
- प्रधानमंत्री मोदी ने संसद में बताया कि सिंधु समझौते के तहत बांधों के डिज़ाइन पाकिस्तान के दबाव में बनाए गए थे
- सलाल बांध में अंडर स्लूस गेट को कंक्रीट से प्लग कर दिया गया जिससे सिल्ट जमा होकर बिजली उत्पादन प्रभावित हुआ
- पाकिस्तान के विरोध के कारण सलाल बांध को स्टोरेज डैम की बजाय रन ऑफ द रिवर प्रोजेक्ट बनाया गया था
ऑपरेशन सिंदूर पर संसद में विशेष चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने इतिहास से निकालकर ऐसे कई मुद्दों का ज़िक्र किया जो भारत के हितों के आड़े आते रहे हैं. इनमें से एक मुद्दा है सिंधु समझौते के तहत सिंधु, झेलम और चिनाब नदी पर बने बांधों का डिज़ाइन पाकिस्तान के दबाव में तैयार किया गया. ये जानना दिलचस्प है कि बांधों के डिज़ाइन में ऐसा क्या किया गया, जो भारत के हित में नहीं था. इसके लिए आपको दो बांधों का उदाहरण देते हैं. पहला बांध है सलाल बांध, जो चिनाब नदी पर भारत का आख़िरी बांध है. जो रियासी ज़िले में बनाया गया है. आप हैरान होंगे ये जानकर कि 1987 में बने 690 मेगावॉट के इस बांध में जमा सिल्ट को निकालने के लिए बनाए गए अंडर स्लूस गेट को कंक्रीट से प्लग कर दिया गया. और ये काम पाकिस्तान के दबाव में किया गया. इस कारण इस बांध में 1987 से सिल्ट लगातार जमा हो रही है और इस कारण बांध का डेड स्टोरेज काफ़ी बढ़ गया है और बिजली उत्पादन भी काफ़ी प्रभावित हुआ है.
क्यों बनाए जाते हैं बांध
इसे ठीक से समझने के लिए एक बांध को समझना होगा. किसी भी नदी पर बांध इसलिए बनाए जाते हैं ताकि उसके पानी के इस्तेमाल से बिजली पैदा की जा सके. इसके लिए पानी को पहले रोकना होता है. जिसके लिए डैम यानी बांध बनाना होता है. जो ईंट, कंक्रीट या मिट्टी की एक मज़बूत दीवार होती है. नदी दो ओर पहाड़ियों से घिरी होती है और तीसरी ओर से ये दीवार खड़ी हो जाती है. पीछे से आने वाला पानी रुकने लगता है और इस पानी को एक निश्चित ऊंचाई से सुरंगों के ज़रिए टर्बाइन्स पर गिराया जाता है, पानी की ताक़त टर्बाइन्स को घुमाती है, जिससे बिजली पैदा की जाती है. नदियों से जो पानी आता है उसमें काफ़ी मात्रा में गाद होती है यानी पहाड़ों के कटाव से आने वाली मिट्टी जिसे सिल्ट भी कहा जाता है. समय के साथ साथ सिल्ट बांध में नीचे जमा होती जाती है, जिससे पानी के भंडारण के लिए जगह कम पड़ती है. वैसे बांधों में सिल्ट यानी गाद को कम करने के तकनीकी उपाय होते हैं, डिसिल्टिंग बेसिन बनाए जाते हैं लेकिन फिर भी सिल्ट को बांध में आने से पूरी तरह नहीं रोका जा सकता. सिल्ट को निकालने के लिए बांधों में नीचे गेट बनाए जाते हैं, जिन्हें स्लूस गेट कहा जाता है. इन गेटों को खोल दिया जाए तो सारा सिल्ट आगे बह जाता है इसे फ्लशिंग कहते हैं. सिल्ट निकल जाने से पानी के भंडारण की जगह बन जाती है.
जब पाकिस्तान ने जताया ऐतराज
चिनाब नदी पर सलाल बांध को रन ऑफ द रिवर प्रोजेक्ट बनाना पड़ा, क्योंकि इसे बनाते वक़्त भी पाकिस्तान ने काफ़ी ऐतराज़ किया था जैसा बाद में उसने बगलिहार बांध को लेकर भी किया. सलाल बांध को दरअसल पहले स्टोरेज डैम के तौर पर बनाने की योजना थी, ताकि उससे बिजली उत्पादन की क्षमता ज़्यादा हो जाए. लेकिन पाकिस्तान और वर्ल्ड बैंक के आग्रह पर इसे रन ऑफ द रिवर डैम बनाने का फ़ैसला किया गया. पाकिस्तान को डर था कि स्टोरेज डैम बना तो भारत किसी झड़प की स्थिति में पूरा पानी छोड़कर पाकिस्तान में बाढ़ ला सकता है. जब नदियों में पानी कम हो तो पाकिस्तान का पानी रोक सकता है. सलाल डैम को पहले अंडर स्लूस गेट बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया था. यानी बांध में नीचे की ओर छोटे रास्ते जिनसे पानी को अलग अलग स्तरों पर निकाला जा सके और जिनके ज़रिए सिल्ट को भी बांध से बाहर निकाला जा सके. लेकिन पाकिस्तान के ऐतराज़ के बाद सिंधु नदी समझौते के तहत भारत इन अंडर स्लूस गेट्स को स्थायी तौर पर बंद करने को तैयार हो गया. स्लूस गेट की जगह को कंक्रीट से प्लग कर दिया गया यानी बांध में उस जगह पर कंक्रीट की मोटी दीवार ही चिनवा दी गई. इस कारण सलाल बांध में बीते 38 साल में सिल्ट इतना भर गया है कि उसमें पानी के भंडारण की क्षमता 50% से भी कम रह गई है.
सिंधु समझौते के बाद क्या किया जा सकता
अब सवाल ये है कि सिंधु समझौते के बाद क्या किया जा सकता है. अगर सलाल बांध से सारे सिल्ट को बाहर निकालना है तो इसके अंडर स्लूस गेट खोलने ज़रूरी हैं जो कंक्रीट से बंद कर दिए गए हैं. तो पहले वहां तक पहुंचना होगा जहां अंडर स्लूस गेट बने हैं. सिल्ट के काफ़ी ऊपर तक जमा होने के कारण वहां पहुंचना मुश्किल काम है. लेकिन इंजीनियरिंग में इसका भी तरीका है. लोहे के कम से कम चार-पांच मीटर चौड़े लोहे के एक बड़े खाली सिलिंडर के इस्तेमाल से यहां तक पहुंचा जा सकता है जैसा अक्सर नदियों में पुल के पिलर बनाने के लिए किया जाता है. इस सिलिंडर के ज़रिए सिल्ट हटाते हुए नीचे स्लूस गेट की जगह तक पहुंचा जा सकता है और फिर स्लूस गेट को जिस कंक्रीट से बंद किया गया था उसे हटाया जा सकता है. ऐसा आधुनिक मशीनों के ज़रिए किया जाना संभव है.
एक बार ये कंक्रीट हटा और स्लूस गेट की मरम्मत हो गई तो फिर भारत नीचे जमा इस सारे सिल्ट को धीरे धीरे बांध से आगे निकाल सकता है. सिल्ट हटेगी तो बांध में पानी के भंडारण के लिए जगह बनेगी. फिर भारत ज़्यादा पानी रोक सकता है, बिजली उत्पादन बढ़ा सकता है. इसके ज़रिए पाकिस्तान को पानी के साथ-साथ सिल्ट की मार भी पड़नी शुरू हो सकती है. ये सिल्ट पाकिस्तान में आगे उसके कैनाल सिस्टम और बांध के लिए मुसीबत बन सकती है. हालांकि ये भी ध्यान रखना होगा कि सलाल बांध के आगे भारत का भी काफ़ी इलाका आता है. सलाल बांध जैसी ही रणनीति बाद में चिनाब के ही अपर कैचमेंट में बने बगलिहार बांध में भी इस्तेमाल की जा सकती है.
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