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अकबरपुर के लक्ष्मीनारायण शर्मा कैसे बने नीम करोली बाबा, हनुमान भक्त ने नैनीताल में 60 साल पहले बनाया कैंचीधाम

नीम करोली बाबा हनुमान के बड़े भक्त थे. नैनीताल के निकट उन्होंने कैंचीधाम की स्थापना की थी. आश्रम में आने वालों सभी श्रद्धालुओं को सुबह और शाम की आरती में हिस्सा लेना अनिवार्य है.

अकबरपुर के लक्ष्मीनारायण शर्मा कैसे बने नीम करोली बाबा, हनुमान भक्त ने नैनीताल में 60 साल पहले बनाया कैंचीधाम
Neem Karoli Baba Kainchi Dham
नई दिल्ली:

Neem Karoli Baba Kainchi Dham Ashram: नीम करोली बाबा को कौन नहीं जानता. स्वर्गवास के 50 सालों बाद भी उत्तराखंड के नीम करोली धाम में भक्तों का तांता लगा रहता है. लेकिन आपको जानकर ये हैरानी होगी कि उनका जन्म एक जमींदार परिवार में हुआ था. गृहस्थ जीवन छोड़कर वो फिर धर्म और आध्यात्म की यात्रा पर निकले.बजरंगबली के भक्त लक्ष्मी नारायण शर्मा का नाम नीम करोली बाबा, लक्ष्मण दास, हांडी वाले बाबा, तिकोनिया वाले बाबा और तलईया बाबा जैसे नामों से जाना गया. लंबे भटकाव के बाद नैनीताल के कैंचीधाम को उन्होंने स्थायी प्रवास बनाया. कंबल ओढ़े रहने वाली उनकी तस्वीर उनकी एक पहचान बन गई.

नीम करोली बाबा का असली नाम
उत्तर प्रदेश के अकबरपुर क्षेत्र में नीम करोली बाबा का जन्म वर्ष 1900 के करीब बताया जाता है. नीम करोली बाबा का असली नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था. उनके पिता का नाम दुर्गा प्रसाद शर्मा था. लक्ष्मी नारायण शर्मा की प्राथमिक शिक्षा किरहीनं गांव में हुई थी. उनका विवाह 11 साल की उम्र में ही हो गया था. लेकिन गृहस्थ जीवन में उनका मन नहीं लगा. विवाह के बाद नीम करोली बाबा ने घर छोड़ दिया. नीम करोली बाबा को 17 साल की आयु में आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ. वो गुजरात में एक वैष्णव मठ में दीक्षा प्राप्त करने के बाद साधना में लीन हो गए. गुजरात के बवानिया मोरबी में उन्हें लंबी तपस्या की तो उन्हें तलइया बाबा नाम मिला. धार्मिक और आध्यात्मिक यात्रा के बीच बाबा ने सत्य की खोज में कई स्थानों पर प्रवास किया. लेकिन फिर वो दोबारा गृहस्थ जीवन में लौट आए.

नीम करौली बाबा की तीन संतान
नीम करोली बाबा की तीन संतानों में दो बेटे और एक बेटी हुई. लेकिन पारिवारिक जीवन में उनका ज्यादा मन नहीं रमा. नीम करोरी बाबा ने 1958 में दोबारा घर छोड़ दिया. फिर उत्तराखंड के नैनीताल में उस जगह पर आकर बसे, जिसे आज कैंची धाम जाना जाता है. नीम करोली बाबा 1961 में पहली बार अपने करीबी पूर्णानंद के साथ यहां आए थे और यहीं पर उन्होंने आत्मिक शांति मिली. बाबा ने 1964 में कैंची धाम आश्रम की स्थापना की और हनुमान मंदिर का निर्माण करवाया.नीम करोली बाबा आश्रम की प्रसिद्धि धीरे-धीरे तक देश में फैली और विदेश में भी उनके भक्त बने.

नीम करोली बाबा का स्वर्गवास
जानकारी के मुताबिक, नीम करोली बाबा एक बार आगरा से नैनीताल जा रहे थे. तभी रास्ते में उनका स्वास्थ्य खराब हो गया. उन्हें मथुरा वृंदावन स्टेशन पर ही उतरना पड़ा. यहां नीम करोली बारा को अस्पताल में भर्ती कराया गया. नीम करोली बाबा ने यहां तुलसी और गंगाजल ग्रहण किया. 11 सितंबर 1973 को उन्होंने प्राण त्याग दिए. वृंदावन में नीम करोली बाबा का समाधि वाला मंदिर है.

बजरंगबली के भक्त थे नीम करोली बाबा
बाबा नीम करोली को उनके अनुयायी बजरंगबली का अवतार मानते थे. नीम करोली बाबा स्वयं हनुमानजी के सच्चे उपासक थे. उन्होंने हनुमान जी के कई मंदिरों का निर्माण भी कराया. नीम करोली बाबा भक्तों से चरण स्पर्श करने से मना करते थे. वो कहते थे कि पैर छूना ही है तो हनुमान जी के छुआ करो.

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