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पूंजीवादी दुनिया के खिलाफ बढ़ते गुस्से को समझने में मददगार होगी रुचिर शर्मा की आगामी किताब

रॉकफेलर कैपिटल मैनेजमेंट के अंतरराष्ट्रीय कारोबार के प्रमुख रुचिर शर्मा की नई किताब 'व्हाट वेंट रॉन्ग विद कैपिटलिज्म' 16 जून को आएगी

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पूंजीवादी दुनिया के खिलाफ बढ़ते गुस्से को समझने में मददगार होगी रुचिर शर्मा की आगामी किताब
बेस्टसेलर लेखक रुचिर शर्मा की नई किताब 16 जून को आएगी.
नई दिल्ली:

'न्यूयॉर्क टाइम्स' में लिस्टेड बेस्टसेलर लेखक और रॉकफेलर कैपिटल मैनेजमेंट के अंतरराष्ट्रीय कारोबार के प्रमुख रुचिर शर्मा की नई किताब 'व्हाट वेंट रॉन्ग विद कैपिटलिज्म' 16 जून को आएगी. 'फाइनेंशियल टाइम्स' के कॉलमिस्ट शर्मा की 2020 में किताब 'द 10 रूल्स ऑफ सक्सेसफुल नेशंस' प्रकाशित हुई थी. इसके बाद से उनकी यह पांचवीं पुस्तक होगी.

पब्लिशिंग हाउस पेंगुइन रैंडम हाउस यूके ने नई किताब की घोषण की. उसने कहा कि आने वाली किताब में रुचिर शर्मा ने "मानक इतिहास को फिर से लिखा है, जो मार्गरेट थैचर और रोनाल्ड रीगन के दौर में शुरू हुए सरकार विरोधी विद्रोह से जुड़ा है."

यह किताब हमें पूंजीवादी दुनिया के खिलाफ बढ़ते गुस्से को समझने में मदद करने का वादा करती है (यह फिलहाल अमेरिकी कैंपसों में चल रहे विरोध प्रदर्शनों को व्यक्त करती है). पब्लिशर के प्रेस को जारी किए गए बयान के मुताबिक, इसके मौलिक तर्क को संक्षेप में इस कथन से समझा जा सकता है- "चार दशकों तक सरकार के आकार में कटौती, करों, खर्चों और रेगुलेशन में कटौती ने फाइनेंशियल मार्केट को बेतहाशा चलने के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया, असमानता को बढ़ावा दिया, विकास धीमा कर दिया और अधिकांश आबादी को अलग-थलग कर दिया."

श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स के पूर्व छात्र रुचिर शर्मा ने पहली बार अपनी पहली किताब, ब्रेकआउट नेशंस (2012) में अपने व्यापक दृष्टिकोण को लेकर ध्यान आकर्षित किया था. इसके लिए पत्रिका 'फॉरेन पॉलिसी' ने उन्हें टॉप ग्लोबल थिंकर्स में से एक के रूप में स्थान दिया था.

प्रकाशक के प्रेस को जारी किए गए बयान के अनुसार, रुचिर शर्मा ने अपनी आने वाली किताब में "एक सिकुड़ती सरकार की कहानी को एक मिथक के रूप में उजागर किया है." बयान में कहा गया है-  “ऐतिहासिक और वैश्विक व्यापकता के साथ (शर्मा) दर्शाते हैं कि सरकार ने एक सदी तक बिजनेस साइकल के रेगुलेटर, बॉरोवर, स्पेंडर और माइक्रो-मैनेजर के रूप में लगातार विस्तार किया है. केंद्रीय बैंकों के साथ काम करते हुए, खास तौर पर पिछले दो दशकों में, सरकारों ने आसान धन और बेलआउट की संस्कृति बनाई है जो अमीरों को और अमीर बना रही है और बड़ी कंपनियां और बड़ी हो रही हैं.

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