नई दिल्ली:
संसद ने गुरुवार को महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों में कड़ी सजा के प्रावधान वाले विधेयक को मंजूरी दे दी जिसमें महिलाओं के खिलाफ तेजाब के हमले और उनका पीछा करने जैसे कृत्यों के लिए भी कड़े प्रावधान किए गए हैं।
विधेयक में बलात्कार या सामूहिक दुष्कर्म के लिए अधिकतम आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है और दोबारा ऐसा अपराध करने वाले को अधिकतम सजा के रूप में मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है।
उच्च सदन ने दंड विधि (संशोधन) विधेयक, 2013 को चर्चा के बाद ध्वनिमत से पारित कर दिया। लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है।
इससे पहले सदन ने विधेयक पर विपक्षी सदस्यों की ओर से पेश किए गए सभी संशोधनों को नामंजूर कर दिया।
विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि इस विधेयक में पुलिस अधिकारियों को भी जवाबदेह बनाया गया है और प्राथमिकी दर्ज नहीं करने पर छह महीने से दो साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है।
उन्होंने कहा कि निजी और सरकारी दोनों अस्पतालों के लिए यह अनिवार्य किया गया है कि वे बलात्कार पीड़िता को तत्काल चिकित्सा उपलब्ध कराएं। ऐसा नहीं करने पर एक साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है।
सहमति से यौन संबंध स्थापित करने की उम्र से जुड़े विवाद का जिक्र करते हुए शिंदे ने कहा कि 1860 में बने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में ही यह उम्र 16 की गई है। लेकिन इस विधेयक पर चर्चा के दौरान चर्चा उम्र सीमा को बढ़ाकर 18 साल किए जाने की मांग होने लगी है। उन्होंने कहा कि कानून में सुधार संभव है और सरकार इसके लिए खुले मन से तैयार है।
चर्चा में विभिन्न सदस्यों द्वारा कई नेताओं और अन्य प्रभावशाली लोगों के खिलाफ ऐसे आरोप होने पर अपेक्षित कार्रवाई नहीं होने पर चिंता जताए जाने पर शिंदे ने कहा कि ऐसे लोगों को भी नए कानून के दायरे में लाया गया है।
इसके बाद उच्च सदन ने दंड विधि (संशोधन) विधेयक, 2013 को ध्वनिमत से पारित कर दिया और माकपा की टीएन सीमा और भाकपा के डी राजा द्वारा पेश संशोधनों को ध्वनिमत से अस्वीकार कर दिया।
इसके साथ ही सदन ने डी राजा के एक संकल्प को ध्वनिमत से नामंजूर कर दिया। इस संकल्प में प्रस्ताव किया गया था कि यह सदन राष्ट्रपति तीन फरवरी 2013 को जारी दंड विधि (संशोधन) अध्यादेश को नामंजूर करती है।
इससे पूर्व शिंदे ने कहा कि पहली बार तेजाब हमले जैसे अपराधों के लिए भी कानून बनाए गए हैं और ऐसे मामलों में 10 साल से आजीवन कैद तक की सजा का प्रावधान किया गया है। देहातों में महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाए जाने की घटनाओं का जिक्र करते हुए गृहमंत्री ने कहा कि सरकार ने इसे गंभीरता से लिया है और ऐसे मामलों में प्राथमिकी दर्ज करने के लिए पुलिस को जिम्मेदार बनाया गया है।
मानव तस्करी खासकर नाबालिग लड़कियों के मामले में विधेयक में सख्त प्रावधान किए जाने का जिक्र करते हुए गृहमंत्री ने कहा कि ऐसे अपराधों के लिए सजा बढ़ाई गई है। उन्होंने कहा कि पहले अपराध के जहां सात से आठ साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है वहीं अपराध की पुनरावृत्ति होने पर दस साल से आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान किया गया है।
उन्होंने सदस्यों को भरोसा दिलाया कि यह विधेयक पुरुष विरोधी नहीं है। शिंदे ने कहा कि यह ‘‘कड़क’’ कानून है और शायद कई सालों में ऐसा कानून नहीं आया होगा।
यह विधेयक दिल्ली में गत 16 दिसंबर को हुई सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद देशभर में उठे आक्रोश की पृष्ठभूमि में राष्ट्रपति द्वारा फरवरी में जारी किए गए अध्यादेश की जगह लेने के लिए लाया गया है।
बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के मामलों में कठोर सजा के उद्देश्य वाले इस विधेयक में कहा गया है कि ऐसे मामलों में अपराधी को कठोर कारावास की सजा दी जा सकती है जिसकी अवधि 20 साल से कम नहीं होगी और इसे पूरी उम्र के लिए आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।
इस तरह के अपराधों को एक से अधिक बार अंजाम देने वाले अपराधियों को मौत की सजा का भी प्रावधान है।
विधेयक में बलात्कार या सामूहिक दुष्कर्म के लिए अधिकतम आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है और दोबारा ऐसा अपराध करने वाले को अधिकतम सजा के रूप में मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है।
उच्च सदन ने दंड विधि (संशोधन) विधेयक, 2013 को चर्चा के बाद ध्वनिमत से पारित कर दिया। लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है।
इससे पहले सदन ने विधेयक पर विपक्षी सदस्यों की ओर से पेश किए गए सभी संशोधनों को नामंजूर कर दिया।
विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि इस विधेयक में पुलिस अधिकारियों को भी जवाबदेह बनाया गया है और प्राथमिकी दर्ज नहीं करने पर छह महीने से दो साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है।
उन्होंने कहा कि निजी और सरकारी दोनों अस्पतालों के लिए यह अनिवार्य किया गया है कि वे बलात्कार पीड़िता को तत्काल चिकित्सा उपलब्ध कराएं। ऐसा नहीं करने पर एक साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है।
सहमति से यौन संबंध स्थापित करने की उम्र से जुड़े विवाद का जिक्र करते हुए शिंदे ने कहा कि 1860 में बने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में ही यह उम्र 16 की गई है। लेकिन इस विधेयक पर चर्चा के दौरान चर्चा उम्र सीमा को बढ़ाकर 18 साल किए जाने की मांग होने लगी है। उन्होंने कहा कि कानून में सुधार संभव है और सरकार इसके लिए खुले मन से तैयार है।
चर्चा में विभिन्न सदस्यों द्वारा कई नेताओं और अन्य प्रभावशाली लोगों के खिलाफ ऐसे आरोप होने पर अपेक्षित कार्रवाई नहीं होने पर चिंता जताए जाने पर शिंदे ने कहा कि ऐसे लोगों को भी नए कानून के दायरे में लाया गया है।
इसके बाद उच्च सदन ने दंड विधि (संशोधन) विधेयक, 2013 को ध्वनिमत से पारित कर दिया और माकपा की टीएन सीमा और भाकपा के डी राजा द्वारा पेश संशोधनों को ध्वनिमत से अस्वीकार कर दिया।
इसके साथ ही सदन ने डी राजा के एक संकल्प को ध्वनिमत से नामंजूर कर दिया। इस संकल्प में प्रस्ताव किया गया था कि यह सदन राष्ट्रपति तीन फरवरी 2013 को जारी दंड विधि (संशोधन) अध्यादेश को नामंजूर करती है।
इससे पूर्व शिंदे ने कहा कि पहली बार तेजाब हमले जैसे अपराधों के लिए भी कानून बनाए गए हैं और ऐसे मामलों में 10 साल से आजीवन कैद तक की सजा का प्रावधान किया गया है। देहातों में महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाए जाने की घटनाओं का जिक्र करते हुए गृहमंत्री ने कहा कि सरकार ने इसे गंभीरता से लिया है और ऐसे मामलों में प्राथमिकी दर्ज करने के लिए पुलिस को जिम्मेदार बनाया गया है।
मानव तस्करी खासकर नाबालिग लड़कियों के मामले में विधेयक में सख्त प्रावधान किए जाने का जिक्र करते हुए गृहमंत्री ने कहा कि ऐसे अपराधों के लिए सजा बढ़ाई गई है। उन्होंने कहा कि पहले अपराध के जहां सात से आठ साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है वहीं अपराध की पुनरावृत्ति होने पर दस साल से आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान किया गया है।
उन्होंने सदस्यों को भरोसा दिलाया कि यह विधेयक पुरुष विरोधी नहीं है। शिंदे ने कहा कि यह ‘‘कड़क’’ कानून है और शायद कई सालों में ऐसा कानून नहीं आया होगा।
यह विधेयक दिल्ली में गत 16 दिसंबर को हुई सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद देशभर में उठे आक्रोश की पृष्ठभूमि में राष्ट्रपति द्वारा फरवरी में जारी किए गए अध्यादेश की जगह लेने के लिए लाया गया है।
बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के मामलों में कठोर सजा के उद्देश्य वाले इस विधेयक में कहा गया है कि ऐसे मामलों में अपराधी को कठोर कारावास की सजा दी जा सकती है जिसकी अवधि 20 साल से कम नहीं होगी और इसे पूरी उम्र के लिए आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।
इस तरह के अपराधों को एक से अधिक बार अंजाम देने वाले अपराधियों को मौत की सजा का भी प्रावधान है।
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