
- संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरएसएस के 100 वर्ष पूर्ण होने पर दिल्ली में आयोजित व्याख्यानमाला को संबोधित किया.
- कहा- हिंदू राष्ट्र का अर्थ यह नहीं कि हम किसी को छोड़ रहे हैं. हिंदू राष्ट्र का मतलब किसी का विरोध नहीं है.
- 'जो अपने मार्ग पर चलने में विश्वास रखता है और अलग-अलग मान्यताओं वाले लोगों का भी सम्मान करता है, वही हिंदू है'
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हमें बताएं।हिंदू राष्ट्र को लेकर अक्सर बहस चलती है. विपक्षी दल और विचारधारा के लोग इस मुद्दे पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर निशाना साधते हैं. मंगलवार को आरएसएस के 100 वर्ष पूरे होने पर दिल्ली में आयोजित व्याख्यानमाला में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदू और हिंदू राष्ट्र का मतलब समझाया. उन्होंने कहा कि हिंदू राष्ट्र का मतलब किसी का विरोध करना नहीं है. भागवत ने अपने संबोधन में हिंदू राष्ट्र को लेकर 10 बड़ी बातें क्या कहीं, आइए बताते हैं-
- हिंदू कौन है, वह जो अपने मार्ग पर चलने में विश्वास रखता है और अलग-अलग मान्यताओं वाले लोगों का भी सम्मान करता है, वही हिंदू है. हमारा स्वाभाविक धर्म समन्वय का है, टकराव का नहीं है.
- भारत में पिछले 40 हजार वर्षों से रह रहे लोगों का डीएनए एक है. मिलजुलकर रहना हमारी संस्कृति है. हम एकता के लिए एकरूपता को जरूरी नहीं मानते. विविधता में भी एकता है. विविधता, एकता का ही परिणाम है.
- जब हम हिंदू राष्ट्र कहते हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि हम किसी को छोड़ रहे हैं. हिंदू राष्ट्र का मतलब किसी का विरोध नहीं है. संघ किसी के विरोध में नहीं निकला है, किसी की प्रतिक्रिया में नहीं निकला है.
- हिंदू राष्ट्र शब्द का सत्ता से कोई मतलब नहीं है. हिंदू राष्ट्र के प्रखर होते समय जो-जो शासन रहा है, वह पंथ- संप्रदाय का विचार करने वाला शासन नहीं है. उसमें सबके लिए न्याय समान है. पंथ संप्रदाय, भाषा.. कुछ भी भेद नहीं. सबके लिए सबकुछ समान है.
- भागवत ने हिंदुओं को भूगोल और परंपराओं की व्यापक रूपरेखा में परिभाषित किया और कहा कि कुछ लोग जानते हैं, लेकिन खुद को हिंदू नहीं मानते, जबकि कुछ अन्य इसे नहीं जानते.
- प्राचीन काल से ही भारतीयों ने कभी लोगों के बीच भेदभाव नहीं किया, क्योंकि वे यह समझते थे कि सभी और विश्व एक ही दिव्यता से बंधे हैं. "हिंदू" शब्द का प्रयोग बाहरी लोग भारतीयों के लिए करते थे. हम कभी मनुष्यों में अंतर नहीं करते थे.
- उन्होंने कहा कि हिंदू अपने मार्ग पर चलने और दूसरों का सम्मान करने में विश्वास रखते हैं तथा वे किसी मुद्दे पर लड़ने में नहीं, बल्कि समन्वय में विश्वास रखते हैं.
- हमारे देश में कई धर्म थे, लेकिन सबका स्वभाव स्वीकार करने वाला था. ऐसी श्रद्धा रखने वालों को ही हिंदू कहा गया. दूसरों की भी श्रद्धा का सम्मान करो, उसका अपमान मत करो. सब इसी मिट्टी से बने हैं, मिलजुलकर रह सकते हैं, फालतू में झगड़ा क्यों करते हो.
- भारत में पिछले 40 हजार वर्षों से रह रहे लोगों का डीएनए एक है. मिलजुल कर सद्भावना से रहना हमारी संस्कृति है. हम एकता के लिए एकरूपता को जरूरी नहीं मानते. विविधता में भी एकता है. विविधता, एकता का ही परिणाम है.
- भारत आजादी के 75 वर्षों में वह दर्जा हासिल नहीं कर सका, जो उसे मिलना चाहिए था. आरएसएस का उद्देश्य देश को विश्वगुरु बनाना है और दुनिया में भारत के योगदान का समय आ गया है.
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