जयपुर:
राजस्थान हाईकोर्ट ने एक बेहद महत्वपूर्ण फैसले में सोमवार को धौलपुर और भरतपुर जिलों के जाट समुदाय को आरक्षण सूची से बाहर कर दिया है, जबकि राजस्थान के शेष जिलों में इस समुदाय को आरक्षण का लाभ मिलता रहेगा। 16 साल पुराने जाट आरक्षण से जुड़े इस मामले में सबसे अहम बात यह है कि हाईकोर्ट ने अपने फैसले में राज्य सरकार से अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) का सर्वे नए सिरे से करवाने के लिए कहा है, और माना जा रहा है कि इस सर्वे के बाद राज्य में जातिगत समीकरण उलट-पलट जाएंगे। गौरतलब है कि राजस्थान में पिछले आठ सालों से अलग-अलग जातियों के बीच आरक्षण के मसले पर लगातार तनाव का माहौल बना हुआ है।
दरअसल, वर्ष 1999 में जब केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी नीत एनडीए सरकार ने जाटों को आरक्षण दिया था, तब सात लोगों ने उस निर्णय के खिलाफ अर्जी लगाई थी। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि ओबीसी कमीशन के सर्वे के बिना यह फैसला राजनीतिक फायदे के लिए किया गया है, और अब हाईकोर्ट ने उनका पक्ष स्वीकार करते हुए सरकार से ओबीसी का फिर सर्वे कराने के लिए कहा है।
फैसले के बाद याचिकाकर्ताओं में से एक यशवर्धन सिंह ने कहा, "यह ऐतिहासिक निर्णय है... हिन्दुस्तान के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब किसी राज्य की पूरी ओबीसी सूची को रिवाइज़ किया जाएगा... दरअसल, 1993 की इस सूची को पहले 2003 में, फिर 2013 में रिवाइज़ होना था, लेकिन राजनैतिक दबाव के चलते ऐसा नहीं हुआ, तो वास्तव में यह एक पोलिटिकल क्लास के खिलाफ जजमेंट है..."
केंद्र के वर्ष 1999 के फैसले के बाद 2000 में राज्य सरकार ने धौलपुर और भरतपुर के जाटों को भी आरक्षण देने का फैसला किया, जिसे सोमवार को हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है। तर्क दिया गया है कि इन दोनों इलाकों में जाट राजा रहे हैं।
जाटों की ओर से वकील रहे हनुमान चौधरी का कहना है, "जब रेवड़ियां बंट ही रही हैं तो व्हाय नॉट जाट...? जाट भी किसान हैं... खैर, अब चार महीने में सेंट्रल और स्टेट कमीशन सारी जातियों का रिवीज़न करेगी, और लिस्ट में इन्क्लूज़न और एक्सक्लूज़न किए जाएंगे..."
गौरतलब है कि राजस्थान में जाट काफी प्रभावी रहे हैं, और उन्हें आरक्षण दिए जाने के बाद से ही गुर्जरों ने अलग कैटेगरी की मांग शुरू की थी। उनका तर्क था कि जबसे ओबीसी सूची में जाट समुदाय को शामिल किया गया है, सारा लाभ वही लोग ले जाते हैं, सो, अब अगर राजस्थान सरकार की ओबीसी जातियों का नए सिरे से सर्वे कराती है, तो आरक्षण के सवाल पर कई नए तर्क सामने आ सकते हैं।
दरअसल, वर्ष 1999 में जब केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी नीत एनडीए सरकार ने जाटों को आरक्षण दिया था, तब सात लोगों ने उस निर्णय के खिलाफ अर्जी लगाई थी। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि ओबीसी कमीशन के सर्वे के बिना यह फैसला राजनीतिक फायदे के लिए किया गया है, और अब हाईकोर्ट ने उनका पक्ष स्वीकार करते हुए सरकार से ओबीसी का फिर सर्वे कराने के लिए कहा है।
फैसले के बाद याचिकाकर्ताओं में से एक यशवर्धन सिंह ने कहा, "यह ऐतिहासिक निर्णय है... हिन्दुस्तान के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब किसी राज्य की पूरी ओबीसी सूची को रिवाइज़ किया जाएगा... दरअसल, 1993 की इस सूची को पहले 2003 में, फिर 2013 में रिवाइज़ होना था, लेकिन राजनैतिक दबाव के चलते ऐसा नहीं हुआ, तो वास्तव में यह एक पोलिटिकल क्लास के खिलाफ जजमेंट है..."
केंद्र के वर्ष 1999 के फैसले के बाद 2000 में राज्य सरकार ने धौलपुर और भरतपुर के जाटों को भी आरक्षण देने का फैसला किया, जिसे सोमवार को हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है। तर्क दिया गया है कि इन दोनों इलाकों में जाट राजा रहे हैं।
जाटों की ओर से वकील रहे हनुमान चौधरी का कहना है, "जब रेवड़ियां बंट ही रही हैं तो व्हाय नॉट जाट...? जाट भी किसान हैं... खैर, अब चार महीने में सेंट्रल और स्टेट कमीशन सारी जातियों का रिवीज़न करेगी, और लिस्ट में इन्क्लूज़न और एक्सक्लूज़न किए जाएंगे..."
गौरतलब है कि राजस्थान में जाट काफी प्रभावी रहे हैं, और उन्हें आरक्षण दिए जाने के बाद से ही गुर्जरों ने अलग कैटेगरी की मांग शुरू की थी। उनका तर्क था कि जबसे ओबीसी सूची में जाट समुदाय को शामिल किया गया है, सारा लाभ वही लोग ले जाते हैं, सो, अब अगर राजस्थान सरकार की ओबीसी जातियों का नए सिरे से सर्वे कराती है, तो आरक्षण के सवाल पर कई नए तर्क सामने आ सकते हैं।
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