हरदा:
सांताराम उस समय महज 9 साल का था जब उसके पिता ने उसे लोकल महाजन के पास सिर्फ पांच हजार रुपये और 6 क्विंटल गेहूं के लिए गिरवी रख दिया था। सांताराम अब 14 साल का हो गया है, लेकिन अब भी वह महाजन के यहां हर दिन 12 घंटे काम करता है और इसके बदले में सांताराम के पिता को हर साल 100 किलो गेहूं मिलता है। मध्य प्रदेश के हरदा जिले में सांताराम का गांव भी उन गांवों में से एक है जहां के गरीब परिवार के लोग अपने बच्चों को छोटी-मोटी रकम और कुछ अनाज के बदले महाजन के पास गिरवी रख देते हैं।
सांताराम के पिता 55 वर्षीय भागीरथ हैं। वे उन दिनों को याद करते हुए रोने लगते हैं, जब उन्होंने अपने बेटे को महाजन कन्हैया लाल भंडारी के पास गिरवी रखा था। भागीरथ के पास कमाई का कोई भी जरिया नहीं है। वह अब भी कर्ज चुकाकर अपने बेटे को छुड़वाने की हालत में नहीं है।
सांताराम ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा, 'जब मैंने अपने मालिक से पूछा कि मुझे मुक्त कब किया जाएगा तो उसने पांच हजार की रकम में ब्याज को जोड़ने के बाद कहा कि बहुत ज्यादा भुगतान करना पड़ेगा। मुझे पता है कि वह मुक्त नहीं करेगा। मैं यहां तब तक काम करूंगा जब तक मैं बूढ़ा नहीं हो जाता और मेरा शरीर साथ देता रहेगा।'
सांताराम का मालिक अपने दरवाजे पर पत्रकारों को देखकर चौंक गया। उसने दावा किया कि सांताराम ने 5 हजार रुपये कर्ज लिया था और वह इसके ऐवज में एक साल से काम कर रहा है। भंडारी ने कहा कि उसने कल ही काम छोड़ दिया। उन्होंने एनडीटीवी से कहा कि मेरे साथ आप आइए, सांताराम और उसके पिता आपको ये बात बताएंगे।
हरदा जिले में कोरकु और गोंड आदिवासी बड़ी संख्या में रहते हैं। दुखद बात तो यही है कि इन आदिवासियों की पहचान ही अपने बच्चों को गिरवी रखने के रूप में है। एक और बंधुआ बाल मजदूर कमल ने बताया कि उसके पिता ने गिरवी रख पैसे लिए थे। कमल ने कहा, मुझे पता है कि उन्होंने सारे पैसे शराब पीने में खर्च कर दिए हैं। इन इलाकों में सक्रिय एनजीओ का दावा है कि पिछले 9 सालों में 46 बाल मजदूरों को मुक्त कराया गया है। एनजीओ ने कहा कि इस जिले में अब भी चार हजार से ज्यादा बच्चे गिरवी रखे गए हैं। स्थानीय प्रशासन एनजीओ के इन दावों को खारिज करता है।
जिले के सीनियर अधिकारी रजनीश श्रीवास्तव ने बताया कि हम लोगों ने कोई सर्वे नहीं किया है, लेकिन एक एनजीओ ने किया है। इसके बाद हम पूरे मामले की जांच कर रहे हैं। उन्होंने कहा, 'यह सही है कि कुछ मजदूरों को भुगतान नहीं किया जा रहा है, लेकिन बंधुआ मजदूर की बात सही नहीं है।
सांताराम के पिता 55 वर्षीय भागीरथ हैं। वे उन दिनों को याद करते हुए रोने लगते हैं, जब उन्होंने अपने बेटे को महाजन कन्हैया लाल भंडारी के पास गिरवी रखा था। भागीरथ के पास कमाई का कोई भी जरिया नहीं है। वह अब भी कर्ज चुकाकर अपने बेटे को छुड़वाने की हालत में नहीं है।
सांताराम ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा, 'जब मैंने अपने मालिक से पूछा कि मुझे मुक्त कब किया जाएगा तो उसने पांच हजार की रकम में ब्याज को जोड़ने के बाद कहा कि बहुत ज्यादा भुगतान करना पड़ेगा। मुझे पता है कि वह मुक्त नहीं करेगा। मैं यहां तब तक काम करूंगा जब तक मैं बूढ़ा नहीं हो जाता और मेरा शरीर साथ देता रहेगा।'
सांताराम का मालिक अपने दरवाजे पर पत्रकारों को देखकर चौंक गया। उसने दावा किया कि सांताराम ने 5 हजार रुपये कर्ज लिया था और वह इसके ऐवज में एक साल से काम कर रहा है। भंडारी ने कहा कि उसने कल ही काम छोड़ दिया। उन्होंने एनडीटीवी से कहा कि मेरे साथ आप आइए, सांताराम और उसके पिता आपको ये बात बताएंगे।
हरदा जिले में कोरकु और गोंड आदिवासी बड़ी संख्या में रहते हैं। दुखद बात तो यही है कि इन आदिवासियों की पहचान ही अपने बच्चों को गिरवी रखने के रूप में है। एक और बंधुआ बाल मजदूर कमल ने बताया कि उसके पिता ने गिरवी रख पैसे लिए थे। कमल ने कहा, मुझे पता है कि उन्होंने सारे पैसे शराब पीने में खर्च कर दिए हैं। इन इलाकों में सक्रिय एनजीओ का दावा है कि पिछले 9 सालों में 46 बाल मजदूरों को मुक्त कराया गया है। एनजीओ ने कहा कि इस जिले में अब भी चार हजार से ज्यादा बच्चे गिरवी रखे गए हैं। स्थानीय प्रशासन एनजीओ के इन दावों को खारिज करता है।
जिले के सीनियर अधिकारी रजनीश श्रीवास्तव ने बताया कि हम लोगों ने कोई सर्वे नहीं किया है, लेकिन एक एनजीओ ने किया है। इसके बाद हम पूरे मामले की जांच कर रहे हैं। उन्होंने कहा, 'यह सही है कि कुछ मजदूरों को भुगतान नहीं किया जा रहा है, लेकिन बंधुआ मजदूर की बात सही नहीं है।
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