सरकार के साथ शांति वार्ता कर रहे नेशनलिस्ट सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (आईएम) ने सोमवार को कहा कि उसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फरवरी में पत्र लिखा था और कहा था कि यदि "भारत में उसकी मौजूदगी का स्वागत नहीं है" तो विदेश में बातचीत की जानी चाहिए. आठ पन्ने के "गोपनीय" पत्र में वार्ताकारों, नागालैंड के गवर्नर आरएन रवि और गृह मंत्रालय की कड़ी आलोचना करते हुए समूह ने अलग झंडे और संविधान की भी मांग की है. संगठन का कहना है कि पत्र पर प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से कोई जवाब नहीं मिला है.
NSCN(IM) के बयान के मुताबिक, सात महीने पहले, संगठन के राष्ट्रीय महासचिव टी मुईवाह ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था. हमने अब तक चिट्ठी को सार्वजनिक नहीं किया था क्योंकि हमें उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री मोदी सकारात्मक जवाब देंगे. आज, NSCN (IM) ने नागा लोगों के प्रति जवाबदेह होने के कारण भारतीय प्रधानमंत्री के कार्यालय की ओर से जवाब नहीं मिलने और देरी होने के बारे में जानकारी देने के लिए पत्र जारी किया."
समूह ने पत्र में आरोप लगाया है कि शीर्ष स्तर के राजनीतिक संवाद को कम करने की कोशिश की गई है.
टी मुईवाह ने चिट्ठी में लिखा था, "आज, हम आपके संज्ञान में गृह मंत्रालय (एमएचए) और उसकी एजेंसियों एनआईए और असम राइफल्स सहित अन्य की गतिविधियां लाना चाहते हैं, जो भी गंभीर चिंता का विषय है. जैसा की आप जानते हैं कि 22 साल से चल रही वार्ता शीर्ष स्तर से शुरू हुई थी. प्रधानमंत्री स्तर की वार्ता बिना किसी पूर्व शर्ष और भारत से बाहर किसी दूसरे देश में शुरू हुई थी. हम भारत सरकार के बुलावे पर भारत आए थे. हम पूरी तरह से हैरान और आश्चर्यचकित हैं कि दो दशक से अधिक की राजनीतिक वार्ता के बाद भी, गृह मंत्रालय और उसकी एजेंसियां का रुख निंदनीय है."
बिना अलग ध्वज और संविधान के नहीं हो सकता शांति समझौता, नागालैंड के सशस्त्र विद्रोही समूह का कड़ा रुख
उन्होंने आगे कहा, "गृह मंत्रालय के हालिय घटनाक्रम ने हमारी दीमापुर में मौजूदगी पर सवाल उठाए हैं. हम नागालैंड में अपने लोगों से मिलने के लिए और शांति प्रक्रिया के लिए हैं... यदि हमारे भारत में रहने का अब स्वागत नहीं तो हमारे भारत छोड़ने के सभी जरूरी इंतेजाम किया जाए और राजनीतिक वार्ता किसी तीसरे देश में शुरू की जाए."
समूह ने दावा किया कि भारत सरकार की ओर से नागा मुद्दे को राजनीतिक मुद्दे के रूप में मान्यता देने और इसे आंतरिक कानून-व्यवस्था का मुद्दा नहीं मानने के बाद ही 1997 में वार्ता के लिए उसने सहमति जताई थी.