नई दिल्ली:
वन रैंक वन पेंशन की मांग को लेकर सेना के पूर्व सैनिक रामकिशन ग्रेवाल की आत्महत्या को लेकर विवाद अभी थमा भी नहीं था कि दिल्ली के जंतर मंतर पर अर्द्धसैनिक बलों के रिटायर्ड कर्मी अपनी मांगों को लेकर धरने पर बैठ गए.
जंतर मंतर पर ही पूर्व सैनिक करीब 500 दिनों से धरना प्रर्दशन कर रहे हैं. अर्द्धसैनिक बलों में 12 लाख कर्मी सेवा में और 8 लाख कर्मी रिटायर्ड हैं जिनकी शिकायत है कि वो ड्यूटी और जिम्मेदारी तो सेना के जवान से कम नहीं निभाते लेकिन बात जब सुविधाओं और वेतन की आती है तो उन्हें पीछे कर दिया जाता है.
हद तो यह है कि लद्दाख जैसे मुश्किल हालात में एक ही जगह ड्यूटी करने पर सेना के जवान की तुलना में अर्द्धसैनिक बलों के जवानों को करीब 20 फीसदी भत्ता मिलता है.
और तो और आतंकवाद से लेकर मुश्किल हालात में सेना के जवान को हर महीने दो हजार और अधिकारी को छह हजार रुपये भत्ता मिलता है, जबकि अर्द्धसैनिक बलों के जवानों को ऐसा कुछ नहीं मिलता. इसी का नतीजा है कि सेना के एक जवान और अर्द्धसैनिक बलों के जवान की तनख्वाह में आठ से दस हजार रुपये का अंतर हो जाता है.
इनकी ये भी शिकायत है सरहद से लेकर आतंकवादियों से लड़ते हुए जब ये मरते हैं तो शहीद का दर्जा तक नसीब नहीं होता है. साथ में परिवार वालों को सेना की तुलना में करीब आधा ही आर्थिक मदद मिलती है. 2004 के बाद तो पेंशन तक नहीं मिलती है. इनकी मांग है कि इन्हें भी वन रैक वन पेंशन मिले और लगभग वो सारी सुविधायें मिलें जो सेना के जवानों को मिलती हैं. इसके लिए इनलोगों ने सरकार को 60 दिन का वक्त दिया है वरना फिर से आंदोलन की शुरुआत करेंगे.
जंतर मंतर पर ही पूर्व सैनिक करीब 500 दिनों से धरना प्रर्दशन कर रहे हैं. अर्द्धसैनिक बलों में 12 लाख कर्मी सेवा में और 8 लाख कर्मी रिटायर्ड हैं जिनकी शिकायत है कि वो ड्यूटी और जिम्मेदारी तो सेना के जवान से कम नहीं निभाते लेकिन बात जब सुविधाओं और वेतन की आती है तो उन्हें पीछे कर दिया जाता है.
हद तो यह है कि लद्दाख जैसे मुश्किल हालात में एक ही जगह ड्यूटी करने पर सेना के जवान की तुलना में अर्द्धसैनिक बलों के जवानों को करीब 20 फीसदी भत्ता मिलता है.
और तो और आतंकवाद से लेकर मुश्किल हालात में सेना के जवान को हर महीने दो हजार और अधिकारी को छह हजार रुपये भत्ता मिलता है, जबकि अर्द्धसैनिक बलों के जवानों को ऐसा कुछ नहीं मिलता. इसी का नतीजा है कि सेना के एक जवान और अर्द्धसैनिक बलों के जवान की तनख्वाह में आठ से दस हजार रुपये का अंतर हो जाता है.
इनकी ये भी शिकायत है सरहद से लेकर आतंकवादियों से लड़ते हुए जब ये मरते हैं तो शहीद का दर्जा तक नसीब नहीं होता है. साथ में परिवार वालों को सेना की तुलना में करीब आधा ही आर्थिक मदद मिलती है. 2004 के बाद तो पेंशन तक नहीं मिलती है. इनकी मांग है कि इन्हें भी वन रैक वन पेंशन मिले और लगभग वो सारी सुविधायें मिलें जो सेना के जवानों को मिलती हैं. इसके लिए इनलोगों ने सरकार को 60 दिन का वक्त दिया है वरना फिर से आंदोलन की शुरुआत करेंगे.
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