नमस्कार मैं रवीश कुमार,
चर्चा किसकी ज्यादा हो कांग्रेस की भारत जोडो यात्रा की या कांग्रेस में टूट फूट की? आज के दौर में दलबदल एक प्रतिष्ठित राजनीतिक कर्म हो चुका है. इसके लिए आप ईश्वर और जनता से किया गया वादा तोड़कर बीजेपी में शामिल हो जाइए. तब भी आपका ओहदा इतना बढ सकता है कि दलबदल के तीन चार दिनों के भीतर गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद साहब आठों दल बदलुओं के साथ दिल्ली आते हैं. दोपहर तक यही चर्चा होती है कि उनकी मुलाकात प्रधानमंत्री से होने वाली है या बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से. गोवा में कांग्रेस को तोड़कर बीजेपी ने कांग्रेस को खुली चुनौती दे दी है कि अगर एक पार्टी के रूप में कांग्रेस ही नहीं बचेगी तो वो भारत जोड़ने की राजनीतिक एजेंसी बनने की दावेदारी कैसे कर पाएगी?
गोवा के विधायकों का दिल्ली आना बता रहा है कि दलबदल की इस घटना को पार्टी का नेतृत्व कितनी अहमियत देता है. काँग्रेस भले ही इस दलबदल को कर आगे बढ़ने का संकेत दे रही हो लेकिन बीजेपी आगे आकर बता रही है कि उसके लिए ये दलबदल केवल कांग्रेस से बीजेपी में आने की घटना नहीं है. पार्टी का नेतृत्व दलबदलुओं से दूरी नहीं बनाता है. आप भले ये पूछ सकते हैं कि जिस कांग्रेस को वह भ्रष्टाचार में डूबी पार्टी बताती रहती है, उसी कांग्रेस से दर्जनों नेता बीजेपी में क्यों लाए जाते हैं? क्या इनकी ईमानदारी के प्रति बीजेपी इतनी आश्वस्त है? इनकी राजनीति हमेशा ही राष्ट्रवाद से ओतप्रोत रही होगी और पवित्र रही होगी. कांग्रेस तो यही आरोप लगती है कि धन के लोग में और जांच एजेंसियों के डर से बीजेपी में ले जाया गया है. दलबदल का जो इतिहास रहा है उसमें यह सवाल या संदेह एकदम से निराधार नहीं कहा जा सकता. बीजेपी भी कहती है कि कांग्रेस से अपना घर नहीं संभालता, देश का संभालेगी, लेकिन क्या सब कुछ इतना मासूम तरीके से हो रहा है कि कांग्रेस अपने आप टूटती जा रही है.
बीजेपी का काम केवल कांग्रेस से आए नेताओं को समेटना रह गया है. सवाल कांग्रेस पर भी है कि वो टूट क्यों नहीं रोक पाती? कई नेताओं के संबंध में मीडिया में कई दिनों से चर्चाएं चलने लगती है मगर कांग्रेस उनके खिलाफ अपनी तरफ से कार्रवाई करने या निकाल देने की हिम्मत नहीं जुटा पाती. इस दौरान बीजेपी में जाने वाले नेता या कथित तौर पर बीजेपी की तरफ से बैटिंग करने वाले नेता कांग्रेस नेतृत्व को पत्र लिखने लग जाते हैं, सवाल उठाते हैं और मीडिया में इंटरव्यू देने लग जाते हैं. जाने से पहले उनके इन सवालों से लगता है कि वे लोकतंत्र को आखरी बार जमकर जी लेना चाहते हैं. क्या पता जिस पार्टी में जा रहे हैं वहां पत्र लिखने की बात तो दूर काना की भी अनुमति ना मिले. इस दलबदल का भी कोई जवाब नहीं. अस्सी साल के कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब लोग कांग्रेस के कई नेताओं के साथ बीजेपी में शामिल हो गए. ये सभी नेता कुछ महीने पहले तक कांग्रेस संस्कृति में रचे बसे हुए थे जिनके कारण बीजेपी के हिसाब से सत्तर साल में कुछ भी नहीं हुआ. यही नहीं जिस बीजेपी में पचहत्तर साल के होने पर टिकट कट जाता है, मंत्री पद चला जाता है उसमें अस्सी साल के कैप्टन अमरिंदर सिंह का स्वागत हुआ है. भले याद ना रहा हो मगर बीजेपी ने अमरिंदर सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप तो लगाए ही होंगे.
एन मार्गदर्शक मंडल में जाएंगे या बीजेपी के भीतर किसी और तारा मंडल का हिस्सा बने. वैसे बहुत दिनों से मार्गदर्शक मंडल का ना तो विस्तार हुआ है ना इस की किसी बैठक की खबर आई है. गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन ने जब इस्तीफा दिया था तब कहा था कि वे पचहत्तर साल की होने वाली है, लेकिन अस्सी साल की उम्र में हाल तक कांग्रेसी रहे बीजेपी में नई पारी की शुरुआत करने आ रहे हैं. ठीक है कि कॅप्टन चुनाव नहीं लडेंगे लेकिन क्या वे लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के साथ मार गदर मंडल में शामिल किए जाएंगे? बीजेपी परिवारवाद के खिलाफ रही है यहाँ कैप्टन अपने परिवार के साथ बीजेपी में आए तीन मार्च दो हजार अठारह को प्रधानमंत्री मोदी ने पंजाब में एक बयान दिया कि कांग्रेस अपने मुख्यमंत्री को अपना नहीं समझती है. वो एक आजाद सिपाही की तरह अकेले चले जा रहे हैं. इस बात पर तत्कालीन मुख्यमंत्री कॅप्टन अमरिंदर सिंह ने उसी दिन जवाब दिया कि प्रधानमंत्री जी आपसे ऐसा किसने कहा? मैंने तो नहीं कहा क्या कांग्रेस के आला कमान ने आपसे मेरे बारे में शिकायत है. मैं कर देना चाहता हूँ की इस तरह के फालतू बयानों से आप मेरे और मेरी पार्टी के बीच दरारें पैदा नहीं कर सकते हैं. चुनाव आया तो अमरिंदर सिंह ने पंजाब लोग कांग्रेस बना ली. बीजेपी से गठबंधन कर लिया. अब कुछ नेताओं के साथ बीजेपी में शामिल हो गए.
इंट्रेस्ट कंट्री एम साहब और आपके पूरे टीम को भारतीय जनता पार्टी में विलय होने पर बहुत बहुत शुभकामनाएं और आपका स्वागत करना चाहता हूं. धन्यवाद. इस देश में दलबदल का अतीत रहा है, लेकिन इस समय जो दलबदल हो रहा है उसे केवल अतीत के चश्मे से नहीं देख सकते. इस समय दलबदल के जरिए वह सब हो जो अतीत में शायद नहीं हुआ. आप दावे से नहीं कह सकते कि अब विचारधारा परिवर्तन की घटनाएं है. कांग्रेस के भीतर इतने सारे नेता इतने दिनों से किसी महान नेता के पीछे चलने के लिए तड़प रहे थे. ये तब पता चलता है जब ये बीजेपी में जाते हैं. बीजेपी के भीतर जल्दी ही कांग्रेस से आए नेताओं के बैच बनने वाले हैं. जैसे आईएएस अफसरों की पहचान नब्बे के बैच से होती है. पंचानवे बैच से होती है. राहुल गाँधी की इतनी हैसियत तो है कि उनसे बगावत कर मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, कर्नाटक, असम में कई नेता मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री बन गए. गुना सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया को हरा देने वाले बीजेपी सांसद केपी यादव कभी मंत्री नहीं बन सके. मगर उनसे हारने के बाद भी ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से बीजेपी में आए. राज्यसभा सदस्य बने और अब केंद्रीय मंत्री हैं. गुजरात कांग्रेस के विधायक जवाहर चावडा ने विधायकी से इस्तीफा दिया. चौबीस घंटे के भीतर रूपाणी सरकार में कैबिनेट मंत्री बना दिए गए. उसी तरह कुमार सिंह बावलियां कांग्रेस छोड़कर रुपाणी सरकार में कैबिनेट मंत्री बना दिए गए. इस सवाल का जवाब तो प्रधानमंत्री ही दे सकते हैं कि वे किस हद तक विपक्षी दलों के नेताओं के संपर्क में रहते हैं. अपने दल के साथ साथ विपक्षी दलों के भीतर कितनी मेहनत करते हैं या अपने दल से ज्यादा केवल विपक्षी दलों के भीतर मेहनत करते हैं ताकि आस पास कोई विकल्प ही ना उभरे. राजनीति का ये खेल जन समर्थन के दम पर नहीं खेला जा रहा है. इसकी एजेंसियां दूसरी होती हैं. बिहार में भी याद कीजिये चिराग पासवान की अपनी पार्टी है मगर उन्होंने खुद को प्रधानमंत्री मोदी का हनुमान बताया था.
यह बयान गुजरात में तीन बार कांग्रेस के विधायक रहे अश्विन कोटवाल का है. इस साल कोटवाल कांग्रेस से बीजेपी में आ गए कोटवाल ने कहा वे शुरू से ही मोदीभक्त रहे हैं. भले ही वे तीन बार से कांग्रेस के टिकट पर चुने जाते रहे मगर दिल में मोदी जी ही रहे. बताइए दो हजार सत्रह के चुनाव के बाद चार साल तक कांग्रेस की एक ही खबर आती रही गुजरात में कि पैर टी टूट रही है. एक बार में नहीं बल्कि धीरे धीरे कांग्रेस की संख्या सतहत्तर से घटकर चौंसठ हो गई. एक समय उत्तराखंड की बीजेपी सरकार के कई चेहरे कांग्रेस के लगते थे. आज भी धामी सरकार में तीन मंत्री कांग्रेस से आए हुए हैं. उम्मीद है आपको ऐसा कोई वक्त देखने को ना मिले जब इनमें से कोई बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में आएगा और मौजूदा नेतृत्व के बारे में उसी तरह से बयान देगा जिस तरह से हिमांता बिस्वा शर्मा इन दिनों राहुल गांधी के बारे में बयान देते हैं. दलबदल करने वाले नेताओं के साथ ऐसे सवालों की संभावना तो रहती ही है. ये समस्या केवल राहुल और कांग्रेस की नहीं है. नीतीश कुमार की पार्टी भी अपने पुराने विश्वसनीय सहयोगी आरसीपी सिंह को लेकर जूझती रही कि वे बीजेपी के इशारे पर काम कर रहे हैं. जनता दल यूनाइटेड के लेकिन ने उन्हें निकाल दिया. कांग्रेस की तरह उन्हें लंबे समय तक धोने का प्रयास नहीं किया. दलबदल बीजेपी के लिए एक गंभीर राजनीतिक कार्य है. भले आपको खबर ना हो कि सुदूर दादरा नगर हवेली एवं दमनदीव में जनता दल यूनाइटिड नाम की कोई पार्टी भी है लेकिन अचानक फॅमिली जाती है कि दादरा नगर हवेली एवं दमनदीव जनता दल यूनाइटिड के प्रदेश इकाई अध्यक्ष समेत सभी सदस्य आज भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए. दलबदल की इस घटना को भी हाइप्रोफाइल बनाया गया.
पंचायत स्तर के नेता जब बीजेपी में लाए जाते हैं तब भी राष्ट्रीय अध्यक्ष से मुलाकात कराई जाती है ताकि पटना में नीतीश कुमार को संदेश जाए कि उनकी पार्टी के नाम का कहीं भी ब्लॅक दिख जाएगा तो उसे भी बीजेपी में मिला लिया जाएगा. यह भी अजीब है कि जदयू ने बीजेपी को सरकार से बाहर कर दिया बिहार में लेकिन पार्टी का विलय हो रहा है अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, दमन और दीव. क्या इसके बाद बिहार का नंबर आने वाला है? हमें ये समझ नहीं आया कि जब देश में प्रधानमंत्री के नेतृत्व में विकास की अविरल धारा बह रही है तो बीजेपी में जाने वाले के नेता पहले ही क्यों नहीं चले गए. बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने कहा कि मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश जदयू मुक्त हो गए. सुशील मोदी ने तो ट्वीट किया है कि बहुत जल्द लालू जी बिहार को भी मुक्त कर देंगे. तो क्या बीजेपी बिहार में जदयू का विलय नहीं करेगी? जब अरुणाचल में कर रही है तो बिहार में भी कर ले. दलबदल की इस राजनीति का एक मकसद है जनता में साबित करते रहना कि विपक्ष कमजोर हो चुका है. उसमें नेतृत्व नहीं बचा है ताकि विकल्प केवल एक ही दिखाई देता रहे. यह काम केवल गोदी मीडिया के झुंड से नहीं हुआ है बल्कि कई स्तरों पर किया गया है. विपक्ष के आर्थिक तंत्र पर भी जिस तरह से हमला किया गया है उसकी चर्चा नहीं होती है. फॅमिली जानते की एक दल को हजारों करोड रुपए का चंदा कौन दे रहा है जबकि जांच एजेंसियां विपक्ष के पीछे ही लगी रहती है. जिला से लेकर के स्तर पर आर्थिक हैसियत रखने वाले किसी भी विपक्षी दल के छोड छोटे से बड़े राजनीतिक कार्यकर्ता की क्या हालत है आप उनसे पता कर सकते हैं.
अपनी पार्टी में होते हुए अपनी पार्टी के लिए नहीं बोल सकते, ना चंदा दे सकते हैं. इस डर से छापा पड़ जाएगा. यह जब जानेंगे तब पता चलेगा कि भारत की राजनीति में सामाजिक समीकरण नहीं बदले बल्कि आर्थिक ताकतों से लैस मानव संसाधन को बदल दिया गया है. डरा दिया गया है इसका जिक्र आपको किसी लेख में नहीं मिलेगा. खबरों में इसका जिक्र दिख जाएगा कि विपक्ष के नेताओं के घर या दुकानों पर बुलडोजर चला दिए गए. छापा पड़ा है. ऐसी खबरों को जरा आप भी सर्च कीजिए. कांग्रेस के नेताओं ने राहुल गाँधी का ये वीडियो बार बार ट्वीट किया है जिसमें वे पैदल चलते हुए अचानक अपने बाजुओं को पीछे ले जाते हैं और सिने को आगे कर देते हैं. ऐसा लगता है कि राहुल किसी जगह से खुद को आजाद कर रहे हैं. यह भी लगता है कि किसी जकड़ में छटपटा रहे हैं. एक ऐसी पार्टी जो हर दिन कार्यकर्ताओं और नेताओं से खाली होती जा रही है, वो एक पार्टी के रूप में बीजेपी को चुनौती देने लायक बची रहेगी या नहीं, यह सवाल आगे पीछे आता जाता रहता है. भारत जोड़ो यात्रा के जरिए राहुल गांधी भले ही महंगाई से लेकर बेरोजगारी और मीडिया तंत्र के जरिए जनता की आवाज को दबा देने के सवालों को उठाने की कोशिश कर रहे हो, लेकिन क्या उनकी पार्टी का तंत्र उनकी तरह उस तरह से लगा हुआ है की यात्रा जनता के बीच पहुंच जाए. म्यूजिक के इस्तेमाल से यात्रा की तस्वीरों को प्रभावशाली तो बनाया जा सकता है, लेकिन हर दिन कांग्रेस को तोड़कर नरेंद्र मोदी जो चुनौती कांग्रेस को दे रहे हैं इसका जवाब कांग्रेस को देना चाहिए.
सोलह जुलाई दो हजार इक्कीस को राहुल गांधी ने कहा था कि जिन्हें डर लगता है वो बीजेपी में चले जाएं. जो बाहर हैं और ऍम से नहीं डरते हैं उन्हें इंग्लिस में लाया जाएगा. बहुत सारे लोग हैं जो डर नहीं है कांग्रेस के बाहर है वो सब हमारे उनको अंदर और जो हमारे यहाँ रहेंगे पानी चलो भैया जाओ आटो मजे नहीं जरुरत नहीं है तुम्हारी हमें निटर लोग चाहिए ये हमारी आइडिया है ये मेरा लेकिन राहुल गाँधी ने किस नेता को फंसे संबंध होने के नाम पर काँग्रेस से निकाला है या कारवाई की है. यह भी तो आरोप लगता है की कॉंग्रेस के तंत्र को पता ही नहीं लगता कि उनकी पार्टी में कौन दूसरी पार्टी के लिए काम कर रहा है, जा रहा है या जाने वाला है या जा चुका है या किताब कांग्रेस के काम आ सकती है. हाँ उज्जमां करुँगी वन लिविस की और ऍम किताब इस किताब में एक प्रसंग है की निरंकुश और सर्वसत्तावादी ताकतों को कैसे रोका जाए. इसमें स्वीडन की एक पार्टी का उदाहरण दिया गया है. उन्नीस सौ तीस के दशक में स्वीडिश कंसरवेटिव पार्टी के युवा संगठन में उग्रपंथी और फासीवादी विचारधारा के प्रति आकर्षण बढ़ने लगा था. इसके नेता खुलेआम हिटलर का समर्थन करने लगे और उसकी पार्टी की तरह का पोशाक पहनने लगे. उन्नीस सौ तैंतीस में स्विडिश कंसरवेटिव पार्टी ने युवाओं की इस शाखा को ही पार्टी से निकाल दिया. दो चार नेताओं को नहीं बल्कि पच्चीस हजार सदस्यों को पार्टी से निकाल दिया.
उन्नीस सौ चौंतीस में निकाय चुनाव में नुकसान भी हुआ. लेकिन इस कदम से स्विडिश कंसरवेटिव पार्टी ने अपने नेताओं को साफ संदेश दे दिया कि उग्र और लोकतंत्र विरोधी विचारधारा वाले किसी नेता की इस पार्टी में जगह नहीं है. एक साथ पच्चीस हजार कार्यकर्ताओं और नेताओं को पार्टी से निकाल देने की इस घटना के बारे में और विस्तृत जानकारी नहीं होनी चाहिए. पिछले आठ वर्षों में कितने ही दलों के नेता बीजेपी में गए, इस समस्या के सामने राहुल गाँधी नहीं दूसरे नेता भी लाचार नजर आते हैं. तेजस्वी से लेकर नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, हेमन्त ट्रेन से लेकर उद्धव ठाकरे तक कोई साहस नहीं दिखा सका. ना इसकी बाढ़ को रोक सका. अपनी पार्टी को टूटने से रोकने में ये नेता कई बार असफल रहे. विपक्ष की हर सरकार के ऊपर तलवार लटक रही है कि कभी भी जा सकती है. सात सितंबर से राहुल गाँधी पदयात्रा कर रहे हैं. हर दिन पच्चीस किलोमीटर पैर चलते हैं. क्या बीजेपी ये चुनौती दे रही है कि दिल्ली पहुंचते-पहुंचते उनकी पार्टी ही खाली कर दी जाएगी. कांग्रेस ने तेजस्वी यादव को भी पदयात्रा में शामिल होने का न्योता दिया है. क्या कांग्रेस का यह मार्च धीरे धीरे विपक्षी एकता का भी मार्च होता जाएगा. उमाशंकर सिंह की आगे की रिपोर्ट कांग्रेस की भारत जोडो यात्रा बारह दिनों में करीब सवा दो सौ किलोमीटर का तय कर चुकी है. राहुल गाँधी के नेतृत्व में चल रही ये यात्रा उन्नीस सितंबर को जब केरल के अलापुझा से गुजरी तो भीड़ कुछ इस तरह की रही. कांग्रेस उत्साहित है उसका दावा है कि कन्याकुमारी से शुरू हुई है यात्रा जैसे जैसे आगे बढ़ रही है जन समर्थन भी बढ़ता जा रहा है.
कन्याकुमारी से जो कश्मीर के और बड़ा था उसमें एक सौ उन्नीस भारत यात्री वो कारवाँ आज केरल आते आते सुनामी बन चुका है और रोज सड़कों को दोनों तरफ लाखों लोग राहुल गाँधी जी और बारह जोडो यात्रा के समर्थन में उंघते ये यात्रा हर दिन दो पालियों में चलती है और चलते-चलते राहुल गाँधी लोगों से बात भी करते हैं. बुजुर्ग और बच्चों से मिलते हैं. किसी को गले से लगाते हैं तो झुककर किसी की चप्पल ठीक करते हैं. इन सबके फोटो और वीडियो कांग्रेस की तरफ से जारी किया जाता है. एक नेता के तौर पर राहुल गाँधी की संवेदनशीलता और आत्मीयता को दिखाने के लिए और राहुल गाँधी के कंधो चुकाने के इस वीडियो को तो कांग्रेसियों ने खूब वाइरल किया. हालांकि जब से यात्रा शुरू हुई है बीजेपी ने इस को निशाना बनाना भी शुरू किया है. यात्रा में इस्तेमाल किए जा रहे कंटेनर को विलासतापूर्ण बताया गया.
राहुल गाँधी की टी शर्ट की कीमत पर सवाल उठाया गया. कर्नाटक बीजेपी आल के प्रमुख ने अभद्र टिप्पणी के साथ एक तस्वीर ट्वीट की जिसे बाद में डिलीट करना पड़ा. बीजेपी की तरफ से यहां तक कहा जा रहा है कि राहुल यात्रा तो कर रहे हैं लेकिन मीडिया से बात नहीं कर रहे हैं. सोमवार को दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस कर कांग्रेस ने हर आरोप का सिलसिलेवार ढंग से जवाब देने की कोशिश की. झूठ शिरोमणि महिला ने बोला कि राहुल गाँधी जी ने यात्रा शुरू करने से पहले स्वामी विवेकानंद जी का आशीर्वाद नहीं लिया. जब देश के लोगों ने झूठ शिरोमणि श्रीमती स्मृति ईरानी जी को राहुल गाँधी जी का वीडियो बताया पर झूठ शिरोमणि महिला ने देश से माफी नहीं मांगी. आपने असत्य कथनों के लिए, उसके बाद झूठ शिरोमणि बालक जो भारतीय जनता पार्टी का ऑल का प्रमुख है. उसने कहा राहुल गाँधी जी वहाँ पब्लिक मीटिंग फंस नहीं सकते. प्रेस की मीटिंग प्रेस ब्रीफिंग नहीं लेते हैं मैं उसको बताना चाहता हूँ झूठ शिरोमणि बालक को एक घंटा निकाल के भारत जोडो यात्रा का भाग बने राहुल गाँधी जी के नेतृत्व में और उससे उसको आत्मिक शांति भी मिलेगी. आत्मिक ज्ञान भी होगा और उसको पता लगेगा की उसके मन में कितनी निर्लज्जता और घटियापन राहुल गाँधी पदयात्रा के बीच बीच में ठहरते हैं. रविवार को ठहरे तो मछुआरों की समस्या सुनी. यात्रा के दौरान राहुल गांधी भाषण देते नजर नहीं आए हैं. जोर लोगों की बात सुनने पर है. कांग्रेस के हाथ में अभी सत्ता नहीं है तो लोगों की उठाई किसी समस्या का समाधान भी नहीं है, लेकिन कांग्रिस इसे दो हजार चौबीस की तैयारी के तौर पर ले रही है.
भारत जोडो यात्रा के बीच में ही गोवा में आठ विधायकों के कांग्रेस छोड़ने की खबर आई. बीजेपी के कैलाश विजयवर्गीय ने तंज किया कि राहुल गाँधी पहले कांग्रेस जोड़ लें. राहुल गाँधी और उनके साथियों को एक सौ पचास दिनों तक चलना है. पैंतीस सौ किलोमीटर से अधिक की दूरी तय करनी है. इस बीच कांग्रेस में अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया को भी पूरा होना है. राहुल पार्टी को नेतृत्व देने को अब तक तैयार नहीं है लेकिन उनके नेतृत्व में ये यात्रा काँग्रेस को कहाँ जब तक ले जाती है इसका किसी को पता नहीं. जैसा कि कांग्रेस के ही एक नेता ने बताया अंदरूनी खींचतान से जूझ रही काँग्रेस के ठहरे हुए पानी में एक कंकर तो पड़ गया है. छोटे थपेडे को बड़ी लहर बनने का इंतजार है. दिल्ली में उमा शंकर सिंह भारत में दलबदल की इन घटनाओं पर ठीक से बहस नहीं हो रही है. सवाल काँग्रेस के टूटने का नहीं है. सवाल है कि क्या हम देख पा रहे हैं कि कैसे एक ताकतवर पार्टी दूसरे दलों को ठोक में भी तोड़ रही है और खुदरा खुदरा भी तोड़ के जा रही है. गोवा में काँग्रेस थोक में तोड़ दी जाती है.
गुजरात में धीरे धीरे तोड़ी जाती है क्या हम समझ पा रहे हैं कि आने वाले दिनों में भारत के लोकतंत्र पर इसका क्या असर पड़ने वाला है. हमें केवल भारत के भीतर ही नहीं बाहर भी देखना चाहिए. किसी भी लोकतांत्रिक नागरिक को इस बात की जिज्ञासा होनी चाहिए की दुनिया में कैसे अलग अलग तरीकों से लोकतंत्र किया जा रहा है. हाल ही में उज्बेकिस्तान के समर्थन में शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन की बैठक हुई. इसके सदस्य देशों में चीन और रूस के होने को लेकर लगातार सवाल होते रहते हैं. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग आजीवन राष्ट्रपति के पद पर बना दिए गए हैं. बैठा दिए गए संविधान में बदलाव के जरिए पुतिन दो हजार छत्तीस तक इस पद पर रहेंगे. क्या किसी लोकतंत्र में ऐसा होता है या उदाहरण इसलिए दिया गया कि हम समझ सके कि अलग अलग देशों में अलग अलग तरीके से लोकतंत्र को किया जा रहा है? प्रधानमंत्री विक्टर ओरबन दो हजार दस से इस पद पर हैं. वहाँ के एक नेता ने एक किताब लिखी है जिसका नाम है ट्वेंटी फाइव साइट्स. पोस्ट कम्युनिस्ट माफिया स्टेट. वे हंगरी की तुलना माफिया स्टेट से करते हुए कहते हैं कि सब कुछ पर्दे के पीछे से होता है. एक व्यक्ति के हिसाब से सारा कानून काम करता है. चुनाव के तंत्र पर इस तरह का कब्जा हो चुका कि विपक्ष के नेता और पत्रकारों को जेल में डालने की जरूरत नहीं रही.
चुनाव होते हैं मगर नतीजा एक ही आता है. दी ऑन इस पर छह जुलाई दो हजार इक्कीस का एक लेख. इस लेख में हंगरी का विश्लेषण किया गया है कि वहाँ किस तरह दो हजार दस के पहले के लोकतंत्र की वापसी का काम अब असंभव हो गया है क्योंकि हर स्तर पर मीडिया से लेकर न्यायपालिका तक को का चल दिया गया है. यूरोपियन यूनियन ने हंगरी पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं. यूनियन का कहना है कि हंगरी में विक्टर के कार्यकाल में कानून का राज कर दिया गया है. यूनियन की तरफ से जो पैसे दिए जाते हैं उसका इस्तेमाल प्रधानमंत्री विक्टर ओरबन अपने मित्र उद्योगपतियों पर लुटाने में करते हैं. यूरोपीय और गैर यूरोपीय नस्लों को लेकर भडकाऊ भाषण देकर और बन अपनी राजनीति चमकाते रहते हैं. इटली में भी फांसीवाद की वापसी की खबरें छपने लगीं. मुसोलिनी के फांसीवाद के सौ साल बाद इटली में एक बार फिर से फांसीवाद सर उठाने लगा है. जॉर्जिया मिलोनी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना नजदीक लगने लगी है. जॉर्जिया कहती तो है कि फांसीवाद इतिहास के में जा चुका है. मगर उनके चुनावी नारे वही सब है जो फांसीवादी राजनीति के हुआ करते थे. जैसे श्वर, मातृभूमि और परिवार. उनकी पार्टी के समर्थक भी फांसीवादी सलामी देते हैं. कई चिन्हों की साम्यता फांसीवादी दौर के चिन्हों से है. दुनिया में लोकतंत्र सिमट रहा है. रूस और चीन में विपक्ष के नाम पर खानापूर्ति रह गई है. क्या भारत में ऐसा हो सकता है? इसका जवाब आप बेहतर तरीके से जानते होंगे. इस समय जो हो रहा है एक स्तर पर या दो दलों के बीच वर्चस्व की लड़ाई का खेल लग सकता है कि कांग्रेस के कई नेताओं के नेता भी मोदी हैं.
मगर थोड़ी गहराई देखेंगे तो खेल में जनता को जनता को नेताविहीन किया जा रहा है. इस समय आपको बिना विपक्ष के रहने की आदत डाली जा रही है. एक समय आएगा आने वाला है जब आप विपक्ष बनने के लिए ही तड़प रहे होंगे और विपक्ष नहीं बन पाएंगे. इसे लिखकर पर्स में रख लीजिए. कुछ कहना होगा तो समझ नहीं पाएंगे कि किस से कहें. इसका एक उदाहरण आपको मणिपुर से दे सकता हूँ. हमारे सहयोगी रतनदीप ने बताया कि इस आदेश के बाद मणिपुर पर किताब छापने से पहले सरकार की समिति से मंजूरी लेनी होगी. मणिपुर के इतिहास, उसकी संस्कृति, परंपरा, भूगोल को लेकर कोई भी किताब तभी छपेगी जब सरकार की समिति मंजूरी देगी. पंद्रह सितंबर को ये आदेश जारी हुआ. इस समिति में राज्य के शिक्षा मंत्री के अलावा वाइॅन् सलर कॉलेज और विश्वविद्यालय के शिक्षक हैं. इन उसके पास किताब की पांडुलिपि जमा करानी होगी. जब ये लोग पढ़ कर मंजूरी देंगे तब किताब छपेगी. राज्य सरकार के सूत्रों के मुताबिक जो हमें लग रही है कि ये जो ऑर्डर मणिपुर सरकार ने निकाला है इसके पीछे एक ब्लॅक ड्रोप है और ये ब्लॅक ड्रोप यह है कि कुछ महीने पहले एक पीएचडी थीसिस के ऊपर एक किताब निकाली गई थी. मणिपुर की हिस्ट्री के ऊपर ये किताब लिखने वाले थे सुशील कुमार शर्मा जो कि एक ब्रिगेडियर है जो कि सीआरपीएफ में बहुत साल डॉयट एशिन में वो काम कर रहे थे और इस उसके बाद उन्होंने ये किताब आपने पीएचडी मुँह के हिसाब में निकली थी और इसमें ये आरोप लगाया गया है कि इस किताब के ऊपर यह आरोप है कि इस किताब में ऐसा लिखा गया है कि मणिपुर जो कि भारत में शामिल होने के पहले एक प्रिंसली स्टेट था.
जब भारत के साथ मर्जर हुआ तब मणिपुर का जो इलाका था, जो एरिया था, जो पॉलिटिकल बाउंड्री थी वो सात सौ स्क्वेर माइल्ड की थी वॅार में और इस इसके मुताबिक इस किताब एक के मुताबिक ये इम्प्लाई करता है ये इन्फर्मेशन कि मणिपुर के हिलेरी को मणिपुर का पार्ट नहीं माना गया है. तो इसके चलते जब ये किताब निकली तो जो सिविल सोसाइटी ग्रुप्स हैं. ज्यादातर जो कि हिलेरी इळाके सिविल सोसाइटी ग्रुप्स हैं, उन्होंने इस किताब को अपोज किया क्योंकि उनका ये दावा था कि यहां पे गलत इन्फर्मेशन दी गई है और ये इन्फर्मेशन जो दी गई थी, ये यही इम्प्लाई करता है कि जो हिल एरिया है जहां पे कि ट्राइबल समुदाय के लोग वहाँ रहते हैं, मणिपुर में नागा और क्योंकि समुदाय और बाकी समुदाय के लोग, ये कभी मणिपुर के पार्ट में ही थे. ऐसा ये किताब इम्प्लाई करने की कोशिश कर रही है जो कि मणिपुर का हिस्टरी हिस्ट्री को एक गलत रूप से एक प्रजेक्ट कर रही है. ऐसा दावा किया था सिविल सोसाइटी ग्रुप्स ने और उन्होंने राज्य सरकार को ये दावा किया था कि इस किताब को बैन किया जाए. मगर अब इसके चलते राज्य सरकार ने अब ये फैसला लिया है कि मणिपुर की हिस्ट्री कल्चर ट्रडिशन को ले के कोई किताब लिखेगा तो उसको मैंने स्क्रिप्ट को प्री अप्रूव किया जाएगा. ये जो कमिटी बनाई गई है इसके द्वारा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में फीस वृद्धि के खिलाफ आंदोलन चल रहा है. विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि लंबे समय से फीस वृद्धि नहीं हुई थी. प्राइवट कॉलेजों की तुलना में अभी भी फीस काफी कम है. ये बहुत जरूरी हो गया था. प्रशासन की तरफ से छात्रों के खिलाफ तीन तीन फाइर कराई गई है. छात्रों का कहना है कि चार सौ प्रतिशत की वृद्धि मंजूर नहीं. इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र आदर्श भदौरिया ने सोमवार को आत्मदाह की कोशिश कर सबको हैरान कर दिया. शुक्र है की ये कोशिश नाकाम रही.
आदर्श का आरोप है पाल इसके उनके घर जाकर उन को परेशान किया. क्या मैं अपराधी हूँ या मैं छात्र हूँ? यदि मैं छात्र हूँ यदि मैं सबके सामने हूँ तो पुलिस प्रशासन का भारी तबका मेरे घर पे क्यों छापा मार रहा है. मेरे बुजुर्ग पिताजी को क्यों परेशान किया जा रहा है. मेरे बुजुर्ग पिताजी को कॅश किया जा रहा है कि अगर आप अपने बच्चों को नहीं निकालेंगे तो आपके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. क्या उन पर दबाव बनाया जा रहा है? क्या मैं अपराधी हूं? क्या मैं छात्र पहुँच अपराध है क्या फिर वृद्धि जो बढ़ाई गई निरंकुशता के खिलाफ लड़ाई लड़ना अपराध है तो मैं अपराधी हूं. अब इलाहाबाद विश्वविद्यालय में फीस बढ़ोतरी के खिलाफ छात्रों के आंदोलन के दो हफ्ते पूरे होने जा रहे हैं. छात्र हताश है कि विश्वविद्यालय उनकी बात नहीं सुन रहा. उन्होंने भैंस के आगे बीन बजाकर प्रशासन को शर्मिंदा करने की कोशिश की. देखिए हम लोग इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति का विरोध कर रहे हैं. कल आप के ही न्यूज चैनल के माध्यम से उन्होंने कहा कि फीस वृद्धि वापस नहीं होगी तो आज हम लोग भैंस के आगे बीन बजाकर के जो उनकी भैस की तरह से बुड्ढी हो गयी है उस बुड्ढी को हम लोग सद्बुद्धि में परिवर्तन करने के लिए आज बीन बजा के विरोध प्रदर्शन किया है. हम भी कहते हैं कि फिर जरूर वापस होगी. जब तक वापस होगी तब तक हमारी लड़ाई जाएगी. आज अगर फिर चार हजार हो जाएगी दस हजार हो जाएगी तो मैं स्वयं नहीं पाउँगा, मेरा भाई नहीं कर पाएगा जो एक किसान का बेटा एक मजदूर का बेटा इधर विश्वविद्यालय ने रुख सकते कर लिया है छात्रों के खिलाफ फॅर दर्ज कर ली गई है. इस वृद्धि को लेकर है वो दोनों का कुछ छात्रों ने छात्र वहाँ पर जो पर लगातार मुँह जिससे वहाँ ही आसन में बारह नामजद और अज्ञात सोमवार को आत्मदाह की कोशिश के बाद पुलिस ने छात्रों को हटा दिया.
शांतिभंग की सूचना थी यूनिवर्सिटी के द्वारा लगातार इस तरह का बताया जा रहा था और आज इन्होंने आत्मदाह का प्रयास कुछ इस तरह का सूचना मिला है उसके बाद यहाँ पे कोर्स आई और इस तरह का जो गलत इनके द्वारा किया गया था उसके संबंध में इनको यहां से हटाया गया. यहां से जो लोग हट नहीं रहे थे पहले उनको बताया गया कि शांतिपूर्वक आपका कोई परमिशन वगैरह नहीं लिया गया था. आप यहां से हट जाए उनको टाइम दिया गया उसके बाद अगर कोई रुका है तो उनको डिटेन किया गया है. आप लोग यहाँ तो यहाँ से समय बढ़ गया है आपकी ये नहीं है. आपने ना तो विश्वविद्यालय प्रशासन से कोई अनुमति ली है ना तो यहाँ के पास संबंध है. आप यहां विधिक रूप से यहां पे करना, प्रदर्शन और अपने ऊपर फॅर और अपराध अपने ऊपर कर रहे हैं. आंदोलन कर रहे छात्रों के लिए फीस वृत्ति एक मुद्दा तो है ही लेकिन एक डर विश्वविद्यालयों के बदलते चरित्र का है जो तेजी से व्यवसायिक शिक्षा करन की तरफ बढ़ रहे हैं. इससे उन्हें लगता है कि आम और गरीब छात्र उच्च शिक्षा से वंचित रह जाएँगे. इलाहाबाद से नितिन गुप्ता के साथ वाराणसी से अजय सिंह एनडीटीवी इंडिया गुजरात के आईपीएस ऑफिसर सतीषचंद्र वर्मा को सेवानिवृत्त होने से पहले नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के इस फैसले पर एक सप्ताह के लिए रोक लगा दी है. जस्टिस और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की बेंच ने वर्मा से कहा कि इस दौरान वे दिल्ली हाइकोर्ट में बर्खास्तगी के आदेश को चुनौती दे सकते हैं. वर्मा तीस सितंबर को रिटायर हो रहे हैं.
उनकी फिलहाल की पोस्ट तमिलनाडु कोयम्बटूर में में आई. इशरत जहां मुठभेड मामले की जांच करने के लिए गठित विशेष जांच दल का नेतृत्व गुजरात कैडर के अधिकारी सतीषचंद्र वर्मा ही कर रहे थे. सरकार ने तीस अगस्त को आदेश जारी कर दिया. विभागीय कार्रवाई से संबंधित आधारों पर उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया था कि वर्मा के खिलाफ एक साल तक कोई त्वरित कदम ना उठाए जाए. इसलिए केंद्र सरकार ने उनकी बर्खास्तगी की सूचना हाइकोर्ट को दी. हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को मंजूरी दी. हालांकि कोर्ट ने केंद्र सरकार को यह भी आदेश दिया है कि यह मंजूरी कोर्ट के आदेश तक अंतिम रूप से लागू नहीं होगी. पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने कहा है कि राज्य सरकार पॅन शिन की पुरानी व्यवस्था बहाल करने जा रही है. पुरानी पेंशन की व्यवस्था बहाली की शुरुआत काँग्रेस की राज्य सरकारों ने कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सबसे पहले पुरानी पेंशन की व्यवस्था बहाल कर दी. हाल ही में झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार ने ये व्यवस्था लागू की. गुजरात और हिमाचल प्रदेश में भी पुरानी पेंशन को लेकर मांगे उठ रही है. गुजरात में आए दिन आंदोलन हो रहे हैं. वहां भी सरकारी कर्मचारी इसके लिए जोर शोर से आंदोलन कर रहे हैं. पेंशन मिले इससे अच्छा कुछ भी नहीं हो सकता. इसका मतलब है सरकारी कर्मचारी ऍफ ग्रुप के हिंदू मुस्लिम डीबेट से बाहर आ रहे हैं. अपना बुढ़ापा खराब होता देखने लगे हैं.
उम्मीद है आपको भी दिखाई दे रहा होगा. मैं चीता की बात कर रहा हूँ आपके बुढ़ापे की नहीं. आप ब्रेक ले लीजिए क्या चंडीगढ यूनिवर्सिटी में कथित रूप से विडियो वाइरल नहीं हुआ? पुलिस का कहना है कि छात्रा ने अपने अलावा किसी और का विडियो नहीं बनाया. लेकिन यूनिवर्सिटी के छात्र इस दावे को नकार रहे हैं. पंजाब सरकार ने इसकी जांच के लिए एक एसआईटी का गठन कर दिया है. सौरभ शुक्ला की ये रिपोर्ट आप देख सकते हैं सोमवार तडके सुबह तक चंडीगढ यूनिवर्सिटी के सैकडों छात्र यूनिवर्सिटी के कॉम्पास में धरना प्रदर्शन करते रहे. यूनिवर्सिटी प्रशासन के मनाने के बाद छात्रों ने बडी मुश्किल से अपना धरना किया. धरना होते ही यूनिवर्सिटी प्रशासन ने शनिवार तक यूनिवर्सिटी में छुट्टी कर दी. सुबह होते ही हॉस्टल में रह रहे ज्यादातर छात्र अपने घर चले गए. छात्राओं का कहना है कि उनके हाँ अभिभावक परेशान है और वो इस पूरे मामले के बाद यूनिवर्सिटी में खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर रही है. हॉस्टल में भी सेफ नहीं है और बाहर घर वालों ने ये बोला था कि हॉस्टल में सेफ रहोगे इसलिए हॉस्टल हो तुम बाहर मत लो. लड़कियों के मामले में तो डरे हुए तो होंगे ना. वैसे आप लोगों की बात से डर है यही की जो हुआ है वो सच है तो बहुत ही ज्यादा बुरा है. अगर वो सच है तो और अगर कुछ छूट तो आगे अब आइडिया तो मिल गया ना. लोगों को क्या पता आगे कोई ऐसा कुछ करने की कोशिश कर लेते तो बुरा हो जाएगा ना. चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी का कहना है कि छात्रों का ये आरोप पूरी तरह गलत है कि एक हॉस्टल में रहने वाली लड़की ने लगभग साठ लडकियों का नहाते हुए वीडियो बनाया है. लडकी ने अपना वीडियो बनाया जो उसने शिमला में अपने बॉय फ्रेंड को भेजा. सोशल मीडिया के ऊपर कोई ऐसी फॅस है, कोई वाइरल है क्योंकि वो है ही नहीं है. वो सिस्टी नहीं करता, जिसकी आप बात कर रही है वो नहीं है. रूम है अफवाह ये भी उड़ी की कई लड़कियों ने आत्महत्या की कोशिश की जिसे पलिस ने बेबुनियाद बताया.
जब मैं यहां पहुंचा तो फैमिली इंस् का पता क्या कॅाल इंस् में कौन गया? क्या हुआ तो मेरे आने के बाद भी डेढ दो घंटे बाद कम से कम यहाँ ऍम क्योंकि हर आधे घंटे बीस मिनट बाद कोई ना कोई लडकी फेंट हो रही थी. गर्मी बहुत ज्यादा थी. सफक एशिन थी, ह्यूमिड था. छात्रों का असंतुष्ट देख पंजाब सरकार ने पॉल के अधिकारी की अध्यक्षता में एक बना दी है जो इस पूरे मामले की जांच करेगी. पुलिस ने छात्रा के अलावा उसके बॉयफ्रेंड सन्नी मेहता और सन्नी मेहता के दोस्त रंग कज वर्मा को गिरफ्तार किया है. पुलिस को इन तीनों आरोपियों की सात दिन की रिमांड मिल गई है. कुछ है तो कुछ तथ्य भी. तथ्य यह है कि किसी भी लड़की का कोई वीडियो सोशल मीडिया पर वाइरल नहीं है तो घबराने की जरुरत नहीं है, लेकिन कई सवाल भी है अगर लड़की ने अपने वीडियो अपने बॉय फ्रेंड को भेजे तो वो कानूनन अपराध नहीं है तो फिर उस लड़की को क्यों गिरफ्तार किया गया है? पुलिस ने उसकी रिमांड क्यों ली है? ऐसे तमाम सवाल हैं कोशिश यही कर रहा है प्रशासन की अफवाह और ना फैले इसलिए शनिवार तक छुट्टी कर दी गई है और आइटी अपनी जाँच कर रही है और ये भी कोशिश कर रही है कि क्या इन दोनों लडके जो बॉयफ्रेंड है उसका दोस्त है? क्या वो इस लडकी को अपने विडीओ भेजने के लिए ब्लॅक मेल करते थे. चंडीगढ़ से सहयोगी अश्विनी मेहरा के साथ सौरभ शुक्ला एनडीटीवी इंडिया आप देख रहे थे प्राइम टाइम नमस्कार.