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This Article is From May 29, 2012

अल्पसंख्यकों को साढ़े चार प्रतिशत का आरक्षण उच्च न्यायालय में खारिज

हैदराबाद: आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने सोमवार को 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के तहत अल्पसंख्यकों के साढ़े चार प्रतिशत के आरक्षण को खारिज कर दिया और केन्द्र को ‘‘हल्के तरीके’’ से काम करने पर आडे हाथ लिया। अदालत के इस निर्णय से आईआईटी जैसे केन्द्रीय शिक्षण संस्थानों में हो चुके दाखिलों पर असर पड़ सकता है।

केन्द्र को झटका देते हुए अदालत ने कहा कि सरकारी आदेश (ओएम) के जरिये सब कोटा केवल धार्मिक आधार पर बनाया गया है तथा यह किसी अन्य समझ में आने लायक आधार पर तैयार नहीं किया गया है।

केन्द्र ने उत्तर प्रदेश और पंजाब सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले केन्द्रीय शिक्षण संस्थानाओं और नौकरियों में 27 प्रतिशत के ओबीसी आरक्षण में से अल्पसंख्यक समुदायों से संबंध रखने वाले सामाजिक एवं शैक्षणिक तौर पर वर्ग के नागरिकों को साढ़े चार प्रतिशत का सब कोटा देने की 22 दिसंबर 2011 के ओएम के जरिये घोषणा की थी।

मुख्य न्यायाधीश मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि पीठ ने ध्यान दिलाया कि अल्पसंख्यकों से संबंध रखने वाले या अल्पसंख्यकों के लिए जैसे शब्दों के प्रयोग से संकेत मिलता है कि सब कोटा केवल धार्मिक आधार पर बनाया गया है तथा यह किसी अन्य समझ में आने लायक आधार पर तैयार नहीं किया गया है।

अदालती आदेश आने के बाद इस मुद्दे पर सतर्क रवैया अपनाते हुए कांग्रेस ने कहा कि वह अदालत के आदेश को पढ़ा एवं समझा जायेगा। पार्टी प्रवक्ता मनीष तिवारी ने दिल्ली में संवाददाताओं से कहा कि अदालती आदेश को पढ़कर और समझ कर ही उस पर प्रतिक्रिया की जा सकती है। अदालती फैसले की प्रति मिलने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।

पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘वास्तव में, जिस तरह केन्द्र सरकार ने पूरे मामले को हल्के ढंग से लिया है, उस पर हम अपनी खिन्नता जताते हैं।’’ अदालत ने कहा, ‘‘विद्वान सहायक सालीसिटर जनरल ने हमें ऐसा कोई साक्ष्य नहीं दिखाया जो इन धार्मिक अल्पसंख्यकों का एक सजातीय समूह या विशेष व्यवहार के हकदार वाले पिछड़े वर्ग के रूप में वर्गीकरण करने को जायज ठहरता हो।’’ उसने कहा, ‘‘लिहाजा हम यह मानते हैं कि मुस्लिम, इसाई, बौद्ध और पारसी सजातीय समूह नहीं है बल्कि भिन्न समूह हैं।’’ आंध्र प्रदेश के पिछड़ा जाति के नेता एवं याचिकाकार्ता आर कृष्णया की ओर से दलील देने वाले वरिष्ठ वकील के रामकृष्ण रेड्डी के अनुसार उच्च न्यायालय के आदेश से आईआईटी जैसे केन्द्रीय शिक्षण संस्थानों में किये जा चुके दाखिलों पर असर पड़ सकता है।

अदालत के आदेश में कहा गया, ‘‘लिहाजा, हमारे पास 22 दिसंबर 2011 के ओएम एवं संकल्प के जरिये ओबीसी के 27 प्रतिशत आरक्षण में से अल्पसंख्यकों से संबंध रखने वाले पिछड़े वर्गों के लिए साढ़े चार प्रतिशत का आरक्षण तय करने को खारिज करते हैं।’’ पहले ओएम में कहा गया है कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कानून की धारा 2:सी: में परिभाषित अल्पसंख्यक से संबंध रखने वाले शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पिछले वर्ग के नागरिकों के लिए साढ़े चार प्रतिशत का आरक्षण तय किया जाता है। संकल्प और दूसरे ओएम के जरिये अल्पसंख्यकों के लिए सब कोटा बनाया गया।

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Minority Reservations Cancelled, High Court, अल्पसंख्यक आरक्षण पर हाई कोर्ट, अल्पसंख्यक आरक्षण खारिज
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