
मेडिकल शिक्षा में गुणवत्ता बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) ने एक बड़ा कदम उठाया है. इसके तहत देश के सभी मेडिकल कॉलेजों को मरीजों के कागजात सुरक्षित रखने का आदेश दिया गया हैं. आयोग ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा है कि किसी भी जांच में मरीजों के फर्जी रिकॉर्ड पाए जाने पर संबंधित संकाय प्रोफेसर और कॉलेज के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
NMC ने क्या आदेश दिया?
आयोग की तरफ से जारी आदेश में मेडिकल कॉलेजों से सभी मरीजों के कागजों पर प्रोफेसर और वरिष्ठ रेजिडेंट डॉक्टर का नाम और हस्ताक्षर अनिवार्य किया है ताकि यह साबित हो कि उन्होंने मरीज को इलाज किया है. इसी तरह सभी जांच रिपोर्ट पर संबंधित विभाग के प्रोफेसर के हस्ताक्षर होने चाहिए. इन दस्तावेजों का सत्यापन एनएमसी अपने नियमित मूल्यांकन के दौरान कर सकता है. यदि इसमें फर्जी दस्तावेज मिले तो फैकल्टी और कॉलेज दोनों पर कड़ी कार्रवाई होगी.
इसलिए जारी किया आदेश...
एनएमसी का कहना है कि कई मेडिकल कॉलेज अब तक मरीजों का ई-रिकॉर्ड नहीं बना रहे. इससे यह पता नहीं चल पाता कि किसे और कब इलाज मिला. आयोग के अनुसार, मेडिकल कॉलेजों के मान्यता नवीनीकरण, सीट वृद्धि और नए कोर्सेज की अनुमति जैसी प्रक्रियाएं क्लीनिकल पदार्थ और मरीजों के प्रामाणिक डाटा पर आधारित होती है. एनएमसी के सचिव डॉ. राघव लांगर ने कहा, "फर्जी आंकड़े शिक्षा और इलाज दोनों को नुकसान पहुँचाते हैं. ऐसे में आयोग अब इस पर कड़ी नजर रखेगा और जरूरत पड़ने पर कठोर कार्रवाई भी करेगा. "
मरीजों की आभा आईडी नहीं बन रही
आयोग ने जून 2024 में जारी एक आदेश का हवाला देते हुए कहा कि इलाज के लिए मेडिकल कॉलेज में आने वाले मरीजों का ई-रिकॉर्ड नहीं बनाया जा रहा है. कई कॉलेजों में मरीजों की आभा आईडी भी नहीं बन रहा है.
क्या है आभा-ID?
आभा-ID यानी आयुष्मान भारत हेल्थ अकाउंट, एक यूनिक डिजिटल हेल्थ आईडी है, जिसमें मरीज का पूरा इलाज रिकॉर्ड किया जाता है. यह आईडी इलाज को ट्रैक करने में मदद करती है और रिकॉर्ड को पारदर्शी बनाती है. हालांकि एनएमसी ने यह भी साफ कर दिया कि आभा-आईडी नहीं होने पर मरीज को इलाज से वंचित नहीं किया जाएगा, लेकिन कॉलेज को डिजिटल रिकॉर्ड बनाना अनिवार्य है.
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