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कौन थे सैम मानेकशॉ, जिनके बारे में अब किताबों में पढ़ेंगे आपके बच्चे

Sam Manekshaw NCERT Book: देश के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के बारे में अब स्कूल में बच्चों को पढ़ाया जाएगा, उनकी बहादुरी और देश के लिए त्याग की भावना से बच्चे काफी कुछ सीखेंगे.

कौन थे सैम मानेकशॉ, जिनके बारे में अब किताबों में पढ़ेंगे आपके बच्चे
सैम मानेकशॉ के बारे में जानेंगे स्कूली बच्चे

Sam Manekshaw: हर साल भारत के लोग 15 अगस्त को आजादी का जश्न मनाते हैं, इस जश्न में उन तमाम योद्धाओं को याद किया जाता है, जिन्होंने देश के लिए अपना योगदान दिया. फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ भी ऐसे ही हीरो थे, जिनका नाम सुनकर आज भी दुश्मन के रौंगटे खड़े हो जाते हैं. अब स्कूली बच्चों को भी 1971 युद्ध के हीरो के बारे में पढ़ाया जाएगा. सैम मानेकशॉ के बारे में NCERT की किताबों में एक चैप्टर जोड़ा जाएगा, जिसमें उनके बलिदान और उनकी पूरी जिंदगी के बारे में जानकारी होगी. 

किस क्लास के सिलेबस में जुड़ेंगे चैप्टर?

बताया गया है कि कक्षा आठवीं (उर्दू), कक्षा सातवीं (उर्दू) और कक्षा आठवीं (अंग्रेजी) की किताबों में सैम मानेकशॉ, ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान और मेजर सोमनाथ शर्मा के बारे में चैप्टर जोड़ा गया है. स्कूली बच्चों को पढ़ाया जाएगा कि कैसे भारतीय सेना के इन वीर योद्धाओं ने देश के लिए योगदान दिया और दुश्मन को धूल चटाने का काम किया. 

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कौन थे सैम मानेकशॉ?

सैम का जन्म 3 अप्रैल 1914 को अमृतसर में हुआ था. उनके माता पिता मूल रूप से गुजरात के वलसाड के रहने वाले थे.
सैम का पूरा नाम सैम होर्मुसजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ था. वो भारतीय सेना में बतौर अफसर नियुक्त हुए थे. उनकी बहादुरी और जांबाजी के चलते बाद में उन्हें 'सैम बहादुर' के नाम से भी लोग पुकारने लगे. पाकिस्तान के कब्जे से बांग्लादेश को अलग करने के लिए जब 1971 में युद्ध हुआ तो उसमें आर्मी चीफ सैम मानेकशॉ का सबसे बड़ा रोल था. उनके तेज तर्रार दिमाग और रणनीति के चलते पाकिस्तानी सेना को घुटने टेकने पड़े. जिसके बाद उन्हें फील्ड मार्शल का पद दिया गया.

सैम मानेकशॉ ने इससे पहले कई युद्ध लड़े, जिसमें द्वितीय विश्व युद्ध भी शामिल था. उन्होंने ब्रिटिश इंडियन आर्मी में रहकर लड़ाई लड़ी और अपने तमाम जवानों के साथ मिलकर दुश्मन की छाती पर वार किया. इस दौरान उनको गोलियां लगीं और वो गंभीर रूप से घायल भी हुए. तब उनकी वीरता के लिए उन्हें मिलिट्री क्रॉस से सम्मानित किया गया. 15 जनवरी 1973 को सैम सेना से रिटायर हुए और 27 जून 2008 को उनका निधन हो गया. 

पीएम इंदिरा गांधी के आदेश को मानने से किया इनकार!

सैम मानेकशॉ को उनके बेबाक अंदाज के लिए जाना जाता था, वो हर जगह अपनी बात रखने के लिए जाने जाते थे. यहां तक कि उन्होंने तत्तकालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की बात काट दी थी. इंदिरा चाहती थीं कि मार्च के महीने में ही पाकिस्तान पर हमला किया जाए, लेकिन मानेकशॉ ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. उन्होंने इंदिरा से कुछ महीनों का वक्त मांगा और इसे लेकर अपना तर्क भी दिया, जिसे इंदिरा गांधी को मानना पड़ा. जिसके बाद पाकिस्तान पर जोरदार हमला हुआ और हजारों पाक सैनिकों ने सरेंडर कर दिया.  

बच्चों को मिलेगी ये सीख

भारतीय सेना के ऐसे जांबाज सिपाहियों की कहानी से अब छात्रों को मुश्किल वक्त में फैसले लेने, रणनीति की बारीकी समझने और अपने देश के लिए बलिदान देने की सीख मिलेगी. सैम मानेकशॉ समेत सेना के इन अधिकारियों की ये बहादुरी भरी कहानी काफी दिलचस्प है, ऐसे में छात्रों को ये वाला चैप्टर काफी पसंद आने वाला है. 

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