अपने बड़े भाई और केंद्रीय मंत्री रहे राम विलास पासवान (Ram Vilas Paswan) के निधन के बाद लोजपा के बड़े नेता पशुपति कुमार पारस ने अपने भतीजे चिराग पासवान को दरकिनार करते हुए पार्टी में राजनीतिक वर्चस्व पाने का बड़ा दांव खेला है. पारस एलजेपी (LJP) के 6 सांसदों में 5 के बहुमत से पार्टी के लोकसभा में नेता भी बन चुके हैं और एलजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद भी उनके पास है. हालांकि चिराग का दावा है कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी का बहुमत उनके पास है और इन बागी सांसदों का अब एलजेपी से कोई लेना-देना नहीं रह गया है.
मोदी के मंत्रिमंडल विस्तार (Modi Cabinet Expansion) में पशुपति कुमार पारस का नाम तेजी से उछल रहा है. उन्हें अगर केंद्र सरकार में मंत्री बनाया जाता है तो देखना होगा कि वे अपने भाई राम विलास पासवान के पदचिन्हों पर चलकर केंद्रीय राजनीति में उनकी विरासत को कितना औऱ किस तरह आगे बढ़ा पाते हैं.
पशुपति पारस के राजनीतिक करियर में उनके भाई राम विलास पासवान का बड़ा योगदान रहा. पारस 1977 में बिहार विधानसभा की अलौली सीट से विधायक रहे और पांच बार इसी सीट से चुनाव जीते. वो जेएनपी, लोकदल, जनता पार्टी और फिर लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर यहां से विजयी हुए. तीन बार बिहार सरकार में मंत्री रहे. यह राम विलास पासवान की साख ही थी कि जब 2017 में पारस बिहार सरकार में मंत्री बने तो वो न तो विधानसभा और ना ही विधान परिषद के सदस्य थे, लेकिन गवर्नर कोटा से उन्हें विधान परिषद में जगह दी गई और वो मंत्री बने. राम विलास पासवान के संसदीय क्षेत्र हाजीपुर से 2019 में उन्होंने लोकसभा का चुनाव बड़े अंतर से जीता था.
पशुपति पारस बड़े भाई रामविलास पासवान की तरह बड़े जनाधार वाले नेता तो नहीं रहे हैं, लेकिन उन्होंने मौजूदा राजनीतिक समीकरण को भांपकर सत्ता और सियासत को साधने का बड़ा दांव खेला है. देखना होगा कि लोक जनशक्ति पार्टी के नेता के तौर पर वो पासवान मतदाताओं और बिहार की राजनीति में कैसे अपनी पकड़ मजबूत कर पाते हैं.
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