राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने 12वीं और 11वीं कक्षा की पॉलिटिकल साइंस की किताब में कई बदलाव किए हैं.इन बदलावों के बाद से अयोध्या की बाबरी मस्जिद, भगवान राम, श्री राम, रथ यात्रा, कारसेवा, विध्वंस के बाद हुई हिंसा,सरकारों की बर्खास्तगी और गुजरात दंगे से जुड़े कुछ मामले हटा लिए गए हैं.इससे विवाद शुरू हो गया है.
एनसीईआरटी ने 12वीं कक्षा की पॉलिटिकल साइंस की किताब में किए गए बदलावों में सबसे बड़ा है,'बाबरी मस्जिद' शब्द हटाना.इसकी जगह'तीन गुंबद वाली संरचना' वाक्य का इस्तेमाल किया गया है.वहीं किताब में अयोध्या वाले चैप्टर को चार पेज से कमकर दो पेज में कर दिया गया है.इन बदलावों का एनसीईआरटी के डायरेक्टर दिनेश प्रसाद सकलानी ने बचाव किया है.उनका कहना है,हमें स्कूल में दंगों के बारे में क्यों पढ़ाना चाहिए? हम पॉजिटिव नागरिक बनाना चाहते हैं, न कि हिंसक और अवसादग्रस्त इंसान.
बाबरी मस्जिद को क्या कहा गया है?
एनसीईआरटी की 12वीं कक्षा की पॉलिटिकल साइंस की पुरानी किताब में बाबरी मस्जिद का जिक्र 16वीं शताब्दी की मस्जिद के रूप में किया गया था.जिसे मुगल सम्राट बाबर के सेनापति मीर बाकी ने बनवाया था.नई किताब में इसे तीन-गुंबद वाली संरचना बताया गया है.नई किताब में कहा गया है कि तीन गुंबद वाली इमारत को 1528 में श्री राम के जन्मस्थान पर बनाया गया था.इसके भीतरी और बाहरी स्ट्रक्चर में हिंदू प्रतीक और अवशेष स्पष्ट रूप से नजर आ रहे थे.
पुरानी किताब में 1986 में फैजाबाद जिला न्यायालय की ओर से बाबरी मस्जिद को पूजा के लिए खोलने के फैसले के बारे में विस्तार से बताया गया है.इससे सांप्रदायिक तनाव पैदा हुआ था और दंगे हुए थे.वहीं नई किताब में केवल इन घटनाओं का सारांश है.इसमें तीन गुंबद वाली संरचना के उद्घाटन और उसके बाद के कानूनी और सांप्रदायिक संघर्षों का उल्लेख किया गया है.नई किताब में अयोध्या विवाद में सुप्रीम कोर्ट का 2019 का फैसला शामिल है.अदालत ने विवादित जमीन को हिंदू पक्ष को दे दिया था.
कल्याण सिंह की सरकार हटाने का जिक्र हटा
अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद को ढहाए जाने के बाद उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार को हटाने से संबंधित समाचार पत्रों की कटिंग को भी किताबों से हटा दिया गया है.पुरानी किताब में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन सीजेआई जस्टिस एमएन वेंकटचलैया और जस्टिस जीएन रे ने मोहम्मद असलम बनाम भारत संघ मामले में 24 अक्टूबर 1994 को दिए फैसले की टिप्पणियों के अंश दिए गए थे.इसमें कल्याण सिंह को कानून की गरिमा को बनाए रखने में विफल रहने के लिए अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया गया था.इसमें कहा गया था, चूंकि अवमानना बड़े मुद्दों को उठाती है,जो हमारे राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने की नींव को प्रभावित करती है.इसलिए हम उन्हें एक दिन के सांकेतिक कारावास की सजा भी देते हैं. नई किताब में इस हिस्से को हटा दिया गया है.
इसी तरह से कक्षा 11 की पॉलिटिकल साइंस की किताब के डेमोक्रेटिक पॉलिटिक्स-I के चैप्टर 5 से गुजरात दंगों का जिक्र हटा दिया गया है.वहीं 'पॉलिटिकल थ्योरी'के धर्मनिरपेक्षता टॉपिक में से गोधरा कांड के बाद हुए दंगों में मारे गए मुसलमानों का संदर्भ हटा दिया गया है.इस संबंध में एनसीईआरटी का कहना है कि किसी भी दंगे में सभी समुदाय के लोगों को नुकसान होता है. यह सिर्फ एक समुदाय नहीं हो सकता है.
साल 2014 के बाद से चौथा दर
एनसीईआरटी की किताबों में 2014 के बाद से संशोधन का यह चौथा दौर है. साल 2017 में पहले दौर में एनसीईआरटी ने हाल की घटनाओं को दर्शाने के लिए संशोधन की जरूरत का हवाला दिया था.2018 में पाठ्यक्रम के बोझ को कम करने के लिए संशोधन किए गए थे. साल 2021 में भी पाठ्यक्रम के बोझ को कम करने और छात्रों को कोविड के कारण पढ़ाई में दिक्कत से उबरने में मदद के लिए संशोधन किए गए.
इस समय देश के 23 राज्यों में एनसीईआरटी सिलेबस पर आधारित किताबों से पढ़ाई होती है. इन राज्यों में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, कर्नाटक, त्रिपुरा, हरियाणा, मिजोरम और दिल्ली शामिल हैं. केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) के स्कूलों में भी एनसीईआरटी की किताबें पढ़ाई जाती हैं.
एनसीईआरटी के कदम पर राजनीति
एनसीईआरटी के इस कदम से पर राजनीति भी शुरू हो गई है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने आरोप लगाया है कि एनसीईआरटी आरएसएस की सहयोगी के रूप में काम कर रही है. उन्होंने एनसीईआरटी पर संविधान पर हमला करने का आरोप लगाया है. रमेश ने ‘एक्स' पर कहा कि राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) ने नीट-2024 परीक्षा में ग्रेस मार्क विवाद के लिए एनसीईआरटी को जिम्मेदार ठहराया है.उन्होंने आरोप लगाया कि यह केवल एनटीए की अपनी नाकामियों से ध्यान हटाने की कोशिश है.हालांकि यह सच है कि एनसीईआरटी अब पेशेवर संस्था नहीं रही.यह 2014 से आरएसएस से संबद्ध संस्था के रूप में काम कर रही है.अभी-अभी पता चला कि इसकी 11वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की संशोधित पाठ्यपुस्तक में धर्मनिरपेक्षता के विचार की आलोचना की गई है.जयराम रमेश ने कहा है कि एनसीईआरटी का काम किताबें प्रकाशित करना है, राजनीतिक पर्चे जारी करना या दुष्प्रचार करना नहीं.
The National Testing Agency has blamed the NCERT for the 'grace marks' fiasco in NEET 2024. That is only drawing attention away from the NTA's own abject failures.
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) June 17, 2024
However it is true that the NCERT is no longer a professional institution. It has been functioning as an RSS…
क्या चाहता है एनसीईआरटी
वहीं एनसीईआरटी के डायरेक्टर दिनेश प्रसाद सकलानी ने कहा है,''हम सकारात्मक नागरिक बनाना चाहते हैं और यही हमारी पाठ्यपुस्तकों का उद्देश्य है.हम उनमें सबकुछ नहीं रख सकते. हमारी शिक्षा का उद्देश्य हिंसक और अवसादग्रस्त नागरिक पैदा करना नहीं है.घृणा और हिंसा शिक्षण के विषय नहीं हैं.इन पर हमारी किताबों का ध्यान केंद्रित नहीं होना चाहिए.'' उनका कहना था कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर, बाबरी मस्जिद या राम जन्मभूमि के पक्ष में फैसला दिया है, तो क्या इसे हमारी पाठ्यपुस्तकों में शामिल नहीं किया जाना चाहिए. उनका कहना था कि हमने अपडेट चीजें शामिल की हैं. पाठ्यक्रम और किताबों के भगवाकरण के आरोपों के सवाल पर सकलानी ने कहा कि उन्हें इसमें कोई भगवाकरण नहीं दिखता है.
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