मेरिटल रेप अपराध है या नहीं? इस पर परीक्षण करने को सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. अब इस मामले पर सुनवाई फरवरी 2023 में होगी. केंद्र सरकार को जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने जारी किया है. बता दें, भारतीय कानून में मेरिटल रेप कानूनी अपराध नहीं है. हालांकि, इसे अपराध घोषित करने की मांग को लेकर कई संगठनों की ओर से लंबे वक्त से मांग चल रही है.
बता दें, 11 मई को दिल्ली हाईकोर्ट के 2 जजों ने अलग-अलग फैसला दिया था. इस मामले की सुनवाई के दौरान दोनों जजों की राय एक मत नहीं दिखी. इसी के चलते दोनों जजों ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए प्रस्तावित किया था.
सुनवाई के दौरान जहां पीठ की अध्यक्षता करने वाले जस्टिस राजीव शकधर ने मेरिटल रेप को अपवाद मानने को रद्द करने का समर्थन किया. वहीं जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा था कि IPC के तहत अपवाद असंवैधानिक नहीं है और एक समझदार अंतर पर आधारित है.
दरअसल, याचिकाकर्ता ने IPC की धारा 375( रेप) के तहत मेरिटल रेप को अपवाद माने जाने को लेकर संवैधानिक तौर पर चुनौती दी थी. इस धारा के अनुसार विवाहित महिला से उसके पति द्वारा की गई यौन क्रिया को दुष्कर्म नहीं माना जाएगा, जब तक कि पत्नी नाबालिग न हो.
हाईकोर्ट ने मेरिटल रेप को अपराध घोषित करने के मामले में पक्ष रखने के लिए बार-बार समय मांगने पर केंद्र सरकार के रवैये पर नाराजगी जताई थी. कोर्ट ने केंद्र को समय देने से इनकार करते हुए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. पीठ के समक्ष केंद्र ने तर्क रखा था कि उसने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस मुद्दे पर उनकी टिप्पणी के लिए पत्र भेजा है.
केंद्र ने कहा था कि जब तक इनपुट प्राप्त नहीं हो जाते, तब तक कार्यवाही स्थगित कर दी जाए. पीठ के पूछने पर कहा कि अभी तक किसी राज्य सरकार से संचार पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है. एसजी मेहता ने भी तर्क दिया था कि आमतौर पर जब एक विधायी अधिनियम को चुनौती दी जाती है तो हमने एक स्टैंड लिया. ऐसे बहुत कम मामले होते हैं, जब इस तरह के व्यापक परिणाम मिलते हैं, इसलिए हमारा स्टैंड है कि हम परामर्श के बाद ही अपना पक्ष रख पाएंगे.
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