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This Article is From Mar 05, 2020

CAA का विरोध करने पर मिला 'भारत छोड़ो का नोटिस' तो पोलैंड के छात्र ने खटखटाया कोर्ट का दरवाजा

छात्र ने हाईकोर्ट में दाखिल अपनी याचिका में नोटिस को प्रभावी करने से रोकने की प्रार्थना की है. जिसमें, उसे नोटिस मिलने के 14 दिनों के भीतर भारत छोड़ने के लिए कहा गया है.

CAA का विरोध करने पर मिला 'भारत छोड़ो का नोटिस' तो पोलैंड के छात्र ने खटखटाया कोर्ट का दरवाजा
'भारत छोड़ो नोटिस' के खिलाफ कलकत्ता हाई कोर्ट पहुंचा पोलैंड का छात्र (फाइल फोटो)
कोलकाता:

जाधवपुर यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले पोलैंड के एक छात्र ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध के आरोप में मिले 'भारत छोड़ो नोटिस' के खिलाफ बुधवार को कलकत्ता उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. विदेशी छात्र पर सीएए के विरोध में हुई रैली में हिस्सा लेने का आरोप है. छात्र ने कोर्ट से केंद्र सरकार के आदेश को रोकने और केंद्र को अपना आदेश वापस लेने के लिए निर्देश देने की मांग की है. जाधवपुर यूनिवर्सिटी से मास्टर डिग्री कर रहे विदेशी छात्र कामिल सिदस्यंसकी को विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (एफआरआरओ), कोलकाता की ओर से 14 फरवरी को "भारत छोड़ो नोटिस" मिला था. जिसमें उसे नोटिस प्राप्त होने के 14 दिन के भीतर भारत छोड़ने के लिए कहा गया था. 

छात्र ने हाईकोर्ट में दाखिल अपनी याचिका में नोटिस को प्रभावी करने से रोकने की प्रार्थना की है. जिसमें, उसे नोटिस मिलने के 14 दिनों के भीतर भारत छोड़ने के लिए कहा गया है. नोटिस में कहा गया है कि छात्र कथित रूप से सरकार विरोधी गतिविधियों में शामिल था, जो कि वीजा नियमों का उल्लंघन है. हालांकि, छात्र ने इस आरोप को खारिज किया है. 

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छात्र के वकील जयंत मित्रा ने कोर्ट के समक्ष कहा कि दिसंबर 2019 को कामिल सिदस्यंसकी को जाधवपुर यूनिवर्सिटी के अन्य स्टूडेंट्स के साथ शहर के न्यू मार्केट इलाके में एक कार्यक्रम में जाने के लिए राजी किया गया था. वकील ने कहा कि उसे जब यह मालूम पड़ा कि यह कार्यक्रम विभिन्न वर्गों द्वारा आयोजित एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन था, तो उसने खुद को छात्रों के समूह से अलग कर लिया और दर्शक की भूमिका में खड़ा हो गया.  

छात्र का दावा है कि वहां एक शख्स ने उससे कुछ सवाल पूछे और उसकी तस्वीर ली. बाद में उसे पता चला कि वह एक बंगाली दैनिक अखबार का फोटो जर्नलिस्ट है. उस अखबार ने छात्र की तस्वीर और कुछ खबरें प्रकाशित कीं. मित्रा का दावा है कि रिपोर्ट में कुछ बयानों को गलत तरीके से कामिल का बताया गया है.  

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मित्रा ने कोर्ट में दावा किया यह आदेश मनमाना है और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ और संविधान की ओर से दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.

याचिका के अनुसार, पोलिश नागरिक ने एफआरआरओ से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की भी गुहार लगाई है क्योंकि विश्वविद्यालय से उसके मास्टर्स का कोर्स पूरा होने में सिर्फ चार महीने का समय बचा है. कामिल ने कहा कि उसने अपनी "गलती" से बहुत कुछ सीखा है और वचन देता है कि दोबारा वह इसे नहीं दोहराएगा.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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