चीन के अशांत क्षेत्र शिंजियांग में मानवाधिकारों की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) में एक चर्चा कराने से जुड़े मसौदा प्रस्ताव पर मतदान में भारत के अनुपस्थित रहने को लेकर विपक्षी दलों ने शुक्रवार को सरकार की आलोचना की. विपक्षी दलों ने कहा कि जो सच है, उस बारे में भारत को बोलना चाहिए और अपने पड़ोसी देश से डरना नहीं चाहिए.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं लोकसभा सदस्य मनीष तिवारी ने हैरानी जताते हुए कहा कि ‘‘चीन पर काफी झिझक'' वाला रुख है. उन्होंने एक ट्वीट में कहा, ‘‘भारत सरकार चीनी घुसपैठ पर संसद में चर्चा कराने के लिए सहमत नहीं होगी. शिंजियांग में मानवाधिकारों पर चर्चा के लिए एक प्रस्ताव पर यूएनएचआरसी में भारत अनुपस्थित रहेगा.''
तिवारी ने आरोप लगाया कि विदेश मंत्रालय ताइवान का दौरा करने के लिए सांसदों को मंजूरी नहीं दे रहा है.
तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता साकेत गोखले ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘उन्हें (चीन को) अपनी जमीन दे देना और उन्हें जिम्मेदार ठहराने से दूर रहना... यह असल में क्या है जो (प्रधानमंत्री नरेंद्र) मोदी चीन से इतने भयभीत हैं?''
ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने ‘‘उइगर मुद्दे पर यूएनएचआरसी में चीन की मदद करने ''संबंधी भारत के फैसले का कारण प्रधानमंत्री मोदी से जानना चाहा है.
उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘क्या (चीन के राष्ट्रपति) शी चिनफिंग को नाराज करने से वह इतना डरते हैं कि भारत सच बात नहीं बोल सकता है?''
शिवसेना की नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘लाल आंख से लेकर बंद आंख तक का सफ़र.''
उल्लेखनीय है कि भारत ने शिंजियांग क्षेत्र में मानवाधिकार की स्थिति पर चर्चा के लिए बृहस्पतिवार को यूएनएचआरसी में एक मसौदा प्रस्ताव पर मतदान में हिस्सा नहीं लिया था. मानवाधिकार संगठन चीन के संसाधन संपन्न उत्तर-पश्चिमी प्रांत में (मानवाधिकार हनन की) घटनाओं को लेकर वर्षों से आवाज उठा रहे हैं.