NDTV Real Estate Conclave: आशीष सूद ने कहा कि 1973 का दिल्ली स्कूल एजुकेशन रेगुलेटरी एक्ट आज भी लागू है, जो उस समय की परिस्थितियों के हिसाब से बनाया गया था, जब दिल्ली में केवल कुछ गिने-चुने कॉन्वेंट स्कूल थे और दिल्ली यूनिवर्सिटी के रिजल्ट ब्लैकबोर्ड पर लिखे जाते थे.दिल्ली सरकार में शहरी विकास, गृह और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाल रहे मंत्री आशीष सूद ने NDTV से खास बातचीत की. छात्र राजनीति से अपने करियर की शुरुआत करने वाले आशीष सूद ने दिल्ली की प्रमुख चुनौतियों और सरकार के रोडमैप पर खुलकर चर्चा की.
आशीष सूद ने कहा कि सरकार का प्रत्येक अंग, मंत्रालय और विभाग अपने आप में उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना उसे होना चाहिए. उन्होंने कहा, "यह कहना उचित नहीं कि कोई एक मंत्रालय, जैसे स्वास्थ्य, परिवहन, जल संरक्षण या जल विभाग, दूसरे से अधिक महत्वपूर्ण है. सभी विभाग समान रूप से महत्वपूर्ण हैं. मैं इसे इस नजरिए से नहीं देखता."
अपने छात्र जीवन के बारे में आशीष सूद ने क्या बताया?
सूद ने अपने छात्र जीवन को याद करते हुए बताया कि जब वे छात्र संघ के अध्यक्ष थे, तब बसों में यात्रा करते थे. उस समय स्कूटर भी कम थे. उन्होंने कहा, "उस दौर में जब बस खराब हो जाती थी, तो सारा ट्रैफिक रुक जाता था. आज भी ऐसा ही होता है. मैं तब सोचता था कि दिल्ली के परिवहन विभाग के पास एक हेलीकॉप्टर होना चाहिए, जो ट्रैफिक की स्थिति देखे और उल्टी दिशा से रिकवरी वैन भेजकर समस्या का समाधान करे."
'नरेंद्र मोदी के गवर्नेंस मॉडल में हर दिन इनोवेशन..'
उन्होंने बताया कि 1985-86 में वे कॉलेज यूनियन में जीते और 1988-89 में दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष बने. उस समय ड्रोन या इंटरनेट की कल्पना भी नहीं थी. प्रशासन में अब अलग तरह की चुनौतियां हैं. शिक्षा में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का बड़ा योगदान है. नरेंद्र मोदी के गवर्नेंस मॉडल में हर दिन इनोवेशन और जनता तक योजनाओं की 'लास्ट माइल डिलीवरी' एक बड़ी चुनौती है, जिसे मैं स्वीकार करता हूं."
शिक्षा के क्षेत्र में चुनौतियों पर क्या बोले मंत्री?
शिक्षा के क्षेत्र में चुनौतियों पर बात करते हुए सूद ने कहा, "पिछले 20-25 सालों में क्या आपके बच्चों को स्कूलों में फीस बढ़ोतरी, किताबें या यूनिफॉर्म किसी खास दुकान से खरीदने की बाध्यता जैसी समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ा? लेकिन पिछले पांच महीनों में क्या ऐसी कोई शिकायत आई? हमने एक ऐसा इकोसिस्टम बनाया है, जहां अभिभावकों को ऐसी समस्याओं के लिए कोर्ट नहीं जाना पड़ा." उन्होंने बताया कि 1973 का दिल्ली स्कूल एजुकेशन रेगुलेटरी एक्ट आज भी लागू है, जो उस समय की परिस्थितियों के हिसाब से बनाया गया था, जब दिल्ली में केवल कुछ गिने-चुने कॉन्वेंट स्कूल थे और दिल्ली यूनिवर्सिटी के रिजल्ट ब्लैकबोर्ड पर लिखे जाते थे.
उन्होंने कहा, "लोग आज भी मुझसे कहते हैं कि उनके बच्चों का सरकारी स्कूल में दाखिला करा दो. मैं बताता हूं क्यों. हमने 75 नए सरकारी स्कूल बनाने का दावा किया है, लेकिन दिल्ली के सरकारी स्कूलों में केवल 38,875 कमरे हैं. इनमें से केवल 790 स्मार्ट क्लासरूम हैं, जो भी सीएसआर फंडिंग से बने हैं, जो लोग शिक्षा क्रांति की बात करते हैं, उन्हें यह जानकर आश्चर्य होगा कि 1,070 सरकारी स्कूलों में से एक भी फंक्शनल कंप्यूटर लैब पिछली सरकार ने नहीं छोड़ा. हमने एक फाउंडेशन से सीएसआर के तहत 100 कंप्यूटर लैब बनवाए हैं. टेक्नोलॉजी के बिना शिक्षा में क्रांति संभव नहीं है."
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