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NDTV इंडियन ऑफ द इयर अवार्ड : लोकतंत्र के उन सिपाहियों की कहानी जिन्हें एनडीटीवी ने किया सलाम

एनडीटीवी इंडियन ऑफ द इयर अवार्ड समारोह में सबसे अहम अवार्ड देश भर के उन चुनिंदा अधिकारियों कर्मचारियों को दिया गया जिन्होंने कई चुनौतियों का सामना करते हुए दूरस्थ इलाकों में मतदान कराया

NDTV इंडियन ऑफ द इयर अवार्ड : लोकतंत्र के उन सिपाहियों की कहानी जिन्हें एनडीटीवी ने किया सलाम
एनडीटीवी इंडियन ऑफ द इयर अवार्ड कार्यक्रम में सबसे अहम अवार्ड पोलिंग आफिसरों को दिया गया.
नई दिल्ली:

NDTV Indian of the Year Award: एनडीटीवी इंडियन ऑफ द इयर अवार्ड का सबसे अहम अवार्ड पोलिंग आफिसरों को दिया गया. यह देश भर के वे सरकारी अधिकारी कर्मचारी हैं जो चुनाव कराने के लिए दूरदराज के इलाकों में कठिन परिस्थितियों में आवागमन और मौसम की चुनौतियों का सामना करते हुए पहुंचे थे. उन्होंने अपनी ड्यूटी पूरी करने के लिए लंबी दूरियां तय कीं. उन्होंने वहां पोलिंग बूथ तैयार किए, लोगों को मतदान करने के लिए प्रेरित किया और सफलता से वोटिंग की प्रक्रिया पूरी की. 

यह अवार्ड तमिलनाडु के दक्षिण चेन्नई के वालाचेरी विधानसभा क्षेत्र की पोलिंग अधिकारी एम राधा, झारखंड के पलामू की चुनाव अधिकारी अनीता मिंज, जम्मू कश्मीर के खान साहिब विधानसभा क्षेत्र की राहिला सैयल रफीकी, जम्मू कश्मीर के पोलिंग स्टेशन लुसाने के चुनाव अधिकारी सूरज सिंह, अंडमान और निकोबार के पोलिंग अधिकारी टी रामाराव, छत्तीसगढ़ के कांकेर के पोलिंग आफिसर टिकेश कुमार साहू और अरुणाचल प्रदेश के इटानगर की पोलिंग अधिकारी डॉ चिलो लिमा को दिया गया. 

इस अवार्ड की घोषणा करते हुए एनडीटीवी के एडिटर इन चीफ संजय पुगलिया ने कहा कि, एनडीटीवी इंडियन ऑफ द ईयर अवार्ड का मेन फ्लैगशिप अवार्ड है- वह इंडियन कौन है, किसी इंडीवीजुअल को दिया जा सकता है, कोई बड़ा नाम हो सकता है या कोई बहुत बड़ा नाम नहीं हो सकता है... ये है पोलिंग बूथ आफीसर. इसकी खास बात यह है कि लोकतंत्र जहां दुनिया भर में चुनौतियों का सामना कर रहा है, वहां भारत में लोकतंत्र को बनाना, संभालना, आगे बढ़ाना... हमारी चुनाव प्रक्रिया कई पश्चिमी देशों से बहुत आगे है. यहां चैलैंजिंग पॉलिटिक्स है और उसमें इतना शानदार चुनाव सफलतापूर्वक करवा लेना, यह कोई मामूली काम नहीं है. देश में हम शिकायतें करते हैं इनएफिशिएंसी की, और उसके बीच में किस प्रकार से 100 परसेंट परफेक्शन वाला चुनाव हमारे लोग डिलीवर करते हैं. मुख्य चुनाव आयुक्त, चुनाव आयुक्त यह इसलिए डिलीवर कर पाते हैं क्योंकि हर बूथ पर पोलिंग आफिसरों की टीम बैठी हुई है. वह यह सुनिश्चित करती है कि आपके हक का इस्तेमाल हो रहा है.           

''पहली बार देश की यह सेवा करने का मौका मिला''

जम्मू कश्मीर के खान साहिब विधानसभा क्षेत्र की राहिला सैयल रफीकी से यह पूछे जाने पर कि जम्मू कश्मीर में चुनाव कराना कितना कठिन था, उन्होंने कहा कि वास्तव में यह मेरे लिए बड़ी चुनौती थी. यह पहला मौका था जब मुझे देश की यह सेवा करने का अवसर मिला. उन्होंने कहा कि, वहां सिर्फ महिला कर्मचारियों की ड्यूटी थी. हमने वहां बहुत अच्छे से मैनेज किया. हमने इलाके में लोगों के घर पहुंचकर उन्हें वोट डालने के लिए जागरूक किया. तो सब अच्छे से हो गया.

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नक्सल प्रभावित इलाके में महिला अधिकारी की ड्यूटी

झारखंड के पलामू की चुनाव अधिकारी अनीता मिंज ने नक्सल प्रभावित इलाके में ड्यूटी की. वहां चुनाव कराना मुश्किल काम था. उन्होंने बताया कि उन्होंने लोगों को चुनाव के विषय में बताया, उन्हें बताया कि मत देने का हमारा बड़ा अधिकार है. लोगों को प्रेरित किया. उन्होंने बताया कि पोलिंग बूथ 20 किलोमीटर दूर है और जाने के लिए सड़कें कच्ची हैं, रास्ते में नदी भी है. ट्रेक्टर में बैठकर टीम ने नदी पार की और बूथ तक गए. वहां चुनाव कराए.           

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पहली बार दुर्लभ जनजाति के लोगों से से वोटिंग कराई 

अंडमान और निकोबार के पोलिंग अधिकारी टी रामाराव पोलिंग स्टेशन डुगांग क्रीक तक नाव के जरिए पहुंचे थे. यह वह दूरदराज का इलाका है जहां अत्यधिक पिछड़ी जनजाति के लोग रहते हैं. इस समुदाय की अपनी दुनिया से बिल्कुल अलग परंपराएं और मान्यताएं हैं. उनकी भाषा भी अलग है. ऐसे में वहां उनसे मतदान कराना बहुत चुनौती भरा काम था. रामाराव ने बताया कि हेडक्वार्टर से दूर पोलिंग स्टेशन तक पहुंचने की चुनौती थी. उस स्थान की बहुत कठिन भौगोलिक स्थिति है. इसके अलावा वहां जंगली जानवर भी हैं. हम छोटी नांवों (डोंगी) से पोलिंग स्टेशन तक पहुंचे थे. चुनाव आयोग की ओर से हमें वे सारी सुविधाएं उपलब्ध कराई गईं जिनकी हमें जरूरत थी. वह एरिया ओंगे आदिवासियों का निवास है. इस जनजाति के दुनिया में सिर्फ 136 व्यक्ति हैं. यह साउथ अंडमान में है. किस्मत से मैं वहां पहले स्कूल में टीचर रहा हूं. मुझे वहां चुनाव ड्यूटी का मौका मिला. वहां के स्थानीय प्रशासन और ट्राइबल वेलफेयर डिपार्टमेंट ने समुदाय के सभी मतदाताओं को मतदान के लिए पोलिंग स्टेशन तक लाने में मदद की. उन्हें  वोट डालने का कोई अनुभव नहीं था. ईवीएम से वोट डालना उनके लिए बहुत कठिन था. कुल 83 वोटरों में 78 ने वोट डाले. कुल 94 प्रतिशत मतदान हुआ.           

पहली ट्रांसजेंडर पोलिंग आफिसर

तमिलनाडु के दक्षिण चेन्नई के वालाचेरी विधानसभा क्षेत्र की पोलिंग अधिकारी एम राधा ने बताया कि मैं पहली ट्रांसजेंडर पोलिंग आफिसर हूं. मैं चेन्नई में सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट में काम करती हूं. लोकतंत्र की सफलता वोट और वोटर की समावेशिता है. संविधान में ट्रांसजेंडर सहित समाज के सभी वर्गों को वोटिंग का अधिकार प्राप्त है.  

पोलिंग टीम पर नक्सलियों के ड्रोन की नजर  

छत्तीसगढ़ के कांकेर के पोलिंग आफिसर टिकेश कुमार साहू ने नक्सल प्रभावित इलाके में मतदान कराया था.
छत्तीसगढ़ के बस्तर डिवीजन में 102 गांव ऐसे हैं जहां आजादी के बाद लोगों ने पहली बार अपने ही गांव में मतदान किया था. साहू ने बताया कि, नक्सल प्रभावित क्षेत्र में मतदान कराना बहुत चुनौतीपूर्ण होता है. हमें मतदान के दिन से तीन दिन पहले घर से निकलना पड़ा था. हैलिकॉप्टर से हमें बीएसएफ कैंप में ड्रॉप किया गया. फिर पांच किलोमीटर घने जंगलों में से चलते हुए हम पोलिंग बूथ पर पहुंचे थे. जब हम रास्ते में थे तो नक्सलियों के ड्रोन हम पर नजर रख रहे थे. हमारे साथ काफी सुरक्षा व्यवस्था थी इसलिए हम 71 प्रतिशत वोटिंग कराकर सकुशल वापस आ गए.   

ग्लेशियर से होते हुए पोलिंग बूथ का सफर

जम्मू कश्मीर पोलिंग स्टेशन लुसाने के चुनाव अधिकारी सूरज सिंह को अपनी टीम के साथ 16 किलोमीटर का पैदल सफर करना पड़ा था. रास्ते में जंगल और ग्लेशियर भी था. उन्होंने बताया कि वह ऊंचाई वाला क्षेत्र था. ग्लेशियर से होते हुए पैदल चढ़ाई की. वहां बिजली की कोई व्यवस्था नहीं थी. लैंडस्लाइडिंग के लिए संवेदी इलाका था, पत्थर भी गिरते थे. हमें रास्ते के उस भाग को ज्यादा जल्दी चलकर कवर करना पड़ा था. जून-जुलाई में भी बर्फबारी होने से वह भी एक चुनौती थी. वहां के लोगों की भाषा हम समझ नहीं पाते थे. लेकिन पोलिंग सफलता से हुई.

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