राहुल गांधी के सामने हैं कई चुनौतियां जिनसे उन्हें हर हाल में पार पाना ही होगा
नई दिल्ली:
राहुल गांधी का कांग्रेस अध्यक्ष बनना अब सिर्फ औपचारिकता ही रह गई है. सोमवार को उन्होंने नामांकन किया है और कांग्रेस के नेताओं ने उनको बधाई भी देना भी शुरू कर दिया है. लेकिन मौजूदा दौर में कांग्रेस जिन हालातों से गुजर रही है, पार्टी के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी 'कांटों भरा ताज' कहा जाए तो कुछ गलत नहीं होगा. उनके सामने चुनौती के रूप में पीएम मोदी जैसा 'ब्रांड' है. मोदी न सिर्फ अच्छे वक्ता हैं बल्कि विरोधियों की किसी भी गलती को पल भर में मुद्दा बनाने से भी नहीं चूकते हैं. कांग्रेस के नेता मणिशंकर अय्यर इस बात को अच्छी तरह से जान चुके होंगे. राहुल गांधी को अगर कांग्रेस में दोबारा जान फूंकनी है तो कम से कम कुछ चुनौतियां ऐसे हैं जिनसे हर हाल में उनको जूझना ही पड़ेगा.
गुजरात चुनाव के नतीजे जो भी हों, फायदा राहुल गांधी को ही होगा - ये हैं 5 कारण
1- गुजरात में 'चमत्कार'
राहुल गांधी ऐसे समय कांग्रेस के अध्यक्ष बनने जा रहे हैं जब गुजरात में विधानसभा चुनाव को लेकर प्रचार चरम पर है. सर्वे में दावा किया जा रहा है कि इस बार कांग्रेस बीजेपी को बराबरी की टक्कर दे रही है. अगर राहुल के अध्यक्ष बनते ही कांग्रेस वहां चुनाव जीतती है या सरकार बना ले जाती है तो सही तौर पर यह उनका भारतीय राजनीति में अब तक सबसे बड़ा आगाज होगा.
कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए राहुल गांधी के नामांकन पर पार्टी नेताओं ने दी बधाई, लेकिन कहां हैं 'गुरु' दिग्विजय सिंह
2-विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की वापसी
गुजरात के बाद कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, मिजोरम, त्रिपुरा, मेघालय में विधानसभा चुनाव होने हैं. इनमें राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार है. यहां पर राहुल को सत्ता विरोधी लहर का फायदा मिल सकता है. लेकिन कर्नाटक, मिजोरम, मेघालय में सरकार बचाने की भी चुनौती है. अगर कांग्रेस में इन राज्यों में कामयाब होती है तो यह राहुल ब्रांड को मजबूती मिल जाएगी.
पीएम मोदी ने कहा, ये 'औरंगजेब राज' कांग्रेस को मुबारक...तो कांग्रेस ने ऐसे किया पलटवार
3- भाषा पर मजबूत पकड़
हालांकि गुजरात चुनाव में राहुल के भाषणों में धार है. लेकिन अभी उनकी शब्दों में 'आक्रामकता' और 'वीर रस' का अभाव दिखता है. चुनाव के मैदान में यह दोनों ही बड़े हथियार हैं. भारतीय राजनीति में खासकर हिंदी पट्टी में इनका बड़ा महत्व है. वहीं मुद्दों को लेकर उनको अभी और तैयारी करनी होगी. दूसरा सबसे ज्यादा ध्यान शब्दों को चयन पर रखना होगा. 'पिड्डी', 'आलू के फैक्टरी' जैसे बयान उनकी छवि को ही नुकसान पहुंचाते हैं.
4- पार्टी में बिखराव को रोकना होगा
कांग्रेस में इस समय अंदर ही अंदर काफी उबाल है. दिल्ली में हुए विधानसभा और निकाय चुनाव के बाद कई नेता राहुल गांधी के खिलाफ भी मोर्चा खोल चुके हैं. यही हाल दूसरे राज्यों में भी है. युवा नेताओं और बुजुर्ग नेताओं के बीच भी तनातनी की खबरें आती रहती हैं. मध्य प्रदेश में हम यह हाल देख ही चुके हैं. राहुल को पार्टी के छत्रपों को साधना होगा.
राहुल गांधी कांग्रेस के डार्लिंग हैं, वह पार्टी की महान परंपरा को आगे बढ़ाएंगे : डॉ. मनमोहन सिंह
5- कार्यकर्ताओं को निराशा से उबारना
कांग्रेस में इस समय वीआईपी कल्चर हावी है. कई राज्यों के नेताओं का भी मानना है कि राहुल के आसपास मौजूद रहने वाले नेताओं की ही सुनी जाती है. बड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच चौड़ी खाई है. अध्यक्ष के रूप में राहुल को हर कार्यकर्ता को अहसास दिलाना होगा कि पार्टी में उनकी क्या अहमियत है इसके साथ ही उनको जिम्मेदारी भी देनी होगी.
वीडियो : क्या राहुल की ताजपोशी वंशवाद है
6- बदलते दौर मे चुनाव के 'माइक्रो मैनेजमेंट' पर करना होगा काम
बीजेपी ने यह काम बीते दिनों में खूब किया है. बीजेपी ने पहले तो कार्यकर्ताओं की एक बड़ी फौज तैयार की फिर उनको काम काम देने के लिए हर चुनाव को गंभीरता से लड़ना शुरू कर दिया. जिन लोगों का नंबर सांसद, विधायक के चुनाव में नहीं लग पाता है उनको पार्टी अपने सिंबल पर निकाय और स्थानीय चुनाव लड़ाने लगी. कांग्रेस को भी इस रणनीति पर काम करना चाहिए ताकि कार्यकर्ताओं को यह न लगे उनके पास सिर्फ चुनाव के समय प्रचार करने तक का ही काम है.
गुजरात चुनाव के नतीजे जो भी हों, फायदा राहुल गांधी को ही होगा - ये हैं 5 कारण
1- गुजरात में 'चमत्कार'
राहुल गांधी ऐसे समय कांग्रेस के अध्यक्ष बनने जा रहे हैं जब गुजरात में विधानसभा चुनाव को लेकर प्रचार चरम पर है. सर्वे में दावा किया जा रहा है कि इस बार कांग्रेस बीजेपी को बराबरी की टक्कर दे रही है. अगर राहुल के अध्यक्ष बनते ही कांग्रेस वहां चुनाव जीतती है या सरकार बना ले जाती है तो सही तौर पर यह उनका भारतीय राजनीति में अब तक सबसे बड़ा आगाज होगा.
कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए राहुल गांधी के नामांकन पर पार्टी नेताओं ने दी बधाई, लेकिन कहां हैं 'गुरु' दिग्विजय सिंह
2-विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की वापसी
गुजरात के बाद कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, मिजोरम, त्रिपुरा, मेघालय में विधानसभा चुनाव होने हैं. इनमें राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार है. यहां पर राहुल को सत्ता विरोधी लहर का फायदा मिल सकता है. लेकिन कर्नाटक, मिजोरम, मेघालय में सरकार बचाने की भी चुनौती है. अगर कांग्रेस में इन राज्यों में कामयाब होती है तो यह राहुल ब्रांड को मजबूती मिल जाएगी.
पीएम मोदी ने कहा, ये 'औरंगजेब राज' कांग्रेस को मुबारक...तो कांग्रेस ने ऐसे किया पलटवार
3- भाषा पर मजबूत पकड़
हालांकि गुजरात चुनाव में राहुल के भाषणों में धार है. लेकिन अभी उनकी शब्दों में 'आक्रामकता' और 'वीर रस' का अभाव दिखता है. चुनाव के मैदान में यह दोनों ही बड़े हथियार हैं. भारतीय राजनीति में खासकर हिंदी पट्टी में इनका बड़ा महत्व है. वहीं मुद्दों को लेकर उनको अभी और तैयारी करनी होगी. दूसरा सबसे ज्यादा ध्यान शब्दों को चयन पर रखना होगा. 'पिड्डी', 'आलू के फैक्टरी' जैसे बयान उनकी छवि को ही नुकसान पहुंचाते हैं.
4- पार्टी में बिखराव को रोकना होगा
कांग्रेस में इस समय अंदर ही अंदर काफी उबाल है. दिल्ली में हुए विधानसभा और निकाय चुनाव के बाद कई नेता राहुल गांधी के खिलाफ भी मोर्चा खोल चुके हैं. यही हाल दूसरे राज्यों में भी है. युवा नेताओं और बुजुर्ग नेताओं के बीच भी तनातनी की खबरें आती रहती हैं. मध्य प्रदेश में हम यह हाल देख ही चुके हैं. राहुल को पार्टी के छत्रपों को साधना होगा.
राहुल गांधी कांग्रेस के डार्लिंग हैं, वह पार्टी की महान परंपरा को आगे बढ़ाएंगे : डॉ. मनमोहन सिंह
5- कार्यकर्ताओं को निराशा से उबारना
कांग्रेस में इस समय वीआईपी कल्चर हावी है. कई राज्यों के नेताओं का भी मानना है कि राहुल के आसपास मौजूद रहने वाले नेताओं की ही सुनी जाती है. बड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच चौड़ी खाई है. अध्यक्ष के रूप में राहुल को हर कार्यकर्ता को अहसास दिलाना होगा कि पार्टी में उनकी क्या अहमियत है इसके साथ ही उनको जिम्मेदारी भी देनी होगी.
वीडियो : क्या राहुल की ताजपोशी वंशवाद है
6- बदलते दौर मे चुनाव के 'माइक्रो मैनेजमेंट' पर करना होगा काम
बीजेपी ने यह काम बीते दिनों में खूब किया है. बीजेपी ने पहले तो कार्यकर्ताओं की एक बड़ी फौज तैयार की फिर उनको काम काम देने के लिए हर चुनाव को गंभीरता से लड़ना शुरू कर दिया. जिन लोगों का नंबर सांसद, विधायक के चुनाव में नहीं लग पाता है उनको पार्टी अपने सिंबल पर निकाय और स्थानीय चुनाव लड़ाने लगी. कांग्रेस को भी इस रणनीति पर काम करना चाहिए ताकि कार्यकर्ताओं को यह न लगे उनके पास सिर्फ चुनाव के समय प्रचार करने तक का ही काम है.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं