नई दिल्ली: राज्यसभा में बृहस्पतिवार को पेश एक विधेयक के प्रावधानों के अनुसार मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों का वेतन एवं भत्ते कैबिनेट सचिव के बराबर होंगे. वर्तमान में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की सेवा से संबंधित कानून के मुताबिक उनका वेतन उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर होता है.
सरकार के एक सूत्र ने बताया, ‘‘वेतन समान ही रहेगा, 2.50 लाख रुये प्रति माह. लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त अब कैबिनेट सचिव के समान होंगे, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के समान नहीं.'' सूत्र के अनुसार, जब संसद से इस विधेयक को मंजूरी दे दी जाती है तो मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों का दर्जा राज्य मंत्री से एक दर्जा नीचे होगा.
सूत्र ने कहा, ‘‘चूंकि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्त कैबिनेट सचिव के बराबर होंगे, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर नहीं, उन्हें नौकरशाह माना जा सकता है. चुनाव करवाने के मामले में यह एक जटिल स्थिति हो सकती है.''
सूत्र के मुताबिक, विधेयक में यह स्पष्ट किया गया है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों का कार्यकाल उनके पदभार ग्रहण करने से छह वर्ष तक के लिए या उनके 65 वर्ष की आयु पूरा करने या इनमें से जो पहले हो, प्रभावी होगा.
राज्यसभा में बृहस्पतिवार को विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) विधेयक, 2023 पेश किया. इसमें मुख्य निर्वाचन आयुक्त और आयुक्तों के चयन के लिए समिति में प्रधान न्यायाधीश के स्थान पर एक कैबिनेट मंत्री को शामिल करने का प्रस्ताव किया गया है.
मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) विधेयक, 2023 के अनुसार मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति एक चयन समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी. विधेयक के मुताबिक, प्रधानमंत्री इस समिति के प्रमुख होंगे और समिति में लोक्सभा में विपक्ष के नेता (एलओपी) और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री होंगे. इसके प्रावधानों के अनुसार, यदि लोकसभा में कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं है तो सदन में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के नेता को नेता प्रतिपक्ष माना जाएगा.
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