख स्थान या नोटिस बोर्ड पर प्रदर्शित करने की आवश्यकता होती है. नोटिस के विवरण में जोड़े के नाम, फोन नंबर, जन्म तिथि, आयु, व्यवसाय, पते और उनकी पहचान के संबंध में अन्य जानकारी शामिल है. याचिकाकर्ताओं की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि विभिन्न धर्मों के व्यक्तिगत कानूनों में ऐसा कोई प्रावधान मौजूद नहीं है. विवाह के लिए आपत्तियां आमंत्रित करने की 30 दिन की नोटिस अवधि सीधे याचिकाकर्ताओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है. 

CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने सोशल मीडिया पर ट्रोल करने पर चिंता जताई. उन्‍होंने कहा कि उनकी टिप्पणियों पर उन्हें ट्रोल किया गया. अब यह जजों के लिए चिंता का विषय बन गया है. हम कोर्ट में जो कहते हैं, उसका जवाब ट्रोल्स में होता है, कोर्ट में नहीं. विषमलैंगिक जोड़े अब शिक्षा के प्रसार के साथ और आधुनिक युग के दबाव के चलते या तो निःसंतान हैं या एक बच्चा चाहते हैं. चीन जैसे लोकप्रिय देश भी जनसांख्यिकीय मोर्चे पर हार रहे हैं. युवा, उच्च शिक्षित बच्चे नहीं चाहते. यह पसंद की बात है. 

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