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'शिकंजी है तो कोका कोला क्यों', टैरिफ वॉर के बीच RSS प्रमुख भागवत ने दिया स्‍वदेशी मंत्र

संघ प्रमुख के संबोधन में मूल सार ये था कि जिस तरह अंतरराष्ट्रीय व्यापार में संघर्ष बढ़ रहे हैं, सामान्य भारतीय नागरिक के लिए सबसे महत्वपूर्ण कार्य है स्वदेशी वस्तुओं को प्राथमिकता देना.

'शिकंजी है तो कोका कोला क्यों', टैरिफ वॉर के बीच RSS प्रमुख भागवत ने दिया स्‍वदेशी मंत्र
  • सरसंघचालक मोहन भागवत ने संघ के 100 वर्ष पूर्ण होने पर स्वदेशी अपनाने और आत्‍मनिर्भरता पर जोर दिया.
  • उन्होंने विदेशी वस्तुओं के स्थान पर स्थानीय उद्योगों और पारंपरिक उत्पादों को प्राथमिकता देने का आह्वान किया.
  • संघ प्रमुख ने कहा कि कोका कोला और पिज्जा की जगह घरेलू शिकंजी और पोषक भोजन का सेवन करना चाहिए.
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मौजूदा जियोपॉलिटिकल टेंशन के बीच अमेरिका की ओर से छेड़े गए टैरिफ वॉर पर भारत की ओर से तमाम जरूर कदम उठाए जा रहे हैं. आत्‍मनिर्भरता पर जोर दिया जा रहा है. इसी क्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने स्‍वदेशी मंत्र दोहराया है. उन्‍होंने एक बड़ा ही सरल उदाहरण देकर कहा कि जब हमारे पास स्‍वदेशी शिकंजी है, तो कोका-कोला, स्‍प्राइट वगैरह क्‍यों पीना! अमेरिका की ओर से थोपे गए 50% टैरिफ के बीच उन्‍होंने सख्‍त संदेश दिया है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार किसी दबाव में नहीं, बल्कि स्वेच्छा से होना चाहिए. उन्होंने भारत को आत्मनिर्भर बनने और इस तरह की चुनौतियों का मुकाबले करने के लिए स्वदेशी अपनाने पर भी जोर दिया. 

आरएसएस के 100 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर आयोजित व्याख्यानमाला कार्यक्रम '100 वर्ष की संघ यात्रा: नए क्षितिज' के दूसरे दिन बुधवार को सरसंघचालक मोहन भागवत ने ये बातें कहीं. 

स्‍वदेशी को प्राथमिकता देने का मंत्र 

संघ प्रमुख के संबोधन में मूल सार ये था कि जिस तरह अंतरराष्ट्रीय व्यापार में संघर्ष बढ़ रहे हैं, सामान्य भारतीय नागरिक के लिए सबसे महत्वपूर्ण कार्य है स्वदेशी वस्तुओं को प्राथमिकता देना. विदेशी वस्तुओं के स्थान पर स्थानीय उत्पादों को खरीदना, अपने देश के ग्रामीण और शहरी उद्योगों का समर्थन करना देश की आर्थिक आत्मनिर्भरता बढ़ाता है. उन्‍होंने समझाया कि विदेशी ब्रैंड की जगह पारंपरिक और घरेलू वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए.

जो चीज हमारे घर में, देश में बनती है. उसे बाहर से क्यों लाना. कोका कोला-स्प्राइट बाहर का क्यों लाना, जब आप गर्मी के दिनों में नींबू की अच्छी शिकंजी बनाकर पी सकते हो. पिज्जा वगैरह क्यों लाना, जब घर में अच्छा और पोषक भोजन मिलता है. डॉक्टर लोग भी इनके लिए मना करते हैं. हां एकाध बार पिज़्ज़ा खाया जा सकता है. इतना लचीलापन तो रखना चाहिए. लेकिन हर इतवार को बाहर जाकर खाना क्यों खाना? ऐसा नहीं करना है.

मोहन भागवत

सरसंघचालक

उन्‍होंने समझाया कि इस तरह के व्यवहार से न केवल हमारी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है, बल्कि स्थानीय रोजगार भी बढ़ते हैं और सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. 

टैरिफ वॉर के बीच क्या कर सकता है आम भारतीय

संघ प्रमुख ने समझाया कि विदेशी वस्तुओं के बजाय खुद के देश में बने उत्पादों का उपयोग करने से न सिर्फ स्थानीय उद्योगों को मजबूती मिलती है बल्कि आर्थिक आत्मनिर्भरता भी बढ़ती है. इसके लिए छोटे-छोटे कदम भी अहम हैं. घरेलू, पारंपरिक भोजन व पेय पदार्थों का सेवन बढ़ाना चाहिए. बार-बार बाहर जाकर खाने-पीने की आदत से बचना चाहिए, क्योंकि इससे न केवल स्वस्थ जीवनशैली प्रभावित होती है, बल्कि स्थानीय रोजगार भी प्रभावित होते हैं. वे कहते हैं कि स्वदेशी अपनाना और स्थानीय वस्तुओं को प्रोत्साहित करना हमारे विकास के लिए अनिवार्य है.

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