युवाओं में दाढ़ी बढ़ाने का शौक भले ही ट्रेंड में है और इसे काफी युवा अपना भी रहे हैं लेकिन कश्मीर में यूथ की बढ़ी दाढ़ी की वजह फैशन कम मजबूरी ज्यादा है. केंद्र सरकार द्वारा पांच अगस्त को अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करने और राज्य को दो केंद्र शासित क्षेत्रों में बांटने के निर्णय के बाद घाटी के लोगों को अपने बाल कटवाने और दाढ़ी बनवाने के लिए हजाम ढूंढना मुश्किल हो गया है. कुपवाड़ा जिले में सरकारी कर्मचारी शफत अहमद ने पीटीआई को फोन पर बताया, ‘‘मैं इतना अस्त-व्यस्त कभी नहीं दिखता था. मैंने करीब दो महीने से अपने बाल नहीं कटाए हैं. हजाम ढूंढना मुश्किल है. या तो वे सब भाग चुके हैं या फिर इतना भयभीत हैं कि अपनी दुकान नहीं खोल रहे हैं.'
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गांदरबल जिले में पत्रकारिता के छात्र जाविद रेशी ने कहा, ‘‘अगले हफ्ते मुझे अपनी गर्लफ्रेंड से मिलना है लेकिन मुझे लगता है कि इसे रद्द करना पड़ेगा. उसे बढ़ी हुई दाढ़ी और लंबे बाल पसंद नहीं हैं. वह इसे भद्दा समझती है.' कश्मीर में अधिकतर सैलून घाटी के बाहर के लोग चलाते हैं जिनमें अधिकतर उत्तरप्रदेश और बिहार के हैं. घाटी के लगभग सभी बड़े शहरों और नगरों में सैलून बाहरी लोग ही चलाते हैं.ये विशेषज्ञ हेयर ड्रेसर नई हेयर स्टाइल और फैशन ट्रेंड के परिचायक बन गए हैं और उन्होंने स्थानीय हजामों को इस व्यवसाय से लगभग बाहर कर दिया है.
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कश्मीरी हेयर ड्रेसर संगठन के मुताबिक कश्मीर के बाहर के हजामों द्वारा संचालित कम से कम 20 हजार दुकान बंद हैं क्योंकि पांच अगस्त के बाद वे घाटी से भाग गए हैं. सरकारी शिक्षक काजिर मोहम्मद ने कहा, ‘‘दाढ़ी से मेरे चेहरे की गरिमा नहीं बढ़ती. साथ ही मुझे इन सफेद बालों को भी रंगवाना है... सड़कों पर अच्छे से बाल कटाए और दाढ़ी बनवाए व्यक्ति नजर नहीं आ रहे हैं. हम सभी यहां बड़े बालों वाले बबून (बंदर की एक प्रजाति) हैं.''
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