कांग्रेस नेता व सांसद शशि थरूर ने हाल ही एनडीटीवी के साथ खास बातचीत की. उनकी नई किताब 'प्राइड, प्रिज्युडिस एंड पंडिट्री' रिलीज हो चुकी है. यह उनकी फिक्शन, नॉन फिक्शन और काव्य कार्य का संग्रह है. उन्होंने सूचना प्रौद्योगिकी पर स्थायी समिति की अध्यक्षता करने के अलावा 20 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं. शशि थरूर ने एनडीटीवी से खास बातचीत में कहा कि उनके हिसाब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए 2024 में फिर से सत्ता में आना कठिन कार्य होगा. थरूर ने कहा कि इसके पीछे दो अहम कारण हैं, पहला यह कि उनके पास बताने के लिए कुछ खास नहीं है कि उनकी सरकार ने पिछले साढ़े सात सालों में क्या काम किया है. दूसरा आखिर लोग उन्हें क्यों वोट करेंगे, जब सरकार युवाओं को रोजगार ही नहीं दिला पाई. पीएम मोदी को साल 2019 में बालाकोट एयरस्ट्राइक का फायदा वोट जुटाने में मिला था, लेकिन ऐसा हर बार नहीं होगा.
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वहीं अगर विपक्ष के साथ बाकी पार्टियां भी हाथ मिला लेती हैं तो यह काफी बड़ा नंबर हो जाता है. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी पिछली बार 37 प्रतिशत वोटों से जीते थे, लेकिन अगर उनके खिलाफ बाकी सब एक जुट हो जाएं तो 63 प्रतिशत बनता है और यह एक बड़ा नंबर है.
2024 के आम चुनाव में नरेंद्र मोदी का सामना करने के लिए दूसरे चेहरे के सवाल पर थरूर ने कहा कि नरेंद्र मोदी का ''मैं, मैं, मैं'' कहना और हर बात के लिए यह कहना कि उन्हें सब पता है, मैं सबकी परेशानियों को हल कर सकता हूं, यह हर बार नहीं चलने वाला है. लोग देख चुके हैं कि उनकी बातों में कितना दम है. डीमॉनेटाइजेशन का डिजास्टर तो सबके सामने ही है. वहीं विपक्ष के पास 2024 के लिए एक स्लोगन है "मैं नहीं, हम". यह हम सब भारतवासियों के लिए है. देशभर से कुछ चुनिंदा तर्जुबा रखने वाले राजनीतज्ञ देश की सेवा में आगे आएंगे, यह इसके लिए है. ऐसा क्यों करना है कि यह नरेंद्र मोदी बनाम एक चेहरे की लड़ाई हो.
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जब थरूर से पूछा गया कि क्या कांग्रेस अकेले नरेंद्र मोदी व बीजेपी को हरा सकती है तो थरूर ने कहा कि फिलहाल कांग्रेस पार्टी जिस स्थिति में है, ऐसे में यह कर दिखना बहुत कठिन होगा. हमारे पास अभी संसद में केवल 52 सीटें हैं और हमें 272 की जरूरत होगी, लेकिन कांग्रेस अगर रीजनल पार्टियों के साथ हाथ मिला ले, तो यह बेशक संभव है.
थरूर ने कहा कि बीजेपी सरकार ने विकास और बेरोजगारी हटाने के लिए जो वादे किए थे, वे उन्हें निभा नहीं सकी. उनके राज में बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा रही है, वहीं अर्थव्यव्स्था भी लड़खड़ा गई है.
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