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क्या एक साथ आएंगे राज और उद्धव, जानिए सामना के संपादकीय में रखी गईं क्या शर्तें?

सामना के संपादकीय में लिखा है कि राज जिसे विवाद कहते हैं, वह उद्धव ठाकरे को लेकर है. लेकिन यह विवाद क्या है? यह कभी सामने नहीं आया. शिवसेना का जन्म मराठी हितों की रक्षा के लिए हुआ था और उद्धव ने इसे कभी नहीं छोड़ा. फिर विवाद कहां है?

मुंबई:

महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर हलचल है. शिवसेना (यूबीटी) के मुखपत्र 'सामना' में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के एक साथ आने की संभावना पर जहां खुशी जाहिर की गई है, वहीं राज ठाकरे के राजनीतिक सफर पर सवाल भी उठाए गए हैं. इस खबर ने न केवल महाराष्ट्र बल्कि देश की सियासत में खलबली मचा दी है. 'सामना' ने उद्धव-राज के बीच पुराने विवादों के कारणों का जिक्र करते हुए यह भी स्पष्ट किया है कि महाराष्ट्र के व्यापक हित के लिए दोनों नेता एकजुट होने को तैयार हैं, लेकिन कुछ शर्तों के साथ.

'सामना' में लिखा गया है कि उद्धव और राज ठाकरे के एक साथ आने की खबर से कई लोगों में उत्साह है, तो कुछ को "पेटदर्द" शुरू हो गया है. खास तौर पर भाजपा और एकनाथ शिंदे खेमे के लिए यह खबर असहज करने वाली मानी जा रही है. संपादकीय में राज ठाकरे की अब तक की "घुमावदार" राजनीति पर टिप्पणी की गई है, जिसमें उन्हें कभी वह सफलता नहीं मिली, जिसकी उम्मीद थी. 'सामना' का कहना है कि भाजपा और शिंदे जैसे लोग राज ठाकरे के कंधे पर बंदूक रखकर शिवसेना पर हमला करते रहे, लेकिन इससे राज को कोई राजनीतिक लाभ नहीं हुआ.

विवाद का क्या है असल कारण?

'सामना' ने उद्धव और राज के बीच तथाकथित विवाद पर सवाल उठाया है. संपादकीय में लिखा है, "राज जिसे विवाद कहते हैं, वह उद्धव ठाकरे को लेकर है. लेकिन यह विवाद क्या है? यह कभी सामने नहीं आया. शिवसेना का जन्म मराठी हितों की रक्षा के लिए हुआ था और उद्धव ने इसे कभी नहीं छोड़ा. फिर विवाद कहां है? 'सामना' का तर्क है कि यह विवाद भाजपा और शिंदे जैसे नेताओं ने खड़ा किया. अगर इन्हें दूर रखा जाए, तो कोई मतभेद नहीं रहता.

राज की इच्छा, उद्धव ने क्या कहा?

हाल ही में एक साक्षात्कार में राज ठाकरे ने कहा था कि महाराष्ट्र और मराठी हितों के सामने उनका और उद्धव का व्यक्तिगत विवाद कोई मायने नहीं रखता. उन्होंने एकजुट होने की इच्छा जाहिर की थी. जवाब में उद्धव ठाकरे ने भी एक सभा में सकारात्मक रुख अपनाते हुए कहा, "अगर कोई छोटा-मोटा विवाद भी हो, तो मैं महाराष्ट्र के हित के लिए मिलकर काम करने को तैयार हूं." 'सामना' ने इसे "महाराष्ट्र की जनभावना की तुरही" करार दिया है.

उद्धव की शर्त: 'महाराष्ट्र के दुश्मनों को दूर रखें'

हालांकि, उद्धव ठाकरे ने कुछ शर्तें भी सामने रखी हैं. 'सामना' के अनुसार, उद्धव का कहना है कि "महाराष्ट्र के दुश्मनों को घर में पनाह नहीं मिलनी चाहिए." इसके पीछे उनकी पीड़ा यह है कि नरेंद्र मोदी, अमित शाह, देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे जैसे नेताओं ने बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना को कमजोर करने की कोशिश की. 'सामना' में सवाल उठाया गया है कि जब राज ठाकरे का जन्म भी शिवसेना के गर्भ से हुआ है, तो महाराष्ट्र के साथ "बेईमानी" करने वालों के साथ मिलकर हितों की बात कैसे हो सकती है?

'महाराष्ट्र के लिए अमृत चाहिए'

'सामना' ने संपादकीय में चेतावनी दी है कि मौजूदा "जहरीले दौर" में मराठी जनता को सतर्क रहना होगा. मोदी, शाह और फडणवीस जैसे नेताओं पर "राजनीति में जहर बोने" का आरोप लगाते हुए कहा गया है कि उन्होंने महाराष्ट्र को कमजोर करने का काम किया. संपादकीय में उम्मीद जताई गई है कि राज ठाकरे अब "महाराष्ट्र के दुश्मनों" के साथ नहीं खड़े होंगे और उद्धव के साथ मिलकर मराठी स्वाभिमान और महाराष्ट्र के कल्याण के लिए काम करेंगे.

क्या गेम-चेंजर साबित होगी यह एकजुटता? 

उद्धव और राज के एकजुट होने की संभावना ने महाराष्ट्र की सियासत में नई संभावनाओं को जन्म दिया है. विश्लेषकों का मानना है कि अगर यह एकजुटता हकीकत में बदलती है, तो यह न केवल शिवसेना (यूबीटी) और मनसे के लिए, बल्कि विपक्षी गठबंधन के लिए भी बड़ा गेम-चेंजर साबित हो सकता है. हालांकि, उद्धव की शर्तों और राज के अगले कदम पर सभी की नजरें टिकी हैं.

महाराष्ट्र की जनता अब इस सवाल का जवाब तलाश रही है कि क्या यह एकजुटता मराठी हितों के लिए "विष से अमृत" निकाल पाएगी, या यह सिर्फ सियासी चर्चा तक सीमित रह जाएगी?

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