
हांगकांग में एशियन वेंचर फिलैंथ्रोपी नेटवर्क (एवीपीएन) समिट में अदाणी फाउंडेशन की अध्यक्ष डॉ. प्रीति अदाणी ने परोपकार को दान से आगे बढ़कर जिम्मेदारी पर आधारित एक सहयोगात्मक मिशन बनाने का आह्वान किया.
कच्छ के रेगिस्तान की सुनाई कहानी
उन्होंने अपनी बात कच्छ के रेगिस्तान की एक कहानी से शुरू की. उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने एक महिला को सूखी, बंजर जमीन में बीज बोते हुए देखा था.
जब उस महिला से पूछा गया कि वह इतनी मुश्किल परिस्थितियों में बीज क्यों बो रही है, तो उसने जवाब दिया कि एक दिन बारिश जरूर आएगी और अगर बीज नहीं बोए गए, तो बारिश के आने पर भी कुछ नहीं उगेगा.

'एवीपीएन नेटवर्क, बदलाव का मूवमेंट'
डॉ. अदाणी ने इस दृढ़ता और विश्वास की भावना को समाज-सेवा के काम के लिए एक उदाहरण के तौर पर इस्तेमाल किया और एवीपीएन को न केवल एक नेटवर्क के रूप में, बल्कि बदलाव का एक ऐसा मूवमेंट बताया, जिसमें नदियों की तरह सभी मिलकर एक समुद्र बनाते हैं.
डॉ. अदाणी ने अहमदाबाद में एक युवा डेंटिस्ट से लेकर अपने पति गौतम अदाणी के राष्ट्र निर्माण के दृष्टिकोण को पूरा करने के लिए अपना पेशा छोड़ने तक की अपनी व्यक्तिगत यात्रा के बारे में बताया.
'विकास का असली मूल्य स्कूल, अस्पताल और आजीविका के सस्टेनेबल डेवलपमेंट में निहित'
उन्होंने अपने पति गौतम अदाणी के इस विश्वास को याद किया कि विकास का असली मूल्य निर्माण में नहीं, बल्कि स्कूल, अस्पताल और आजीविका के सस्टेनेबल डेवलपमेंट में निहित है, जो समुदायों को बेहतर बनाते हैं.
उन्होंने कहा कि इसी विश्वास ने 1996 में अदाणी फाउंडेशन की स्थापना को आकार दिया. अदाणी फाउंडेशन जो तब से अब भारत के सबसे बड़े सामाजिक प्रभाव संगठनों में से एक के रूप में विकसित हुआ है और जिसे परोपकार के लिए 7 बिलियन डॉलर के पारिवारिक संकल्प का समर्थन प्राप्त है.

यह फाउंडेशन अब एजुकेशन, हेल्थकेयर, पोषण, सस्टेनेबल आजीविका, कम्युनिटी इंफ्रास्ट्रक्चर और क्लाइमेट एक्शन के क्षेत्र में काम करते हुए 7,000 गांवों और 96 लाख से अधिक लोगों तक अपनी पहुंच बढ़ा चुका है.
उन्होंने जोर देते हुए कहा कि फाउंडेशन की सफलता का असली पैमाना संख्याओं में नहीं, बल्कि उनके पीछे की कहानियों में है.
उन्होंने गुजरात के तीन साल के वंश का किस्सा सुनाया, जिसका वजन केवल आठ किलोग्राम था और जो धीरे-धीरे कमजोर होता जा रहा था. तब फाउंडेशन द्वारा प्रशिक्षित एक स्थानीय महिला ने बच्चे की मां का मार्गदर्शन किया और सुनिश्चित किया कि वंश फिर से स्वस्थ हो जाए.
उन्होंने महाराष्ट्र की दो बच्चों की विधवा मां रेखा की कहानी बताई, जिसने निराशा पर विजय पाकर अपने गांव में मिल्क चिलिंग सेंटर चलाने वाली पहली महिला बनीं. इतना ही नहीं, उन्होंने सौ से भी ज्यादा लोगों को अपने नक्शेकदम पर चलने के लिए प्रेरित किया.
उन्होंने मुंद्रा की लड़की सोनल के सफर की कहानी बताई, जिसने अदाणी स्कूल में अपनी पढ़ाई पूरी कर आयरलैंड से मास्टर डिग्री हासिल की और आज टेक कंपनी एप्पल में काम करती है.
डॉ. अदाणी ने कहा कि ये कहानियां दर्शाती हैं कि लाभार्थियों को केवल मदद पाने वाला नहीं बनना चाहिए, बल्कि खुद आशा के निर्माता और प्रभाव को बढ़ाने वाला बनना चाहिए. उन्होंने ऑडियंस से कहा, "यह ताली बजाने का नहीं, बल्कि प्रतिबद्धता का क्षण है."
उन्होंने तर्क दिया कि वास्तविक परिवर्तन केवल डोनर बनने के बजाय सह-निर्माता बनने में निहित है. उन्होंने कहा कि यह तभी संभव है जब हर योगदान सरकार, व्यापार और समाज के साथ मिलकर एक बड़ी साझेदारी का हिस्सा बने. असली बदलाव तब आएगा जब हम मदद पाने वालों को ऐसे लोगों में बदल देंगे जो इस मदद के असर को और आगे बढ़ा सकें. और यह तब आएगा जब हम अपने कौशल को अपने मूल्यों से जोड़ेंगे, ताकि विकास केवल अवसर के बारे में न होकर एक उद्देश्य के बारे में भी हो.
हमें ऐसी जनरेशन बनना होगा जो सूखे में बीज बोती हो, बारिश के आने से पहले ही इसके आने पर विश्वास करती हो और जो सभी के लिए सम्मान और अवसरों के मौके पेश करते हों. उन्होंने कहा कि बारिश आएगी जब आएगी तो इतिहास को याद रखना होगा कि किसी ने तो बीज बोए थे, किसी ने तो अपनी नदियों को सहयोग के सागर में मिलाया था और लाखों लोगों के लिए आशा की किरण जगाई थी.
(Disclaimer: New Delhi Television is a subsidiary of AMG Media Networks Limited, an Adani Group Company.)
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