
- आरएसएस के 100 वर्ष पूरे होने पर दिल्ली में आयोजित व्याख्यान श्रृंखला में मोहन भागवत ने संबोधन दिया.
- कहा- जो अपने मार्ग पर चलने में विश्वास रखता है, अलग-अलग मान्यताओं के लोगों का सम्मान करता है, वही हिंदू है.
- कहा- संघ की सार्थकता भारत के विश्व गुरु बनने में है. भारत को दुनिया में योगदान देना है और अब वो समय आ गया है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100 साल पूरे होने (शताब्दी वर्ष) पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि संघ की सार्थकता भारत के विश्व गुरु बनने में है. भारत को दुनिया में योगदान देना है और अब वो समय आ गया है. उन्होंने हिंदू राष्ट्र का भी अर्थ बताया और कहा कि हिंदू राष्ट्र शब्द का सत्ता से कोई मतलब नहीं है. जब हम हिंदू राष्ट्र कहते हैं तो उसका मतलब ये नहीं कि हम किसी को छोड़ रहे हैं, किसी का विरोध कर रहे हैं, ऐसा नहीं है.
दिल्ली में आयोजित व्याख्यान श्रृंखला में भागवत ने कहा कि हिंदू कौन है, वह जो अपने मार्ग पर चलने में विश्वास रखता है और अलग-अलग मान्यताओं वाले लोगों का भी सम्मान करता है, वही हिंदू है. हमारा स्वाभाविक धर्म समन्वय का है, टकराव का नहीं है. भारत में पिछले 40 हजार वर्षों से रह रहे लोगों का डीएनए एक है. मिलजुलकर रहना हमारी संस्कृति है. हम एकता के लिए एकरूपता को जरूरी नहीं मानते. विविधता में भी एकता है. विविधता, एकता का ही परिणाम है.
RSS शताब्दी समारोह:
— NDTV India (@ndtvindia) August 26, 2025
'संघ की सार्थकता भारत के विश्वगुरु बनने में है': संघ प्रमुख डॉ मोहन भागवत#RSS100 pic.twitter.com/jUhsUJ0WiG
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि हिंदू राष्ट्र शब्द का सत्ता से कोई मतलब नहीं है. और हिंदू राष्ट्र के प्रखर होते समय जो-जो शासन रहा है, वह पंथ- संप्रदाय का विचार करने वाला शासन नहीं है. उसमें सबके लिए न्याय समान है. पंथ संप्रदाय, भाषा.. कुछ भी भेद नहीं. सबके लिए सबकुछ समान है. इसलिए जब हम हिंदू राष्ट्र कहते हैं तो उसका मतलब ये नहीं कि हम किसी को छोड़ रहे हैं, किसी का विरोध कर रहे हैं, ऐसा नहीं है. संघ किसी के विरोध में, किसी की प्रतिक्रिया में नहीं निकला है.
भागवत ने गोलवलकर का एक किस्सा बताते हुए कहा कि एक बार गुरुजी से किसी ने पूछा कि हमारे गांव में तो मुसलमान, ईसाई है ही नहीं, हमारे यहां शाखा का क्या काम? तो गुरुजी ने कहा कि गांव की तो छोड़ो अगर पूरी दुनिया में भी मुसलमान-ईसाई नहीं होते तो भी, अगर हिंदू समाज इस अवस्था में रहता तो संघ की शाखा की आवश्यकता थी.

RSS शताब्दी वर्ष समारोह में तमाम हस्तियां भी उपस्थित रहीं.
भागवत ने कहा कि भारत दो बार की बड़ी गुलामियों को झेलकर आजाद हुआ है. 1857 के बाद भारतीय असंतोष ठीक से व्यक्त हो और वह नुकसान न करे, इसलिए कुछ व्यवस्था हो रही थी, लेकिन कुछ लोगों ने उसको अपने वश में कर लिया और उसे स्वतंत्रता की लड़ाई का हथियार बनाया.
उन्होंने कहा कि इंडियन नैशनल कांग्रेस नाम से वह धारा चली है. उसी में से अनेक राजनीतिक प्रवाह निकले. इतने सारे राजनीतिक दल निकले. उस राजनीतिक आंदोलन ने देश के लिए चरखा चलाना और जीना-मरना सिखाया. आजादी के बाद उस धारा को जैसा होना चाहिए था, वैसा होता तो आज का दृश्य कुछ अलग होता. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. दोष देने की बात नहीं है, यह फैक्ट है.
उन्होंने कहा कि देश में एक तीसरी धारा थी, जिन्होंने समाज से अपने मूल पर चलने को आह्वान किया. स्वामी दयानंद सरस्वती और स्वामी विवेकानंद इस धारा के प्रमुख नाम थे. संघ पूरे भारत में सबको संगठित करने का काम कर रहा है. कुछ लोग संघ के धुर विरोधी थे, वो भी आज समर्थक बन गए हैं.
भागवत ने कहा कि विविधता में भी एकता है. मान लीजिए कि कोई परीक्षा है और उसमें प्रश्न चार हैं. दो कठिन हैं और दो आसान हैं, तो पहले कौन सा चुनोगे. पहले आसान प्रश्न चुनना चाहिए. जो अपने आपको हिंदू कहते हैं, उनका जीवन अच्छा बनाओ, तो किसी कारण जो अपने आपको हिंदू होकर भी नहीं कहते हैं, वे भी कहेंगे. यह होने लगा है. जो भूल गए हैं, उनको भी याद आएगा. वह भी होगा. संपूर्ण हिंदू समाज का संगठन जरूरी है.
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