राहुल गांधी ने एससी/एसटी एक्ट में बदलाव का विरोध किया है. उन्होंने राष्ट्रपति से मुलाकात की.
नई दिल्ली:
एससी/एसटी एक्ट में बदलाव के खिलाफ कदम उठाने की मांग को लेकर बुधवार को जहां NDA के दलित और आदिवासी सांसद प्रधानमंत्री से मिले वहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी राष्ट्रपति से मिलने पहुंच गए. साफ है कि इस एक्ट में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से जो परिवर्तन हुआ है उसने एक नई राजनीति का दरवाज़ा खोल दिया है. राहुल गांधी ने ट्वीट करके कहा सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला ऐसे समय में आया है जब दलितों और आदिवासियों के खिलाफ देश भर में अत्याचार के मामले बढ़ते जा रहे हैं.
ज़ाहिर है कि हर पार्टी पर इस मुद्दे का दबाव है इसीलिए प्रधानमंत्री से मिलने वाले एनडीए सांसदों में सरकार के मंत्री भी शामिल थे .सबने एक सुर में कहा कि सुप्रीम कोर्ट के ताज़ा फैसले से एससी/एसटी एक्ट कमजोर हुआ है और इस पर पुनर्विचार याचिका दायर होनी चाहिए.
यह भी पढ़ें : SC/ST एक्ट के प्रावधानों में बदलाव पर लोजपा ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की याचिका
इन सांसदों की अगुवाई कर रहे केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी के नेता रामविलास पासवान ने प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद कहा , "हमने इस कानून में बदलाव को निरस्त कराने की मांग की है. यह कानून हम 1989 में लाए थे. हम इसे कमजोर नहीं होने देंगे."
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते एक आदेश में एससी/एसटी एक्ट के प्रावधानों में ढील दी. इसमें गिरफ्तारी से पहले सीनियर पुलिस अधिकारी द्वारा जांच कराए जाने और सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी के लिए उसकी नियुक्ति करने वाले अफसर की अनुमति ज़रूरी है. लेकिन विपक्ष ने कहा कि सरकार ने कोर्ट में सही तरह से कानून की पैरवी नहीं की. उसने सरकार पर अगड़ी मानसिकता से ग्रस्त होने का आरोप लगाया.
VIDEO : संसद परिसर में कांग्रेस का प्रदर्शन
दलित आदिवासियों की कुल आबादी 30 प्रतिशत से अधिक है....सरकार पर राजनीतिक दबाव है. बस वह इस कोशिश में है कि अगर पुनर्विचार याचिका दायर हो तो उसका राजनीतिक लाभ विपक्ष को न मिल जाए. अपने सांसदों और मंत्रियों की ये मांग उसका रास्ता कुछ साफ ही करती है.
ज़ाहिर है कि हर पार्टी पर इस मुद्दे का दबाव है इसीलिए प्रधानमंत्री से मिलने वाले एनडीए सांसदों में सरकार के मंत्री भी शामिल थे .सबने एक सुर में कहा कि सुप्रीम कोर्ट के ताज़ा फैसले से एससी/एसटी एक्ट कमजोर हुआ है और इस पर पुनर्विचार याचिका दायर होनी चाहिए.
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सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते एक आदेश में एससी/एसटी एक्ट के प्रावधानों में ढील दी. इसमें गिरफ्तारी से पहले सीनियर पुलिस अधिकारी द्वारा जांच कराए जाने और सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी के लिए उसकी नियुक्ति करने वाले अफसर की अनुमति ज़रूरी है. लेकिन विपक्ष ने कहा कि सरकार ने कोर्ट में सही तरह से कानून की पैरवी नहीं की. उसने सरकार पर अगड़ी मानसिकता से ग्रस्त होने का आरोप लगाया.
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दलित आदिवासियों की कुल आबादी 30 प्रतिशत से अधिक है....सरकार पर राजनीतिक दबाव है. बस वह इस कोशिश में है कि अगर पुनर्विचार याचिका दायर हो तो उसका राजनीतिक लाभ विपक्ष को न मिल जाए. अपने सांसदों और मंत्रियों की ये मांग उसका रास्ता कुछ साफ ही करती है.