
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 10 मई की शाम पांच बजकर 25 मिनट पर एक ट्वीट किया. इसमें उन्होंने दावा किया कि अमेरिका ने मध्यस्थता कर भारत-पाकिस्तान में संघर्ष विराम करवा दिया है. उनके इस ट्वीट के बाद आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारत ने इस बात की पुष्टि की कि शाम पांच बजे से संघर्ष विराम प्रभावी हो गया है. लेकिन भारत ने इस बात से इनकार किया कि संघर्ष विराम के लिए किसी तीसरे देश ने मध्यस्थता की है. भारत ने पुरजोर तरीके से कहा कि संघर्ष विराम का प्रस्ताव पाकिस्तान की तरफ से आया था. आइए हम आपको विस्तार से बताते हैं कि 9-10 मई की रात का घटनाक्रम कैसे घटित हुआ और कैसे दोनों देश संघर्ष विराम के लिए राजी हुए.
अमेरिकी उपराष्ट्रपति का पीएम मोदी को फोन
अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने नौ मई की रात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन किया. इस दौरान उन्होंने बताया कि अमेरिका का अनुमान है कि तनाव और बढ़ने के गंभीर प्रभाव हो सकते हैं. उन्होंने पीएम मोदी से कोई ऐसा कदम उठाने को कहा, जो पाकिस्तान को भी स्वीकार्य हो.इस पर पीएम मोदी ने उनकी बात ध्यान सुनी. उन्होंने वेंस से कहा कि पाकिस्तान को यह बात अच्छे से समझ लेना चाहिए कि अगर उसने कोई भी हरकत की तो हमारी प्रतिक्रिया बहुत तगड़ी होगी. सूत्रों के मुताबिक दूसरे शब्दों में यह कह सकते हैं कि यह कहा गया कि भारत पाकिस्तान को बचने का कोई रास्ता नहीं देना चाहता है. पाकिस्तान को यह ख्याल रखना चाहिए कि वो कर क्या रहे हैं.

सीमा पर हालात की समीक्षा करते पीएम नरेंद्र मोदी और अन्य अधिकारी.
पीएम मोदी और अमेरिकी उपराष्ट्रपति की बातचीत के कुछ घंटे बाद ही पाकिस्तान ने मोर्चा खोल दिया. उसने ड्रोन और मिसाइल से भारत में 26 जगहों पर हमले की कोशिश की. इनमें आदमपुर और नगरोटा स्थित वायु सेना का बेस भी शामिल था. इस पर भारत की प्रतिक्रिया ठीक वैसी ही थी, जैसा कि पीएम मोदी ने कहा था. उनके आठ एयर बेस को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया गया.
भारत के हवाई हमलों से दहल उठा पाकिस्तान
भारत के हमले में पाकिस्तान के एयरबेस को भारी नुकसान पहुंचा. इसके बाद 10 मई की सुबह अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने विदेश मंत्री एस जयशंकर को फोन किया. इससे पहले उन्होंने पाकिस्तान के सेना प्रमुख सैयद आसिम मुनीर से बात की थी. रुबियो को यह समझ में आया कि भारत की यह बात कि 'आप फायर मत करो, हम फायर नहीं करेंगे', पाकिस्तान के हित में है.रुबियो ने जयशंकर को बताया कि पाकिस्तान को यह बात मंजूर है.

इस पूरे घटनाक्रम से अवगत एक सूत्र से जब यह पूछा गया कि क्या अमेरिका पाकिस्तान को इस बात के लिए राजी कर पाया कि वह फायरिंग रोक देगा और सैन्य अभियान नहीं चलाएगा. इस पर सूत्र ने कहा कि अगर ऐसा नहीं होता तो पाकिस्तान के डीजीएमओ का फोन क्यों आता. उन्होंने इस वजह से फोन नहीं किया कि उनसे किसी ने अग्रेजी में बात की, बल्कि इसलिए किया कि हमारी ओर से आसमान से गिराई गई चीजों के जोरदार धमाकों की आवाजें उनकी कानों में गई थीं.
हमलों से घबराया पाकिस्तान लाया संघर्ष विराम का प्रस्ताव
सूत्र का कहना था, ''सच्चाई यह है कि उन्होंने अपनी धुन बदली. लेकिन हम इसे पाकिस्तान के मुंह से सुनना चाहते थे. संदेश उनकी तरफ से ही आया, वहां के सैन्य अभियानों के महानिदेशक (डीजीएमओ)की तरफ से. यही एक चैनल खुला था. ''
सूत्रों का यह भी कहना है कि विदेश मंत्री जयशंकर ने यही बात रुबियो को सात मई को भी समझाई थी. डीजीएमओ लेवल की बातचीत जारी है. सूत्रों ने बताया कि भारत-पाकिस्तान में विभिन्न स्तरों पर बातचीत चल रही थी.

डोनाल्ड ट्रंप ने ऐसे उठाया मौके का फायदा
सूत्र ने बताया,'' पाकिस्तान के डीजीएमओ ने 10 मई की दोपहर एक बजे टेलीफोन पर बातचीत की इच्छा जताई. हमारे डीजीएमओ एक बैठक में व्यस्त थे. बातचीत साढ़े तीन बजे ही हो पाई.मुझे लगता है कि अमेरिकियों ने पाकिस्तानियों से साढ़े तीन बजे के बाद बातचीत के बारे में पूछा होगा. इसके बाद हमारे डीजीएमओ ने अपने उच्चाधिकारियों से संपर्क किया. उनके डीजीएमओ ने भी ऐसा किया होगा. इस बातचीत के बीच एक गैप आया और अमेरिका से इसी का फायदा उठाया. लेकिन अमेरिका ने कभी भी इस बात का संकेत नहीं दिया कि वो राष्ट्रपति ट्रंप सोशल मीडिया पर आकर इस बातचीत में मध्यस्थता का दावा कर देंगे.''

वहीं अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो के भारत-पाकिस्तान के बीच एक निष्पक्ष जगह पर बातचीत करने और कश्मीर मामले में राष्ट्रपति ट्रंप की मध्यस्थता की पेशकश के सवाल पर सूत्र ने कहा कि पाकिस्तान को लेकर भारत के स्टैंड में कोई बदलाव नहीं आया है. उन्होंने कहा,''दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यवस्था पहले से ही तय है.''यह भी कहा गया कि ट्रंप के भारत के साथ व्यापार बढ़ाने के दावे पर भी कोई चर्चा नहीं हुई.
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