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This Article is From Sep 14, 2018

MP कांग्रेस प्रमुख कमलनाथ ने NDTV को बताया, "10 दिन के भीतर हो जाएगा मायावती से गठबंधन"

अब आम चुनाव से पहले मध्य प्रदेश एक बार फिर इस बात की पुष्टि कर रहा है कि अब आने वाले हर चुनाव में गठबंधन एक अहम फैक्टर होगा, और दूसरा अहम फैक्टर जाति ही होगी...

MP कांग्रेस प्रमुख कमलनाथ ने NDTV को बताया, "10 दिन के भीतर हो जाएगा मायावती से गठबंधन"
उत्तर प्रदेश में विपक्ष की हालिया जीतों से मायावती का राजनैतिक भविष्य फिर चमकदार दिखने लगा है...
जब, सिर्फ तीन दिन पहले, मायावती ने कहा था कि कांग्रेस और BJP, दोनों को ही पेट्रोल के लगातार बढ़ते दामों की ज़िम्मेदारी लेनी होगी, तो BJP काफी उत्साहित हुई थी... इससे पहले बहुजन समाज पार्टी (BSP) की 62-वर्षीय मुखिया ने अपनी पार्टी को कांग्रेस द्वारा आहूत उस 'भारत बंद' में शिरकत से भी मना कर दिया था, जो कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी दलों के मुताबिक BJP द्वारा अर्थव्यवस्था के 'घोर कुप्रबंधन' के खिलाफ बुलाया गया था...

लेकिन मध्य प्रदेश में गठबंधन के लिए बातचीत करतीं मायावती के रुख को कांग्रेस में राजनैतिक अखाड़े पर काबिज होने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है...

कांग्रेस की मध्य प्रदेश इकाई के अध्यक्ष कमलनाथ ने NDTV को बताया, "जब हमने बातचीत शुरू की थी, वे 50 सीटें चाहते थे, लेकिन अब वे ज़्यादा समझदारी से बात कर रहे हैं, क्योंकि वे भी देख रहे हैं कि दांव पर क्या लगा है, और हम दोनों का साझा मकसद BJP को हराना है... अगले 10 दिन के भीतर कोई न कोई समझौता हो जाने की उम्मीद है..."
 
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मध्य प्रदेश कांग्रेस प्रमुख कमलनाथ को भरोसा है कि BSP के साथ गठबंधन हो जाएगा...


वर्ष 2014 में सिर्फ 4.2 फीसदी वोट हिस्सेदारी पाने वाली मायावती इस चुनाव में निश्चित रूप से 'निर्विवाद साथी' के रूप में उभरकर सामने आई हैं...

इस साल उत्तर प्रदेश में हुए तीनों उपचुनावों में मायावती ने पूर्व प्रतिद्वंद्वी अखिलेश यादव के साथ गठजोड़ किया (कैराना में तो उन्होंने कांग्रेस को भी साथी बनाया), और एकजुट विपक्ष के लिए उस ज़मीन पर 3-0 का नतीजा हासिल किया, जिस पर एक ही साल पहले BJP ने अभूतपूर्व जीत हासिल की थी, और लगभग सूपड़ा साफ करते हुए देश के सबसे बड़ी आबादी वाले सूबे में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार बनाई थी...

अखिलेश यादव BJP के साथ जा नहीं सकते, मायावती अतीत में BJP के साथ जा चुकी है... इसीलिए विपक्ष और BJP, दोनों ही मायावती के पीछे हैं... जिसके साथ भी वह जाएंगी, उसी के उत्तर प्रदेश में जीतने की संभावना है, और जो उत्तर प्रदेश जीतेगा, वही संभवतः हिन्दुस्तान की गद्दी भी जीत जाएगा...
 
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गठबंधन की ज़रूरत BSP प्रमुख को भी कांग्रेस जितनी ही है, लेकिन वह आसानी से नहीं मान रही हैं...


मायावती ने वर्ष 2012 में अखिलेश यादव के हाथों उत्तर प्रदेश गंवा दिया था, और वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी ने उनके प्रमुख जनाधार - जाटव दलितों - के एक बड़े हिस्से में कामयाबी से सेंध लगा ली थी... लेकिन इस तरह हाशिये पर चले जाने के बाद उत्तर प्रदेश में हुए तीन उपचुनावों ने मायावती की ज़ोरदार राजनैतिक वापसी के संकेत दिए है...

पांच महीने से वह कांग्रेस के साथ मध्य प्रदेश में गठबंधन को लेकर बात कर रही है, लेकिन अब तक, उसका कोई नतीजा नहीं निकल पाया है...

मध्य प्रदेश में दलितों की आबादी 15.2 फीसदी है... राज्य में कुल 230 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से 35 अनुसूचित जातियों के प्रत्याशियों के लिए आरक्षित हैं... वर्ष 2013 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में BJP ने इनमें से 7 को छोड़कर सभी पर जीत हासिल की थी...

लेकिन अब दलितों में पार्टी को लेकर गुस्सा है... अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने दलितों से भेदभाव को दंडित करने वाले अनुसूचित जाति जनजाति (अजा/जजा अत्याचार अधिनियम) कानून (SC/ST एक्ट) में बदलाव किया था, और इसे लेकर दलितों ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया था कि उसने कानून को हल्का किया जाने दिया... इसके बाद इस फैसले का विरोध करने के दौरान ऊंची जातियों के लोगों से हुए संघर्ष में मध्य प्रदेश में छह दलितों की मौत हुई थी, जिनके हमलावरों को अब तक गिरफ्तार नहीं किया गया है...
 
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SC/ST एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद प्रदर्शनों के दौरान सवर्णों के साथ हुए संघर्ष में छह दलितों की मौत हो गई थी...


देशभर के दलितों के मन में भर गए गुस्से के साथ-साथ BJP को केंद्रीय मंत्री तथा दलित नेता रामविलास पासवान जैसे सहयोगियों की नाराज़गी भी झेलनी पड़ रही है, और अब सरकार को कानून में किए गए संशोधनों से उम्मीद है कि वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले के प्रभाव को खत्म कर देंगे...

लेकिन इससे मध्य प्रदेश में एक नया ही गुस्सा पैदा हो गया... सवर्ण (ऊंची जातियां) तथा अन्य पिछड़ी जातियां, जिन पर SC/ST एक्ट लागू नहीं होता है, आश्चर्यजनक रूप से इसे लेकर एक साथ आ गईं, और अहम बात यह है कि ये जातियां कुल मिलाकर आबादी का 52 फीसदी हिस्सा हैं... खासे पॉश इलाकों में बैनर लगा-लगाकर BJP प्रत्याशियों से कहा गया है कि वे स्थानीय निवासियों से वोट न मांगें...
 
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SC/ST एक्ट के दुरुपयोग के खिलाफ सवर्ण जातियों के संगठन विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं...


पिछले महीने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर एक जन रैली के दौरान सवर्ण प्रदर्शनकारियों ने जूता फेंका था - CM का दावा था कि यह कांग्रेस का किया-धरा है... वैसे सवर्ण दलितों को बढ़ावा देने के लिए कांग्रेस को भी निशाना बना रहे हैं, और पिछले माह कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को उन्हीं के संसदीय क्षेत्र गुना में सवर्णों ने परेशान किया, तथा कमलनाथ को भी इसी हफ्ते इसी तरह की नारेबाज़ी का सामना करना पड़ा...

राज्य में दलितों की सबसे बड़ी आबादी भिंड जिले में है, और यहां साफ पता चलता है कि BJP बहुत मुश्किल वक्त से गुज़र रही है... दलित बेहद नाराज़ हैं... वे मायावती की पार्टी के उकसावे में आ रहे हैं कि लगातार चौथी बार कुर्सी पाने की कोशिश में जुटे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सवर्णों को दूर जाने से रोकने के लिए अनकहे तरीके से उनके, यानी दलितों के हितों को दरकिनार कर रहे हैं...

भिंड से BSP नेता संजीव सिंह कुशवाहा ने आरोप लगाया, "दरअसल मुख्यमंत्री चाहते हैं कि SC/ST एक्ट तथा आरक्षण के खिलाफ सवर्णों का विरोध बढ़ता रहे, ताकि हर बार संघर्ष होने पर वह खुद को संविधान और दलित अधिकारों के रक्षक के रूप में प्रोजेक्ट कर सकें... वह जानते हैं कि सवर्ण अंत-पंत BJP का ही साथ देंगे... हमारे लोग उनका खेल समझ चुके हैं... इस बार दलित BJP को वोट नहीं देंगे..."
 
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मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का इरादा लगातार चौथी बार कुर्सी पाकर रिकॉर्ड बनाने का है...


पिछले विधानसभा चुनाव में भिंड विधानसभा सीट से BJP प्रत्याशी के हाथों मामूली अंतर से हारने वाले कुशवाहा के अनुसार, "कांग्रेस अगर BSP के साथ गठबंधन कर लेती है, तो दलित उसे वोट देंगे... यही एकमात्र तरीका है, जिससे कांग्रेस मध्य प्रदेश में सत्ता में वापसी कर सकती है..."

उधर, कमलनाथ का कहना है, "अगर BSP ऐसा कह रही है, तो इसका अर्थ है कि उन्हें भी मध्य प्रदेश में प्रासंगिक बने रहने के लिए कांग्रेस की ज़रूरत है..."

सच्चाई यही है कि दोनों पक्ष ज़रूरतमंद हैं... पिछले विधानसभा चुनाव में BJP ने 165 सीटें जीती थीं, और कांग्रेस भले ही दूसरे स्थान पर थी, लेकिन काफी पिछड़कर कुल 58 सीटें जीत पाई थी, और BSP को तो कुल चार सीटों पर जीत हासिल हुई थी...

लेकिन पिछले साल हुए चार उपचुनावों में, जिनमें BSP ने प्रत्याशी नहीं उतारे थे, कांग्रेस ने तीन पर जीत हासिल की थी, और उन्हें यह दावा करने का अवसर मिला कि वे विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश को BJP के हाथों से वापस हासिल कर सकते हैं...
 
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प्रदीप (बाएं) तथा आकाश जाटव की महगांव तथा भिंड में सवर्णों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी...


कांग्रेस से जुड़े भिंड के एक वकील सुरेश कुमार का कहना है, "BSP के साथ गठबंधन नहीं कर पाने की सूरत में कांग्रेस की संभावनाओं को बहुत नुकसान हो सकता है..." मायावती के जाटव समुदाय से आने वाले सुरेश कुमार का दावा है कि हालिया हिंसक घटनाओं से मतदाताओं का ध्रुवीकरण हो जाएगा... उन्होंने कहा, "इससे सवर्णों के वोट BJP के लिए, और दलितों के वोट BSP के लिए एकजुट हो जाएंगे... इससे कांग्रेस निश्चित रूप से कमज़ोर होगी, क्योंकि वह इन दोनों ही समुदायों के वोटों पर निर्भर है..."

जैसा अक्सर होता है, असल समस्या नौकरियों और रोज़गार की भयंकर किल्लत में छिपी है...

मध्य प्रदेश के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2015 में राज्य में लगभग 16 लाख बेरोज़गार नवयुवक थे, और 2017 में उनकी तादाद 24 लाख हो गई, जो 53 फीसदी की बढ़ोतरी है... रिपोर्ट में दिया गया यह आंकड़ा भी बहुत कुछ कहता है - वर्ष 2016 के दौरान सिर्फ 129 लोगों को सरकारी नौकरी हासिल हो पाई...

इस साल के चुनाव में एक नया प्रतियोगी भी है - सामान्य पिछड़ा वर्ग अल्पसंख्यक कल्याण समाज (SAPAKS)... यह सेवारत तथा सेवानिवृत्त सरकारी कर्मियों का संगठन है, जो इसी साल बनाया गया था, और इसके सदस्य अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों से आने वाले सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति के खिलाफ हैं...
 
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आरक्षण-विरोधी नारों के साथ SAPAKS भी विधानसभा चुनाव लड़ेगी...


पूर्व नौकरशाह तथा SAPAKS सदस्य हीरालाल त्रिवेदी का कहना है, "राज्य के 52 फीसदी सामान्य तथा अल्पसंख्यक वर्ग का एक बड़ा हिस्सा हमारे साथ है... और हमारा फोकस आरक्षण-विरोधी वोटों पर होगा..."

SAPAKS की योजना दलितों के लिए आरक्षित 35 सीटों पर भी गैर-जाटव प्रत्याशी खड़े करने की है, जिनमें कोइरी और वाल्मीकि जैसी जातियों के सदस्य शामिल होंगे, जिन्हें मायावती से अलग करना उनके हिसाब से आसान होगा...
 
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जातिगत आंदोलनों से मुख्यमंत्री सहित सभी राजनैतिक नेता परेशानी में हैं...


SAPAKS के एक युवा सदस्य का कहना था, "ऊंची जातियों के लोग (भी) गैर-जाटव प्रत्याशी को वोट देंगे, क्योंकि वे अब भी काफी पिछड़े हुए हैं, और उन्हें समझाना आसान है... और BJP भी यही रणनीति अपना सकती है..." इस युवक ने काले रंग की टी-शर्ट पहनी थी, जिस पर लिखा है 'हम हैं माई के लाल'... गौरतलब है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हाल ही में एक भाषण में आरक्षण का पक्ष लेते हुए कहा था, "कोई माई का लाल अरक्षण खत्म नहीं कर सकता..."

अब आम चुनाव से पहले मध्य प्रदेश एक बार फिर इस बात की पुष्टि कर रहा है कि आने वाले हर चुनाव में गठबंधन एक अहम फैक्टर होगा, और दूसरा अहम फैक्टर जाति ही होगी...

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