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'एक-दूसरे के त्‍योहार में जाना है जरूरी', संघ प्रमुख ने गिनाए फायदे... कानून के पालन पर कही ये बात  

सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा, 'हमारे देश की विविध संस्कृति में विभिन्न जाति, पंथ, और समुदाय के लोग रहते हैं. इन सबके बीच सौहार्द बनाए रखने और संबंध मजबूत करने के लिए एक-दूसरे के पर्व-त्योहारों में सम्मिलित होना बहुत जरूरी है.' 

'एक-दूसरे के त्‍योहार में जाना है जरूरी', संघ प्रमुख ने गिनाए फायदे... कानून के पालन पर कही ये बात  
  • संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि घरों में अपनी भाषा, परंपरा, वेशभूषा और संस्कृति बनाए रखना जरूरी है.
  • सरसंघचालक ने सामाजिक एकता के लिए एक-दूसरे के पर्व-त्योहारों में सम्मिलित होने पर विशेष जोर दिया है.
  • संघ प्रमुख ने क्रोध या अपमान की स्थिति में भी संयम बरतने और वैधानिक मार्ग से समाधान निकालने की सीख दी.
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नई दिल्ली:

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने समझाया है कि अपने घरों में अपनी भाषा, परंपरा, वेशभूषा और संस्कृति बनाए रखना जरूरी है. सरसंघचालक ने इस बात पर जोर दिया कि एक-दूसरे के पर्व-त्योहारों में शामिल होकर सामाजिक एकता मजबूत होती है, साथ ही प्रेम और करुणा बढ़ती है. उन्‍होंने एक महत्‍वपूर्ण बात कानून के पालन को लेकर भी कही. संघ प्रमुख ने कहा, 'विवाद या भड़काऊ स्थिति में कानून हाथ में नहीं लेना चाहिए, बल्कि कानूनी व्यवस्था पर भरोसा करना चाहिए.' आरएसएस के 100 वर्ष पूरे होने को लेकर आयोजित व्याख्यानमाला कार्यक्रम '100 वर्ष की संघ यात्रा: नए क्षितिज' के दूसरे दिन बुधवार को संघ प्रमुख मोहन भागवत ने ये बातें कहीं. 

... ताकि समाज में समरसता बनी रहे 

सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा, 'हमारे देश की विविध संस्कृति में विभिन्न जाति, पंथ, और समुदाय के लोग रहते हैं. इन सबके बीच सौहार्द बनाए रखने और संबंध मजबूत करने के लिए एक-दूसरे के पर्व-त्योहारों में सम्मिलित होना बहुत जरूरी है.' 

उन्‍होंने समझाया कि ऐसा करने से सामाजिक दूरियां घटती हैं, विश्वास बढ़ता है. साथ ही समाज में प्रेम और करुणा की भावना पनपती है. इस प्रकार के मेलजोल से हम मनुष्य के रूप में और बेहतर समझ और अपनत्व विकसित कर पाते हैं. मोहन भागवत ने कहा कि दूसरों की खुशियों में शामिल होने से समाज में समरसता आती है और आपसी भेद-भाव कम होते हैं.

'भड़काऊ स्थिति में भी कानून हाथ में न लें'

संघ प्रमुख ने अपने संबोधन के दौरान समझाया कि जब कभी कोई विवाद या भड़काऊ स्थिति उत्पन्न हो, तो व्यक्तिगत रूप से हिंसात्मक या गैरकानूनी कदम उठाना उचित नहीं है. कानून और न्याय व्यवस्था पर भरोसा रखकर वैधानिक मार्ग से समाधान निकालना चाहिए. 

उन्‍होंने स्पष्ट तौर पर समझाया कि बिना कानूनी सहारे के अपनी जिम्मेदारी स्वयं लेने से स्थिति बिगड़ सकती है और समाज में अस्थिरता का माहौल बन सकता है. ऐसे कार्यों से उपद्रवकारी तत्वों को बढ़ावा मिलता है जो समाज की भलाई के खिलाफ होता है.' 

उन्‍होंने कहा, 'यहां तक कि जब अचानक क्रोध आए या अपमानित किया जाए, तब भी संयम रखना जरूरी है और कानून प्रणाली का पालन करना चाहिए.' उन्‍होंने बताया, 'इस बात का भी जिक्र है कि छोटे-छोटे आंदोलन और शांतिपूर्ण विरोध के तरीके हैं, लेकिन इन्‍हें भी बिना कानून हाथ में लिए अपनाना चाहिए.'   

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