नई दिल्ली:
उच्चतम न्यायालय ने केन्द्रीय शैक्षणिक संस्थाओं में अल्पसंख्यकों के लिए 4.5 फीसदी आरक्षण का प्रावधान निरस्त करने के आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। न्यायालय इस मामले में केन्द्र सरकार की याचिका पर बुधवार को सुनवाई करेगा।
न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति जे एस खेहड़ की अवकाशकालीन खंडपीठ ने सोमवार को इस संवेदनशील मसले के प्रति केन्द्र सरकार के रवैये पर नाराजगी व्यक्त की। न्यायाधीशों ने कहा कि उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए केन्द्र सरकार द्वारा आरक्षण के समर्थन में दस्तावेज संलग्न नहीं करना आश्चर्यजनक है।
न्यायाधीशों ने याचिका पर नोटिस जारी किए बगैर ही अटार्नी जनरल गुलाम वाहनवती से कहा कि अल्पसंख्यकों को अन्य पिछड़े वर्ग के 27 फीसदी कोटे में से 4.5 फीसदी आरक्षण प्रदान करने को न्यायोचित ठहराने वाले दस्तावेज पेश करें। न्यायाधीशों ने कहा कि इस याचिका पर किसी भी कार्यवाही से पहले न्यायालय के समक्ष आवश्यक दस्तावेज तो होने चाहिए। इसके साथ ही न्यायालय ने इस याचिका को बुधवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।
इससे पहले, अटार्नी जनरल ने इस मामले में अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों के लिए संरक्षण का अनुरोध करते हुए कहा कि इस आरक्षण व्यवस्था के अंतर्गत आईआईटी के लिए 325 छात्रों ने परीक्षा उत्तीर्ण की है। उन्होंने कहा कि इन छात्रों को आईआईटी में प्रवेश के लिए काउंसलिंग शामिल होने की अनुमति दी जाए क्योंकि इसकी अनुमति नहीं मिलने से इन छात्रों का भविष्य चौपट हो सकता है।
न्यायाधीशों का कहना था कि इस मामले में कोई भी आदेश देने से पहले केन्द्र सरकार को अपनी दलीलों के समर्थन में कुछ दस्तावेज तो पेश करने होंगे। इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों ने अल्पसंख्यकों के लिए 4.5 फीसदी आरक्षण निर्धारित करने के बारे में अटार्नी जनरल से कई सवाल किए। न्यायाधीश जानना चाहते थे कि सरकार ने अन्य पिछड़े वर्गों के 27 फीसदी आरक्षण में से अल्पसंख्यकों के लिए 4.5 फीसदी आरक्षण किस आधार पर निर्धारित किया।
अटार्नी जनरल ने अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण व्यवस्था निरस्त करने के फैसले में जब खामियों की ओर न्यायालय का ध्यान आकर्षित किया तो न्यायाधीशों ने कहा कि उच्च न्यायालय के लिए सवाल इस बारे में सवाल करना स्वाभाविक था।
न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति जे एस खेहड़ की अवकाशकालीन खंडपीठ ने सोमवार को इस संवेदनशील मसले के प्रति केन्द्र सरकार के रवैये पर नाराजगी व्यक्त की। न्यायाधीशों ने कहा कि उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए केन्द्र सरकार द्वारा आरक्षण के समर्थन में दस्तावेज संलग्न नहीं करना आश्चर्यजनक है।
न्यायाधीशों ने याचिका पर नोटिस जारी किए बगैर ही अटार्नी जनरल गुलाम वाहनवती से कहा कि अल्पसंख्यकों को अन्य पिछड़े वर्ग के 27 फीसदी कोटे में से 4.5 फीसदी आरक्षण प्रदान करने को न्यायोचित ठहराने वाले दस्तावेज पेश करें। न्यायाधीशों ने कहा कि इस याचिका पर किसी भी कार्यवाही से पहले न्यायालय के समक्ष आवश्यक दस्तावेज तो होने चाहिए। इसके साथ ही न्यायालय ने इस याचिका को बुधवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।
इससे पहले, अटार्नी जनरल ने इस मामले में अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों के लिए संरक्षण का अनुरोध करते हुए कहा कि इस आरक्षण व्यवस्था के अंतर्गत आईआईटी के लिए 325 छात्रों ने परीक्षा उत्तीर्ण की है। उन्होंने कहा कि इन छात्रों को आईआईटी में प्रवेश के लिए काउंसलिंग शामिल होने की अनुमति दी जाए क्योंकि इसकी अनुमति नहीं मिलने से इन छात्रों का भविष्य चौपट हो सकता है।
न्यायाधीशों का कहना था कि इस मामले में कोई भी आदेश देने से पहले केन्द्र सरकार को अपनी दलीलों के समर्थन में कुछ दस्तावेज तो पेश करने होंगे। इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों ने अल्पसंख्यकों के लिए 4.5 फीसदी आरक्षण निर्धारित करने के बारे में अटार्नी जनरल से कई सवाल किए। न्यायाधीश जानना चाहते थे कि सरकार ने अन्य पिछड़े वर्गों के 27 फीसदी आरक्षण में से अल्पसंख्यकों के लिए 4.5 फीसदी आरक्षण किस आधार पर निर्धारित किया।
अटार्नी जनरल ने अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण व्यवस्था निरस्त करने के फैसले में जब खामियों की ओर न्यायालय का ध्यान आकर्षित किया तो न्यायाधीशों ने कहा कि उच्च न्यायालय के लिए सवाल इस बारे में सवाल करना स्वाभाविक था।
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