यूपी के फूलपुर लोकसभा क्षेत्र के उपचुनाव में बीजेपी के सपा-बसपा की चुनौती मिल रही है.
नई दिल्ली:
पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के लोकसभा चुनाव क्षेत्र रहे फूलपुर के उपचुनाव पर पूरे देश की नजरें टिकीं हैं. केशव प्रसाद मौर्य के उप मुख्यमंत्री बनने के बाद खाली हुई इस सीट के उपचुनाव में 11 मार्च को वोट डाले जाएंगे. मतगणना 14 मार्च को होगी. बीजेपी के सामने इस सीट को बचाए रखने की चुनौती है और सपा-बसपा मिलकर बीजेपी को पटखनी देने की जुगत लगा रही हैं. इस वजह से यहां मुकाबला रोचक हो गया है.
बीजेपी ने फूलपुर लोकसभा सीट से वाराणसी के पूर्व मेयर कौशलेंद्र सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है.
कांग्रेस ने कांग्रेस ने वरिष्ठ नेता जेएन मिश्र के पुत्र मनीष मिश्रा को और सपा व बसपा ने मिलकर नागेंद्र प्रताप पटेल को मैदान में उतारा है. इस त्रिकोणीय मुकाबले के लिए बीजेपी जहां पूरी ताकत लगा रही है वहीं उसे हराने के लिए दो विरोधी दलों समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने हाथ मिला लिया है. सपा के प्रत्याशी को बसपा ने समर्थन दे दिया है.
यह भी पढ़ें : उत्तर प्रदेश : गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव के प्रचार अभियान का शोर थमा
फूलपुर लोकसभा सीट हमेशा से चर्चित रही क्योंकि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू यहीं से चुनकर संसद पहुंचते थे. नेहरू को यहां से डॉ राममनोहर लोहिया ने चुनौती दी थी और हार गए थे. इस सीट से विजयलक्ष्मी पंडित भी जीतीं. यहां से कांशीराम ने भी चुनाव लड़ा. फूलपुर से ही वीपी सिंह 1971 में जीते थे. जनेश्वर मिश्र भी इस क्षेत्र से जीते थे. साल 2014 से पहले समाजवादी पार्टी लगातार चार बार यहां से जीतती रही. पिछले चुनाव में 2014 में मोदी की लहर में केशव मौर्य ने जोरदार जीत हासिल की.
पिछले चुनाव में बीजेपी के केशव प्रसाद मौर्य को सपा और बसपा के कुल वोटों से भी ज्यादा वोट मिले थे. मौर्य को 5,03,564 वोट मिले थे. जबकि सपा और बसपा के उम्मीदवारों को मिलाकर 3,58,970 वोट मिले थे. वोट प्रतिशत के लिहाज से भी दोनों पार्टी मिलकर बीजेपी से पीछे थीं. बीजेपी को 52 फीसदी और सपा-बसपा को मिलाकर 47 फीसदी वोट मिले थे.
VIDEO : बीजेपी की राह नहीं आसान
यूपी के फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव के नतीजों का असर 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव पर हो सकता है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 71 सीटें जीतकर सपा, बसपा और कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया था. सपा को पांच और कांग्रेस को केवल दो सीटें मिली थीं. बसपा खाता भी नहीं खोल पाई. इसके बाद 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भी बसपा की जबरदस्त हार हुई. राज्य की 403 विधानसभा सीटों में से बीजेपी ने 325 सीटों पर जीत दर्ज की थी, सपा और कांग्रेस गठबंधन को 54 सीटें मिलीं और बसपा 19 सीटों पर ही सिमट गई थी.
बीजेपी ने फूलपुर लोकसभा सीट से वाराणसी के पूर्व मेयर कौशलेंद्र सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है.
कांग्रेस ने कांग्रेस ने वरिष्ठ नेता जेएन मिश्र के पुत्र मनीष मिश्रा को और सपा व बसपा ने मिलकर नागेंद्र प्रताप पटेल को मैदान में उतारा है. इस त्रिकोणीय मुकाबले के लिए बीजेपी जहां पूरी ताकत लगा रही है वहीं उसे हराने के लिए दो विरोधी दलों समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने हाथ मिला लिया है. सपा के प्रत्याशी को बसपा ने समर्थन दे दिया है.
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फूलपुर लोकसभा सीट हमेशा से चर्चित रही क्योंकि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू यहीं से चुनकर संसद पहुंचते थे. नेहरू को यहां से डॉ राममनोहर लोहिया ने चुनौती दी थी और हार गए थे. इस सीट से विजयलक्ष्मी पंडित भी जीतीं. यहां से कांशीराम ने भी चुनाव लड़ा. फूलपुर से ही वीपी सिंह 1971 में जीते थे. जनेश्वर मिश्र भी इस क्षेत्र से जीते थे. साल 2014 से पहले समाजवादी पार्टी लगातार चार बार यहां से जीतती रही. पिछले चुनाव में 2014 में मोदी की लहर में केशव मौर्य ने जोरदार जीत हासिल की.
पिछले चुनाव में बीजेपी के केशव प्रसाद मौर्य को सपा और बसपा के कुल वोटों से भी ज्यादा वोट मिले थे. मौर्य को 5,03,564 वोट मिले थे. जबकि सपा और बसपा के उम्मीदवारों को मिलाकर 3,58,970 वोट मिले थे. वोट प्रतिशत के लिहाज से भी दोनों पार्टी मिलकर बीजेपी से पीछे थीं. बीजेपी को 52 फीसदी और सपा-बसपा को मिलाकर 47 फीसदी वोट मिले थे.
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यूपी के फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव के नतीजों का असर 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव पर हो सकता है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 71 सीटें जीतकर सपा, बसपा और कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया था. सपा को पांच और कांग्रेस को केवल दो सीटें मिली थीं. बसपा खाता भी नहीं खोल पाई. इसके बाद 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भी बसपा की जबरदस्त हार हुई. राज्य की 403 विधानसभा सीटों में से बीजेपी ने 325 सीटों पर जीत दर्ज की थी, सपा और कांग्रेस गठबंधन को 54 सीटें मिलीं और बसपा 19 सीटों पर ही सिमट गई थी.
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