बांग्लादेश राजनीतिक आग में झुलस रहा है और उस आग की लपटें भारत तक भी पहुंच गई हैं. बांग्लादेश में हुई उथल-पुथल से भारत-बांग्लादेश व्यापार पर बहुत बुरा असर पड़ा है. हजारों व्यापारियों और उनसे जुड़े लाखों कर्मचारी हताश और निराश हैं. भारत-बांग्लादेश के ठप पड़े इस कारोबार ने बंगाल के सिलीगुड़ी की मंडी को भी काफी नुकसान पहुंचाया है.
निर्यातक संघ के सचिव ब्रज किशोर ने कहा कि पूरा बिजनेस प्रभावित है. 10% का भी एक्सपोर्ट बिजनेस नहीं बचा है. सभी मेंबर डरे हुए हैं. लोग सोच रहे हैं कि बांग्लादेश से बिजनेस करें कि नहीं.
निर्यातक संघ के सचिव ने कहा, "बिजनेस पूरी तरह से ठप हो गया है. मान लीजिए, LC हमको पहले से मिला हुआ है और हमने माल Procure कर लिया है. अब हमारी गाड़ी आगे बॉर्डर पर खड़ी है. हमको पर दिन, हर गाड़ी पर दो हजार रुपये का DC देना पड़ता है. ये सीधा हमारा नुकसान है. जो माल हमने सप्लाई कर दिया, अब वहां सब कुछ ठप है. बैंक बंद हैं, तो हमारा बिल नहीं आ पा रहा है. हमारा पेमेंट भी रिलीज नहीं हो रहा है."
ठप पड़े इस कारोबार का असर भारत-बांग्लादेश सीमा पर साफ़ दिखता है. फुलबारी की इसी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर कभी ट्रकों की लंबी क़तार आ जा रही होती थी. आज हजारों ट्रक इंतज़ार में खड़े हैं.
मंडियों का भी हाल कुछ ऐसा ही है. जो कभी गुलज़ार रहती थीं, आज वहां सन्नाटा पसरा है.
एक व्यापारी मंगत राम ने कहा, "बांग्लादेश की घटना का बाज़ार पर असर पड़ा है. प्याज पर ज्यादा असर है. लहसुन पर नहीं है. बाज़ार में कस्टमर कम हो गया है."
सिलीगुड़ी मंडी से ही बांग्लादेश में प्रतिदिन 1200 से 1500 ट्रक जाते थे. उन ट्रकों में चावल, गेहूं, मक्का, सरसों, सोयाबीन, मकान बनाने के लिए पत्थर, खाने वाले मसाले, जैसे की जीरा, धनिया, लहसुन और प्याज बड़ी तादात में भारत से निर्यात होता था. व्यापारियों के मुताबिक जो व्यापार पहले 100 रुपये का था, अब वो पांच से दस रुपए का रह गया है यानी 5 से 10 प्रतिशत.
प्याज, मक्का और लहसुन से यहां के गोदाम भरे पड़े हैं, जिन्हें औने पौने दामों में यहीं बेचना पड़ रहा है.
बांग्लादेश की राजनीतिक उठापटक ने वहां की अर्थव्यवस्था को नुकसान तो पहुंचाया ही है, लेकिन साथ ही अपने पड़ोसी भारत को भी खासा प्रभावित किया है और इससे जुड़े लोग अब इस आस में बैठे हैं कि वहां एक चुनी हुई स्थिर सरकार आ जाए, ताकि वो पहले की तरह, निश्चिंत होकर अपना कारोबार कर सकें.
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