राहुल गांधी इस वर्ष मई में कांग्रेस के शीर्ष पद पर अपनी मां का स्थान ले सकते हैं जिनके बारे में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा है कि वह अपने अवकाश से जल्द ही लौटेंगे।
इस उद्देश्य के लिए कांग्रेस कार्य समिति के साथ एआईसीसी की बैठक मई में दिल्ली या पार्टी के शासन वाले हिमाचल प्रदेश या उत्तराखंड में बुलाने की संभावना के बारे में चर्चा चल रही है और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी के अवकाश से लौटने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष के पद का मुद्दा तेज होगा।
राहुल की लम्बी अनुपस्थिति पर चल रही चर्चा के बीच कांग्रेस ने 26 मार्च को पार्टी के संगठनात्मक चुनाव का कार्यक्रम पेश किया था जिसके तहत अगले पार्टी प्रमुख का चुनाव 30 सितंबर तक होने का कार्यक्रम है। पार्टी नेताओं ने जोर दिया है कि अवकाश से संभवत: अगले महीने लौटने के बाद राहुल इस बात पर फैसला करेंगे कि पार्टी प्रमुख का पद कब ग्रहण करना है। इन नेताओं का कहना है कि जितनी जल्दी वह इस पद को ग्रहण करेंगे, उतना ही बेहतर होगा।
अगर राहुल पार्टी अध्यक्ष बनने का निर्णय करते हैं तब सोनिया गांधी कांग्रेस संसदीय दल का अध्यक्ष बनी रहेंगी और संसदीय कार्यों को तवज्जो देंगी। कांग्रेस में संगठनात्मक चुनाव का कार्यक्रम तैयार किये जाने के बीच पार्टी के भीतर इस बात पर भी चर्चा चल रही है कि अंतत: सोनिया पार्टी की कमान राहुल को देंगी जिन्हें जनवरी 2013 में कांग्रेस उपाध्यक्ष बनाया गया था।
राहुल गांधी को जयपुर में कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में पदोन्नत किया गया और इसके अगले दिन एआईसीसी ने इस फैसले का अनुमोदन किया था। कुछ नेताओं का कहना है कि अगर उन्हें पार्टी अध्यक्ष बनाने का फैसला किया जाता है तब उसी प्रक्रिया को दोहराया जा सकता है और संगठनात्मक चुनाव के आड़े नहीं आयेंगे।
ऐसी अटकलें थी कि राहुल को किसी भी समय कांग्रेस अध्यक्ष मनोनित किया जा सकता है लेकिन बजट सत्र से ठीक पहले उनके अवकाश लेने से भविष्य की योजनाओं पर सवाल उठने लगे। सोनिया गांधी ने अब तक सबसे अधिक समय तक कांग्रेस का अध्यक्ष बनने का रिकॉर्ड बनाया है और उन्होंने इस पद पर 17 वर्ष पूरे किये हैं।
शनिवार को राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी के दौरे पर गई सोनिया गांधी ने मीडिया से कहा कि कांग्रेस उपाध्यक्ष जल्द ही लौगेंगे। उल्लेखनीय है कि सोनिया गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद 1998 में ग्रहण किया था और सीताराम केसरी का स्थान लिया था।
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