मार्कंडेय काटजू
नई दिल्ली:
सौम्या दुष्कर्म मामले में फैसले पर टिप्पणी को लेकर स्पष्टीकरण के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा तलब किए गए न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू ने कहा कि वह ऐसा करने के लिए तैयार हैं लेकिन चाहते हैं कि शीर्ष अदालत इस बारे में विचार करे कि क्या संविधान का अनुच्छेद 124 (7) उन्हें शीर्ष अदालत के समक्ष पेश होने से रोकता तो नहीं है.
उच्चतम न्यायालय ने दो दिन पहले काटजू को उन ‘बुनियादी खामियों’ को इंगित करने के लिए निजी तौर पर पेश होने को कहा जिनके बारे में उन्होंने सौम्या बलात्कार मामले में दावा किया है.
काटजू ने फेसबुक पर एक टिप्पणी में लिखा था, "मुझे खुली अदालत में मामले में पेश होने और विचार-विमर्श करने पर खुशी होगी, लेकिन केवल इतना चाहता हूं कि न्यायाधीश इस बारे में विचार कर लें कि क्या उच्चतम न्यायालय का पूर्व न्यायाधीश होने के नाते संविधान के अनुच्छेद 124 (7) के तहत मेरा पेश होना निषिद्ध तो नहीं है. अगर न्यायाधीश कहते हैं कि यह अनुच्छेद मुझे नहीं रोकता तो मुझे पेश होने में और अपने विचार रखने में खुशी होगी."
अनुच्छेद 124 उच्चतम न्यायालय की स्थापना और गठन से संबंधित है और इसका खंड सात कहता है, "उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर रहा कोई व्यक्ति भारत के क्षेत्र में किसी अदालत या किसी प्राधिकरण के समक्ष दलील नहीं देगा या कार्रवाई नहीं करेगा."
काटजू ने अपनी ताजा पोस्ट में यह भी कहा कि वह अपना विस्तृत जवाब तैयार कर रहे हैं जिसे उनके फेसबुक पेज पर अपलोड किया जाएगा. उन्होंने कहा, "मुझे सौम्या मामले में उच्चतम न्यायालय से अभी तक कोई नोटिस नहीं मिला है.
हालांकि इस बारे में केरल सरकार के वकील ने मुझे अनौपचारिक रूप से सूचित किया है."
त्रिशूर की एक अदालत ने एक फरवरी, 2011 को 23 वर्ष की सौम्या से बलात्कार के मामले में गोविंदाचामी को मौत की सजा सुनाई थी. उच्च न्यायालय ने मौत की सजा पर मुहर लगा दी. शीर्ष अदालत ने मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया.
काटजू ने पहले फेसबुक पर एक पोस्ट में शीर्ष अदालत के फैसले की आलोचना करते हुए इस पर पुनर्विचार की जरूरत बताई थी. न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति यूयू ललित की शीर्ष अदालत की पीठ ने 17 अक्टूबर को काटजू को इस मामले में नोटिस जारी कर अदालत में 11 नवंबर को व्यक्तिगत रूप से पेश होने और कार्यवाही में भाग लेने को कहा.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
उच्चतम न्यायालय ने दो दिन पहले काटजू को उन ‘बुनियादी खामियों’ को इंगित करने के लिए निजी तौर पर पेश होने को कहा जिनके बारे में उन्होंने सौम्या बलात्कार मामले में दावा किया है.
काटजू ने फेसबुक पर एक टिप्पणी में लिखा था, "मुझे खुली अदालत में मामले में पेश होने और विचार-विमर्श करने पर खुशी होगी, लेकिन केवल इतना चाहता हूं कि न्यायाधीश इस बारे में विचार कर लें कि क्या उच्चतम न्यायालय का पूर्व न्यायाधीश होने के नाते संविधान के अनुच्छेद 124 (7) के तहत मेरा पेश होना निषिद्ध तो नहीं है. अगर न्यायाधीश कहते हैं कि यह अनुच्छेद मुझे नहीं रोकता तो मुझे पेश होने में और अपने विचार रखने में खुशी होगी."
अनुच्छेद 124 उच्चतम न्यायालय की स्थापना और गठन से संबंधित है और इसका खंड सात कहता है, "उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर रहा कोई व्यक्ति भारत के क्षेत्र में किसी अदालत या किसी प्राधिकरण के समक्ष दलील नहीं देगा या कार्रवाई नहीं करेगा."
काटजू ने अपनी ताजा पोस्ट में यह भी कहा कि वह अपना विस्तृत जवाब तैयार कर रहे हैं जिसे उनके फेसबुक पेज पर अपलोड किया जाएगा. उन्होंने कहा, "मुझे सौम्या मामले में उच्चतम न्यायालय से अभी तक कोई नोटिस नहीं मिला है.
हालांकि इस बारे में केरल सरकार के वकील ने मुझे अनौपचारिक रूप से सूचित किया है."
त्रिशूर की एक अदालत ने एक फरवरी, 2011 को 23 वर्ष की सौम्या से बलात्कार के मामले में गोविंदाचामी को मौत की सजा सुनाई थी. उच्च न्यायालय ने मौत की सजा पर मुहर लगा दी. शीर्ष अदालत ने मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया.
काटजू ने पहले फेसबुक पर एक पोस्ट में शीर्ष अदालत के फैसले की आलोचना करते हुए इस पर पुनर्विचार की जरूरत बताई थी. न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति यूयू ललित की शीर्ष अदालत की पीठ ने 17 अक्टूबर को काटजू को इस मामले में नोटिस जारी कर अदालत में 11 नवंबर को व्यक्तिगत रूप से पेश होने और कार्यवाही में भाग लेने को कहा.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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