आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के निर्देश के बाद आखिरकार पुलिस को अपने ही खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करना पड़ा। राज्य पुलिस की तरफ से हाई कोर्ट को ये जानकारी बुधवार को दी गयी कि इस महीने की 7 तारिख को चित्तूर के सेशाचलम् के जंगल में हुए मुठभेड़ में शामिल सभी पुलिसकर्मियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 यानी हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया है।
दरअसल पुलिस ने इस मुठभेड़ में मारे गए सभी 20 आदिवासी लकड़हाड़ों के साथ-साथ 450 अनजान लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 307 यानी (एसटीएफ और वन के सुरक्षाकर्मियों की) हत्या का प्रयास का मुक़दमा दर्ज किया था।
लेकिन जब इस मुठभेड़ के फ़र्ज़ी होने की ख़बर सबूतों के साथ सामने आने लगी तो हाई कोर्ट ने मारे गए सभी 20 आदिवासी लकड़हाड़ों के खिलाफ अप्राकृतिक मौत का मामला दर्ज करने का आदेश दिया साथ ही साथ ये भी निर्देश दिया था की इस मुठभेड़ में शामिल पुलिसवालों के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज किया जाए।
और इसके बाद ही पुलिस ने एफआईआर दर्ज किया। आंध्र प्रदेश के डीजीपी जे वी रामुदु ने एनकाउंटर के बाद बताया था कि इस ऑपरेशन में 20-20 सुरकक्षाकर्मियों की 10 टीमें शामिल थीं। इनमें से 10 के पास हथियार थे। आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने ये भी साफ़ कर दिया है कि इस मामले की जांच कोर्ट की निगरानी में होगी।
उधर दूसरी तरफ दिल्ली में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सामने इस एनकाउंटर से जुड़े दो चश्मदीदों ने अपनी गवाही दी जिन्होंने पुलिसवालों को बस से मारे गए आदिवासियों को उतारते देखा था। एक गवाह की गवाही के लिए आयोग का एक दल तमिलनाडु जा रहा है।
7 अप्रैल को आंध्र प्रदेश के चित्तूर ज़िले के सेशाचलम के जंगलों में एसटीएफ ने 20 आदिवासी लकड़हाड़ों को लाल चन्दन का तस्कर बताते हुए मार गिराया था। बाद में पता चला कि वो सभी तमिलनाडु के दिहाड़ी लकड़हाडे हैं जिन्हें संदल की तस्करी से जुड़ा गिरोह लकड़ियां कटवाने के लिए जंगलों में ले जाता है।
एनकाउंटर की जगह मिले सबूतों और चश्मदीदों के बयानों के बाद एक अलग तस्वीर इस एनकाउंटर की सामने आयी। और इस शक को बल मिला कि मुठभेड़ फर्जी थी और इसमें मारे गए ज्यादातर लोगों को पुलिस ने बस से जबरन उतारा और बाद में मार दिया।
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