एक मरीज के लिए डॉक्टर भगवान की तरह होता है. लेकिन अगर क्या हो कि डॉक्टर ही आपकी जिंदगी से खिलवाड़ करने लगे. ऐसा ही एक हैरान करने वाला मामला दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल से सामने आया है. ये रैकेट सिर्फ रिश्वत लेने भर का नहीं है बल्कि ये मरीजों के भरोसे को तार-तार करने का भी है. हालांकि, इस मामले में CBI ने आरोपी डॉक्टर्स और इस पूरे रैकेट में शामिल लोगों की पहचान कर ली है. साथ ही इस मामले में अभी तक 9 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. CBI इस मामले की जांच में जुटी है ताकि इससे जुड़े अन्य आरोपियों का भी पता लगाया जा सके.
अब ऐसे में ये जानना बेहद जरूरी है कि आखिर देश के इतने बड़े अस्पताल में चल रहे इस रैकेट का पता कैसे चला. और CBI ने इस मामले में पहली गिरफ्तारी कैसे की. आज हम आपको इस रैकेट से जुड़ी परत दर परत इन साइड स्टोरी बताने जा रहे हैं. CBI से जुड़े सूत्रों के अनुसार इस रैकेट का पहली बार खुलासा तब हुआ जब राम मनोहर लोहिया अस्पताल के डॉक्टर डॉ. पर्वतगौड़ा ने आकर्षण नाम के एक शख्स से संपर्क किया. दरअसल, आकर्षण एक निजी बायोट्रॉनिक्स कंपनी में बतौर सेल्स मैनेजर काम करता था.
एक फोन कॉल से दबोचे गए आरोपी
डॉ. पर्वतगौड़ा के इसी फोन कॉल से CBI के सामने इस रैकेट का भंडाफोड़ हुआ. इस फोन के आधार पर CBI ने डॉ. पर्वतगौड़ा समेत एक और डॉक्टर को हिरासत में लिया और उनसे पूछताछ शुरू की. इसी पूछताछ के दौरान CBI को उस मनी ट्रेन के बारे में पता चला जो इन डॉक्टर्स और मेडिकल उपकरण बनाने वाली कंपनी के बीच चल रहा था.
CBI ने 15 ठिकानों पर किया रेड्स
इस मामले की जांच के दौरान CBI ने मेडिकल इक्यूपमेंट्स बनाने वाले डीलर्स से जुड़े कुल 15 ठिकानों पर रेड किया है. CBI ने इस मामले में FIR भी दर्ज की है. इस FIR में राम मनोहर लोहिया अस्पताल के डॉक्टर्स के साथ-साथ कई लोगों का नाम दिया गया है.
निजी कंपनी के उपकरण के इस्तेमाल के लिए दी जाती थी घूस
CBI की जांच में आगे पता चला कि इस रैकेट में राम मनोहर लोहिया अस्पताल के सीनियर डॉक्टरों के साथ-साथ क्लर्क और लैब में काम करने वाले कर्मचारी भी शामिल हैं. जांच के दौरान जो बात निकल कर सामने आई उसने CBI अधिकारियों के ही होश उड़ा दिए. इस जांच में पता चला कि ये डॉक्टर्स मरीजों के ऑपरेशन और इलाज के लिए एक निजी उपकरण निर्माता कंपनी के उपकरणों का खास तौर पर इस्तेमाल कर रहे थे. और इसके लिए वह उस कंपनी से रिश्वत के तौर पर एक बड़ी रकम भी लेते थे. ये सारा खेल पर्दे के पीछे हो रहा था.
UPI और बैंक एकाउंट पर किया जाता था पैसे का भुगतान
जांच में पता चला कि इस रैकेट का किसी को पता ना चले इसके लिए आरोपी डॉक्टर्स पेमेंट कभी कैश में नहीं लेते थे. इसके लिए वो यूपीआई और एकाउंट ट्रांसफर के माध्यम से रिश्वत का पैसा मंगवाते थे. सीबीआई को मिली जानकारी के अनुसार सूत्रों ने बताया कि नागपाल टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड के मालिक नरेश नागपाल मरीजों पर की जाने वाली मेडिकल प्रैक्टिस में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणं की आपूर्ति करता है. इन उपकरणों के इस्तेमाल के ऐवज में डॉ. पर्वतगौड़ा नागपाल से रिश्वत लेते हैं. 2 मई को डॉ. पर्वतगौड़ा ने नागपाल से उपकरण के इस्तेमाल करने को लेकर रिश्वत मांगी थी. नागपाल ने डॉ.पर्वतगौड़ा को आश्वासन दिया था कि रिश्वत की जो रकम तय की गई थी वह सात मई तक उनतक पहुंचा दी जाएगी.
CBI को ऐसे मिली थी इस रैकेट की जानकारी
इस रैकेट को लेकर CBI को जानकारी दी गई थी. CBI को बताया गया था कि राम मनोहर लोहिया अस्पताल में इलाज के नाम पर एक बड़ा रैकेट चल रहा है. इस रैकेट के तहत मरीजों से इलाज के नाम पर रिश्वत ली जा रही है साथ ही मरीजों को कुछ कंपनी विशेष के मेडिकल उपकरण ही इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.
"हम कड़ी कार्रवाई करेंगे"
इस रैकेट के सामने आने और राम मनोहर लोहिया अस्पताल के डॉक्टर्स की गिरफ्तारी के बाद पहली दफा अस्पताल प्रशासन की तरफ से प्रतिक्रिया आई है. RML के कार्यवाहक मेडिकल सुप्रीटेंडेंट डॉक्टर मनोज कुमार झा ने इस रैकेट को लेकर NDTV से खास बातचीत की. उन्होंने इस दौरान कहा कि ये मामला दुर्भाग्यपूर्ण और अकल्पनीय है. हमें इसकी उम्मीद नहीं थी. मामले के सामने आते ही हमने फैक्ट फाइंडिंग टीम बनाई है. ये टीम आने वाले कुछ दिनों हमें रिपोर्ट सौंपेगी. फैक्ट फाइंडिंग टीम अपनी जांच के बाद बताएगी कि क्या कदम उठाएं.
इस तरह चल रहा था रैकेट...
1 - स्टंट और अन्य मेडिकल उपकरण की आपूर्ति के नाम पर रिश्वत ली जाती थी
2- स्टंट के विशेष ब्रांड की आपूर्ति के लिए रिश्वत मांगा लिया जाता था
3- लैब में मेडिकल उपकरणों की आपूर्ति के लिए भी लेते थे रिश्वत
4- रिश्वत के बदले मरीजों को अस्पताल में कराया जाता था भर्ती
5- फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट जारी करने के नाम पर भी की जाती थी वसूली
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