एंड्रियस कुबिलियस ने कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप की रणनीति अभी भी हमारे लिए स्पष्ट नहीं है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की के बीच शुक्रवार को तीखी बहस को लेकर यूरोपीय यूनियन के कमिश्नर एंड्रियस कुबिलियस ने ट्रंप प्रशासन की आलोचना की है. साथ ही कहा कि यह एक ऐसे देश के राष्ट्रपति के साथ व्यवहार करने का सही तरीका नहीं था, जो अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहा है. एनडीटीवी के साथ शनिवार को एक एक्सक्लूसिव बातचीत में यूरोपीय संघ के डिफेंस इंडस्ट्री और अंतरिक्ष आयुक्त कुबिलियस ने कहा कि 21वीं सदी भारत की सदी होगी और यूरोपीय आयोग देश के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर तेजी से काम करने का इच्छुक है.
लिथुआनिया के पूर्व प्रधानमंत्री कुबिलियस ने ट्रंप-जेलेंस्की विवाद को लेकर कहा, "अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे किसी दूसरे देश के राष्ट्रपति का स्वागत करने का यह तरीका समझने में मुश्किल और पूरी तरह से अस्वीकार्य था. यूरोपीय यूनियन की प्रेसिडेंट उर्सुला वॉन डेर लेयेन सहित कई यूरोपीय नेताओं ने जेलेंस्की और यूक्रेन को लेकर स्पष्ट प्रतिक्रिया और संदेश दिया है कि वे अकेले नहीं खड़े होंगे. राष्ट्रपति ट्रंप और उनकी टीम की रणनीति अभी भी हमारे लिए स्पष्ट नहीं है."
EU में हर कोई यूक्रेन की शांति के लिए खड़ा है: कुबिलियस
उन्होंने कहा कि म्यूनिख सम्मेलन के दौरान यूरोपीय संघ को अजीब संदेश मिलने शुरू हो गए थे, जब अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने कई बिंदुओं पर संघ की आलोचना की थी.
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यूरोपीय यूनियन में हर कोई यूक्रेन में शांति के लिए खड़ा है. साथ ही कहा, "यूक्रेन के लोग वास्तव में शांति के हकदार हैं और वे शांति की प्रबल इच्छा रखने वाले लोग हैं, लेकिन एक न्याय संगत शांति केवल ताकत के जरिए शांति के फार्मूले से ही मिल सकती है. उस फार्मूले को अब तक अमेरिकियों द्वारा भी दोहराया गया था. इसका अर्थ है कि हमें व्लादिमीर पुतिन को यह दिखाने के लिए यूक्रेनवासियों को सैन्य, वित्तीय और ऐसी ही ताकत देनी होगी कि वह यूक्रेन में कुछ भी हासिल नहीं कर पाएंगे. पुतिन ने युद्ध शुरू किया, उन्होंने आक्रामकता शुरू की."
अमेरिका से हमारा समर्थन बड़ा था: कुबिलियस
कुबिलियस ने कहा कि अमेरिका की यह "गलत समझ" है कि यूक्रेन को उनका समर्थन यूरोपीय यूनियन जितना ही है. उन्होंने कहा, "हम समर्थन कर रहे हैं और अमेरिकी यूक्रेन का काफी समर्थन कर रहे थे... लेकिन यूनियन का सामान्य, सैन्य और वित्तीय समर्थन अमेरिकी समर्थन से करीब 30 फीसदी बड़ा था. हमारा समर्थन 130 बिलियन डॉलर का था और अमेरिका का समर्थन 100 बिलियन डॉलर का था, न कि 500 या जो भी हम कभी-कभी राष्ट्रपति ट्रंप से सुनते हैं."
उन्होंने बताया कि अमेरिका और यूरोपीय यूनियन ने हर साल सैन्य सहायता जीडीपी के 0.1% से कम थी और इस प्रकार इसे बढ़ाया जा सकता है.
... तो चीन आक्रामक व्यवहार कर सकता है: कुबिलियस
उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि यूक्रेन का समर्थन न करने से चीन को यह संकेत जाएगा कि वह भी आक्रामक व्यवहार कर सकता है.
उन्होंने कहा, "और हमें इसे बढ़ाने की जरूरत है क्योंकि यूक्रेन हम सभी की रक्षा कर रहा है. यह निश्चित रूप से हम यूरोपीय लोगों की रक्षा कर रहा है और कुछ तरीकों से अमेरिका की भी रक्षा कर रहा है. क्योंकि अगर पश्चिम यूक्रेन में विफल हो जाएगा और अपनी आक्रामक नीतियों के साथ रूस जीत जाएगा तो हम बहुत स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि अंतरराष्ट्रीय परिणाम क्या होंगे. मुझे पूरा यकीन है, उदाहरण के लिए, चीन देख रहा है कि यूक्रेन में क्या हो रहा है और अगर चीन यह निष्कर्ष निकालता है कि पश्चिम राजनीतिक रूप से कमजोर है और रूस की आक्रामकता को रोकने में असमर्थ है तो वह ताइवान के प्रति आक्रामक तरीके से व्यवहार कर सकता है."
यूरोप को रूस से बड़े खतरे: कुबिलियस
कुबिलियस से पूछा गया कि भारत और यूरोपीय यूनियन कैसे सहयोग और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि अंतरराष्ट्रीय नियम-आधारित व्यवस्था बनी रहे. इस पर उन्होंने कहा कि यूरोप को रूस से बड़े खतरों का सामना करना पड़ रहा है और यूरोपीय खुफिया एजेंसियों ने कहा है कि रूस यूरोपीय यूनियन या नाटो के सदस्य देशों के प्रति अपनी आक्रामकता बढ़ा सकता है. उन्होंने बताया कि भारत, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्वयं खतरों का सामना कर रहा है.
उन्होंने कहा, "मेरे विचार में जो देश लोकतंत्र के समान सिद्धांतों, कानून के शासन और (एक के लिए समर्थन) संप्रभुता और गैर-आक्रामकता के स्पष्ट सिद्धांतों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था पर आधारित हैं, उन्हें एकजुट होना चाहिए और देशों को आमतौर पर सत्तावादी देशों को किसी भी प्रकार की आक्रामकता या किसी प्रकार की सत्तावादी आक्रामक धुरी के साथ परीक्षण करने की अनुमति नहीं देने में अधिक सक्रिय होना चाहिए. विशेष रूप से आप जानते हैं कि जब हम रूसी व्यवहार के बारे में चिंतित होते हैं तो हम कहीं न कहीं रूस, ईरान, उत्तर कोरिया और चीन को देखते हैं."
उन्होंने कहा, "इसलिए हमें यह स्पष्ट होने की जरूरत है कि हम किसी को भी आक्रामक तरीके से व्यवहार करने की अनुमति नहीं दे सकते जिसे अंतरराष्ट्रीय लोकतांत्रिक समुदाय द्वारा रोका नहीं जा सके."
21वीं सदी भारत की सदी होगी: कुबिलियस
कुबिलियस ने कहा कि यह पूरे ईयू कॉलेज ऑफ कमिश्नर्स द्वारा भारत की पहली यात्रा है जो बताती है कि वह भारत के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को कितना महत्वपूर्ण मानता है.
उन्होंने कहा, "मैं दोहराता रहा हूं कि 21वीं सदी सबसे पहले अंतरिक्ष की सदी और भारत की सदी होगी... भारतीय विकास, महत्व और भू-राजनीतिक और आर्थिक भूमिकाओं के कारण भारत जो भूमिका निभा रहा है और सदी के अंत तक निभाएगा. यूरोपीय यूनियन और भारत लोकतंत्र, मानवाधिकारों के समान मूल्यों के साथ रह रहे हैं... और यह हमारे सहयोग, हमारी रणनीतिक साझेदारी को बहुत महत्वपूर्ण बनाता है."
कुबिलियस ने कहा कि उन्होंने परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष मंत्री जितेंद्र सिंह, इसरो के अधिकारियों और अन्य लोगों के साथ महत्वपूर्ण बैठकें कीं और वह यूरोपीय यूनियन की प्रमुख उर्सुला वॉन डेर लेयेन से सहमत हैं कि यह "यूरोपीय यूनियन और भारत के बीच हमारे भविष्य के सहयोग में किसी भी प्रकार की सीमा खींचने का समय नहीं है."
अंतरिक्ष और रक्षा सहयोग पर भी दिया जवाब
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष कार्यक्रम से "बहुत प्रभावित" हैं. साथ ही कहा कि उन्होंने 2040 तक चंद्रमा पर चालक दल के साथ उतरने, एक अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण और हाल ही में सफल डॉकिंग प्रयोग की भारत की योजनाओं पर चर्चा की थी.
उन्होंने कहा, "हम उम्मीद कर सकते हैं कि अंतरिक्ष में किसी प्रकार का विनिर्माण होगा. हम उम्मीद कर सकते हैं कि अंतरिक्ष में ऊर्जा उत्पादन होगा और वह सब कुछ जो सहयोग के लिए, संयुक्त परियोजनाओं के लिए (यूरोपीय संघ और भारत के बीच) नई संभावनाएं खोलेगा... यदि आप यह दिखाने में सक्षम हैं कि अंतरिक्ष में आप कुछ महत्वपूर्ण करने में सक्षम हैं तो इसका मतलब है कि आप वास्तव में अच्छे और मजबूत भागीदार हैं."
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि रूस की "आक्रामकता" को देखते हुए, भारत यूरोपीय यूनियन की रक्षा क्षमताओं में अंतराल को भरने में मदद करने के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है.
उन्होंने कहा, "वास्तव में हमें यह भी देखने की जरूरत है कि उन अंतरालों को कैसे भरा जाना चाहिए, उदाहरण के लिए संयुक्त उद्यम, संयुक्त परियोजनाओं सहित जो भी हम लागू कर सकते हैं. भारत में एक बहुत प्रसिद्ध रक्षा उद्योग है. आपके पास बहुत सारे कुशल लोग हैं. भारत में उत्पादन लागत यूरोप की तुलना में कम है तो लाभकारी सहयोग की तलाश क्यों न करें?"
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