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बिहार में NDA की 'डबल इंजन' दहाड़: ये हैं जीत की वो 10 बड़ी वजहें जिन्होंने पलट दिया पासा !

Bihar Election Results 2025: बिहार चुनाव के नतीजे आ चुके हैं. एक बार फिर NDA ने साबित कर दिया है कि उसकी पकड़ ज़मीन पर मजबूत है. इस जीत के पीछे सिर्फ बड़े वादे नहीं, बल्कि कई छोटी-बड़ी रणनीतियों ने काम किया है. NDA की जीत महज़ संयोग नहीं बल्कि कुशल राजनीतिक इंजीनियरिंग भी है. इस रिपोर्ट में जानने की कोशिश करते हैं कि कौन सी वे 10 वजहें रहीं जिन्होंने पासा पलट दिया.

बिहार में NDA की 'डबल इंजन' दहाड़: ये हैं जीत की वो 10 बड़ी वजहें जिन्होंने पलट दिया पासा !

NDA Victory Bihar Election: सबसे पहले एक किस्सा:

बिहार के एक EBC बाहुल्य गांव में जब चुनावी चर्चा हुई, तो युवा मतदाताओं ने कहा कि "हमें पुरानी तरह का मटन-भात वाला चुनाव नहीं चाहिए. हमें दिखता है कि हमारे यहां सड़क बनी है, बिजली आ गई है और महिलाओं को साइकिल मिली है. नेता बदलने से ये काम रुकेंगे, इसलिए हम उसी को चुनेंगे जो काम करता है."

बिहार चुनाव के जो नतीजे आए हैं उसकी वजहें इस छोटे से किस्से में छुपी है...दरअसल बिहार चुनाव में NDA की जीत महज़ संयोग नहीं, बल्कि कुशल राजनीतिक इंजीनियरिंग और ज़मीनी समीकरणों की बिछाई गई सटीक बिसात का परिणाम है. दूसरी तरफ विपक्षी महागठबंधन (MGB) की आंतरिक खींचतान और सियासी प्रबंधन के अभाव ने भी NDA की जीत की गाड़ी में ईंधन का काम किया. इसी संदर्भ में आइए उन 10 वजहों को समझने की कोशिश करते हैं जिसने NDA की प्रचंड विजय को संभव बना दिया.

1.ब्रांड मोदी का 'अभेद्य कवच' और 'डबल इंजन' की अपील

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता ने NDA को एंटी-इन्कम्बेंसी के दबाव से बचाए रखा. उन्होंने चुनाव को 'केन्द्र की गारंटी बनाम राज्य की अस्थिरता' के फ्रेम में सफलतापूर्वक सेट किया. इस "डबल इंजन" की अपील ने मतदाताओं के मन में यह विश्वास मज़बूत किया कि विकास और स्थिरता के लिए सत्ता का केंद्र और राज्य में एक ही होना आवश्यक है.

2. NDA के 'कुशल नेतृत्व' पर मुहर

NDA ने चुनाव से बहुत पहले ही नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था. खुद पीएम ने शुरुआती चुनावी सभाओं में नीतीश के नेतृत्व पर मुहर लगाया.

इससे NDA में एकजुटता और स्थिरता का संदेश गया. इसके विपरीत, महागठबंधन में डिप्टी सीएम पद को लेकर चुनाव से पहले और बाद में खींचतान रही, जिसने मतदाताओं के मन में यह सवाल खड़ा किया कि क्या विपक्ष सत्ता मिलने पर भी स्थिर रह पाएगा? .

3. 'समय पर' सीटों की घोषणा

NDA ने अपनी टिकट बंटवारा प्रक्रिया को समय पर और संगठनात्मक तरीके से पूरा किया, जिससे कार्यकर्ताओं को प्रचार के लिए पर्याप्त समय मिला. जनता में भी पॉजिटिव संदेश गया. टिकट बंटवारे में जातीय संतुलन का पूरा ध्यान रखा गया. NDA में 'चिराग की वापसी और समय प्रबंधन' चिराग पासवान को गठबंधन में शामिल करने की प्रक्रिया भले ही लंबी चली, लेकिन NDA ने इसे चुनाव की घोषणा से पहले अंतिम रूप दे दिया. यह दिखाता है कि NDA नेतृत्व ने अपनी सबसे बड़ी चुनौती को भी समय रहते 'मैनेज' कर लिया और प्रचार शुरू होने से पहले ही गठबंधन की तस्वीर साफ कर दी.

4. 'जीविका दीदी' फैक्टर: महिलाओं का मौन समर्थन

NDA की जीत में सबसे निर्णायक, संगठित, और राजनीतिक शोर से दूर रहने वाला वर्ग 'जीविका दीदियां' रहीं, जो महिला वोट बैंक की धुरी हैं. महिलाओं का यह समर्थन किसी भावनात्मक अपील पर नहीं, बल्कि ठोस आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण पर आधारित था.

राज्य सरकार द्वारा ठीक चुनाव के पहले जीविका दीदियों को 10,000 रुपये की प्रोत्साहन राशि देना ट्रिगर प्वाइंट बना. नीतीश कुमार के शराबबंदी जैसे कदमों ने महिलाओं को सीधे सामाजिक सुरक्षा और घर के अंदर शांति प्रदान की.

देखा जाए तो 'जीविका दीदियाँ' केवल खुद ही वोट नहीं देती हैं, बल्कि अपने समूह,परिवार और पड़ोस को भी मतदान के लिए प्रेरित करती हैं. कुल मिलाकर नतीजे ये बताते हैं कि यह 'साइलेंट वोट' ही था जिसने कई करीबी सीटों पर परिणाम NDA के पक्ष में मोड़ दिया.

5. महागठबंधन में 'सीट बंटवारे की खींचतान' और देरी

महागठबंधन की एक बड़ी कमजोरी सीट बंटवारे में हुई अत्यधिक देरी थी. लंबी बातचीत और खींचतान ने न केवल कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ा, बल्कि यह संदेश भी दिया कि गठबंधन आंतरिक रूप से विभाजित है. कई सीटों पर असंतुष्टों ने बगावत की, जिसका सीधा फायदा NDA उम्मीदवारों को मिला.

6. अति-पिछड़ा और महादलितों का अटूट साथ

नीतीश कुमार और NDA की सोशल इंजीनियरिंग का जादू इस चुनाव में चला है. उनके द्वारा बनाए गए EBC और महादलित वोट बैंक ने अपनी निष्ठा बरकरार रखी. इस वर्ग ने किसी भी भावनात्मक लामबंदी के बजाय स्थायी विकास और सामाजिक सुरक्षा पर वोट किया, जिसने NDA की नींव को मजबूत बनाए रखा.

7. जंगलराज बनाम सुशासन का नैरेटिव वॉर

NDA ने 'जंगलराज' के डर को जिंदा रखकर अपने पक्ष में नैरेटिव बनाया. पीएम मोदी और अमित शाह से लेकर योगी आदित्यनाथ तक ने अपनी हर रैली में कानून-व्यवस्था की पिछली स्थिति की यादों को जमकर सुनाया और भुनाया. बार-बार कही जा रही इन बातों ने उन युवा मतदाताओं को भी प्रभावित किया जो लालू राज के बाद पैदा हुए थे. जिन्होंने लालू राज को नहीं देखा उन्हें भी इसका डर समझ आया. NDA ने साफ किया कि वो ही विकास के साथ-साथ सुरक्षित माहौल दे सकती है.

8. बिहार के वोटिंग बिहेवियर में बदलाव

बिहार में इस बार बंपर वोटिंग हुई तो सियासी पंडित तमाम अनुमान लगाने लगे कि क्या बदलाव होगा? लेकिन नतीजों ने साफ कर दिया कि इस बार बिहार के मतदाताओं को बिहेवियर बदला है. उन्होंने इस बार बुनियादी सुविधाओं (बिजली, सड़क, पानी) की निरंतरता को सुनिश्चित करने के लिए वोट दिया. यह विकास-केंद्रित मतदान, जिसने क्षणिक प्रलोभनों को नकारा.

9. लाभार्थियों का विशाल वर्ग और सीधा फ़ायदा

केंद्र और राज्य की कल्याणकारी योजनाओं से लाभान्वित हुए विशाल वर्ग ने अपने हितों की रक्षा के लिए उसी गठबंधन को चुना जिसने उन्हें ये लाभ दिए. यह वर्ग, जो समाज के निचले पायदान पर है, किसी भी विरोध की लहर से अप्रभावित रहा.

10. BJP का मजबूत बूथ प्रबंधन और कैडर की सक्रियता

BJP की संगठनात्मक मशीनरी की दक्षता ने सीटों के छोटे अंतर को निर्णायक जीत में बदल दिया. NDA ने बूथ प्रबंधन, मतदाता मोबिलाइजेशन और कैडर की सक्रियता के मामले में विपक्ष को पछाड़ दिया, जो करीबी मुकाबले वाले चुनावों में जीत-हार का फैसला करता है.

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