सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने जमानती वारंट के मामले में यूपी के वित्त सचिव (UP Finance Secretary)और यूपी के अतिरिक्त मुख्य सचिव (राजस्व) को राहत नहीं दी है. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court)द्वारा जारी जमानती वारंट को रद्द करने से इनकार किया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अधिकारी अहंकारी लगते हैं. मामला इलाहाबाद में एक ' कलेक्शन अमीन ' की सेवा नियमित करने और बकाया भुगतान से संबंधित है. CJI रमना की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि ऐसा लगता है कि अधिकारी "बहुत अहंकारी" हैं.
दरअसल हाईकोर्ट ने एक नवंबर को कहा था कि अधिकारी अदालत को "खेल का मैदान" मान रहे हैं. उन्होंने उस व्यक्ति को वेतन का बकाया देने से इनकार कर दिया है जिसे पहले सेवा के नियमितीकरण के सही दावे से वंचित कर दिया गया था. चूंकि अधिकारियों ने जानबूझकर कोर्ट को गुमराह किया है और याचिकाकर्ता को बकाया वेतन नहीं देने में अतिरिक्त महाधिवक्ता द्वारा दिए गए हलफनामे का उल्लंघन किया है. यह अदालत अधिकारियों के निंदनीय आचरण के बारे में व्यथा और पीड़ा को दर्ज करती है.
कोर्ट यह मानता है कि अतिरिक्त मुख्य सचिव (राजस्व) और तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट, वर्तमान में सचिव (वित्त), यूपी सरकार, लखनऊ 15 नवंबर को इस न्यायालय के समक्ष पेश होने के लिए जमानती वारंट जारी करना एक उपयुक्त मामला है. दोनों के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया जाए. इसके बाद यूपी सरकार इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी, लेकिन राज्य सरकार को राहत नहीं मिली. CJI एन वी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि आप इस सब के लायक हैं, बल्कि इससे भी ज्यादा. आप इस मामले में यहां क्या बहस कर रहे हैं.
हाईकोर्ट को अब तक गिरफ्तारी का आदेश देना चाहिए था. हमें लगता है कि और अधिक कड़ी सजा देने की आवश्यकता है. हाईकोर्ट आपके साथ नरम रहा है. अपने आचरण को देखें.आप एक कर्मचारी को उसके बकाया वंचित कर रहे हैं .आपने आदेशों का पालन करने के लिए कुछ नहीं किया. हाईकोर्ट आप पर बहुत दयालु रहा है - आपके पास अदालत के लिए कोई सम्मान नहीं है.
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