जिस जनप्रतिनिधि कानून के तहत गई राहुल गांधी की संसद सदस्यता, उसमें है बड़ा कंफ्यूजन

राहुल गांधी को जिस बयान के लिए दो साल की सज़ा हुई है वो उन्होंने साल 2019 में लोकसभा चुनावों के दौरान कर्नाटक के कोलार में दिया था. इसके बाद उनकी लोकसभा की सदस्यता भी रद्द हो गई. आइए जानते हैं किस कानून के तहत गई राहुल गांधी की सांसदी और इसमें क्या है कंफ्यूजन...

नई दिल्ली:

राहुल गांधी को सूरत की एक अदालत ने चार साल पुराने आपराधिक मानहानि के मामले में दो साल की सज़ा सुनाई थी. कोर्ट ने 15 हजार का जुर्माना भी लगाया. साथ ही सज़ा को 30 दिन के लिए स्थगित किया गया था, यानी राहुल गांधी के पास सज़ा के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील करने के लिए एक महीने का समय है. हालांकि, सजा के एक दिन बाद राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता रद्द कर दी गई.

लोकसभा सचिवालय ने एक अधिसूचना जारी करके यह जानकारी दी. अधिसूचना में बताया गया है कि केरल की वायनाड लोकसभा सीट के सांसद राहुल गांधी को सज़ा सुनाए जाने के दिन यानी 23 मार्च, 2023 से अयोग्य करार दिया जाता है. ऐसा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 102 (1) और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत किया गया है. लेकिन इसे लेकर कुछ कंफ्यूजन भी है.

जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत स्पीकर ने यह कार्रवाई की है. अब दोष साबित होने के बाद किसी जनप्रतिनिधि के ऑटोमैटिक डिस्क्वॉलिफिकेशन के प्रावधान को खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर दी गई है. इसमें सेक्शन 8(3) की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है. याचिका में कहा गया कि अधिनियम के चेप्टर-III के तहत अयोग्यता पर विचार करते समय आरोपी के नेचर, गंभीरता, भूमिका जैसे कारकों की जांच की जानी चाहिए.  

आइए जानते हैं किस कानून के तहत गई राहुल गांधी की सांसदी और इसमें क्या है कंफ्यूजन...

कैसे जाती है संसद की सदस्यता?
संविधान के अनुच्छेद 102(1) और 191(1) के अनुसार अगर संसद या विधानसभा का कोई सदस्य, लाभ के किसी पद को लेता है, दिमाग़ी रूप से अस्वस्थ है, दिवालिया है या फिर वैध भारतीय नागरिक नहीं है तो उसकी सदस्यता रद्द हो जाएगी. अयोग्यता का दूसरा नियम संविधान की दसवीं अनुसूची में है. इसमें दल-बदल के आधार पर सदस्यों को अयोग्य ठहराए जाने के प्रावधान हैं. 

क्यों गई राहुल गांधी की सांसदी?
इसके अलावा लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत किसी सांसद या विधायक की सदस्यता जा सकती है. इस कानून के जरिए आपराधिक मामलों में सज़ा पाने वाले सांसद या विधायक की सदस्यता को रद्द करने का प्रावधान है. राहुल गांधी को इसी कानून के तहत सांसदी गंवानी पड़ी है.

क्या है कन्फ्यूजन?
जन प्रतिनिधि नियम 1951 के सेक्शन 8 और सब सेक्शन 3 है. इसके अंदर ये फैसला दिया गया है. लेकिन, राहुल गांधी के केस में कंफ्यूजन भी है. सेक्शन को गौर से पढ़ें, तो मालूम होगा कि उसमें तीन चीज़ें हैं. पहली- दो साल या उससे ज्यादा सज़ा मिलने पर विधानसभा या ससंद की सदस्यता से अयोग्य होगा. दूसरी- दोषसिद्धि की तारीख से अयोग्यता रद्द मानी जाएगी. तीसरी- सेक्शन में कहा गया कि person shall be disqualified. इसका मतलब है कि कोई तो होगा, अयोग्य ठहराने के लिए.  

कौन अयोग्य ठहराएगा? 
सज़ा देने वाली कोर्ट का काम ये नहीं है. सेक्रेटरी जनरल के ऑफिस का ऐसा कोई अधिकार नहीं है. कहीं न कानून में है और न संविधान में ऐसा लिखा है. न ही स्पीकर को इसका अधिकार है. इसके लिए आपको संविधान की धारा 103 में जाना होगा. उसमें लिखा है कि भारत के राष्ट्रपति इसका फैसले ले सकते हैं. लोकसभा सचिवालय से पहले यही प्रक्रिया थी. इसके तहत ऐसा कोई मामला होता है, तो इसके लिए राष्ट्रपति को लिखा जाता है, क्योकि धारा 103 के अंदर राष्ट्रपति का अधिकार है. 

ऐसी होनी चाहिए प्रक्रिया
इस मामले में पहले राष्ट्रपति को फैसला लेना होता है. फिर मामला लोकसभा में आएगा. लोकसभा को नोटिफिकेशन जारी करना होगा. नोटिफिकेशन में इसका जिक्र होगा कि संबंधित सदस्य को राष्ट्रपति ने आयोग्य ठहराया है और इसकी सीट खाली हो गई है. ऐसा कहा जा रहा है कि दोषसिद्धि होते ही अयोग्य करार दे दिया जाता है. 

रूल ऑफ लॉ के मुताबिक चलना चाहिए
इस तरह के मामलों में रूल ऑफ लॉ के मुताबिक चलना होता है. लॉ का विश्लेषण लोग अलग तरह से करते हैं. लिली थॉमस के जजमेंट में अलग-अलग राय हैं. उस जजमेंट में कभी भी नहीं कहा कि अयोग्यता अपने आप हो जाती है. लिली थॉमस के केस में सुप्रीम कोर्ट ने सबसेक्शन 4 को हटा दिया है. इसके तहत सदस्यों को सदस्यता रद्द होने से पहले 3 महीने की अवधि मिलती थी. कानून के मुताबिक, अगर सजा पर स्टे लगाएंगे, तो अपने आप अयोग्यता हट जाएगी. सदस्यता बहाल करनी होगी. राहुल गांधी के साथ जो भी हुआ वो अलग चीज़ है. अलग से केस करें तो फैसला होगा. ऊपरी अदालतों से स्टे मिलेगा तो सदस्यता भी वापस मिलेगी.

क्या था राहुल गांधी का बयान?
राहुल गांधी को जिस बयान के लिए दो साल की सज़ा हुई है वो उन्होंने साल 2019 में लोकसभा चुनावों के दौरान कर्नाटक के कोलार में दिया था. उन्होंने नीरव मोदी, ललित मोदी और अन्य का नाम लेते हुए कहा था था, "इन सभी चोरों का उपनाम (सरनेम) मोदी क्यों है?"

बीजेपी नेता पूर्णेश मोदी ने दायर किया था मुकदमा
राहुल गांधी के इस बयान के खिलाफ बीजेपी नेता पूर्णेश मोदी ने मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया था. पूर्णेश मोदी सूरत पश्चिमी से बीजेपी विधायक हैं और पेशे से वकील हैं. वह भूपेंद्र पटेल की सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. पूर्णेश मोदी का आरोप था कि राहुल गांधी की इस टिप्पणी से पूरे मोदी समुदाय की मानहानि की है. इस मामले की सुनवाई सूरत की अदालत में हुई.

इन धाराओं में दर्ज हुआ था केस
राहुल गांधी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 के तहत केस दर्ज किया गया था. भारतीय दंड विधान की धारा 499 में आपराधिक मानहानि के मामलों में अधिकतम दो साल की सज़ा का प्रावधान है.

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